राजस्थान में त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी बांसवाड़ा सीट, भाजपा को लग सकता है बड़ा झटका, जानें कैसे?
Rajasthan Lok Sabha Election 2024: लोकसभा चुनाव 2024 में राजस्थान की एसटी रिजर्व सीट बांसवाड़ा-डूंगरपुर सीट पर 26 अप्रैल को वोटिंग होगी। आजादी के बाद पहला मौका होगा जब कांग्रेस ने इस सीट पर कोई उम्मीदवार नहीं उतारा है। इस सीट पर अब तक 17 सांसद रहे हैं। जिसमें से 12 बार कांग्रेस के, एक बार भारतीय लोकदल, एक बार जनता पार्टी और 3 बार भाजपा के सांसद रहे हैं। इस बार कांग्रेस ने स्थानीय पार्टी बीएपी से गठबंधन किया है। बता दें कि लोकसभा चुनाव 2024 में कांग्रेस ने 3 सीटों पर अपने उम्मीदवार नहीं उतारे हैं। इसमें नागौर, सीकर और डूंगरपुर-बांसवाड़ा सीट शामिल हैं।
भाजपा ने यहां से कांग्रेस छोड़कर आए पूर्व मंत्री महेंद्रजीत सिंह मालवीया को प्रत्याशी बनाया है। इससे पहले यहां कनकमल कटारा 2014 और 2019 में सांसद रह चुके हैं। भाजपा पिछले 2 बार से यह सीट जीतती आई है। कांग्रेस ने इस सीट पर बीएपी प्रत्याशी और विधायक राजकुमार रोत को समर्थन दिया है। हालांकि इस सीट पर कांग्रेस के प्रत्याशी अरविंद डामोर भी हैं। क्योंकि वे नामांकन वापसी वाले दिन गायब हो गए। इस सीट पर पहले कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी घोषित कर दिया था। लेकिन गठबंधन के बाद अरविंद डामोर ने हाईकमान से निर्देश के बाद भी नाम वापस नहीं लिया।
भाजपा-कांग्रेस से अपने ही नाराज
वहीं मालवीया को टिकट देने से भाजपाई नाराज हैं। उनका कहना है कि मालवीया भाजपा में आने से पहले पार्टी का भला-बुरा कहते रहे हैं। अब अचानक उनके पार्टी में आ जाने से वे उनका सहयोग नहीं कर सकते हैं। हालांकि कार्यकर्ताओं की नाराजगी के बीच पीएम नरेंद्र मोदी ने रविवार को यहां मालवीया के समर्थन में रैली को संबोधित किया था। उधर कांग्रेस के स्थानीय नेता भी पार्टी आलाकमान से नाराज चल रहे हैं। पूर्व मंत्री अर्जुन बामनिया समेत कई पूर्व सांसदों ने इस संबंध में अपना विरोध भी दर्ज कराया लेकिन पार्टी ने गठबंधन धर्म निभाने और चुनाव में सहयोग करने को कहा है।
जानें कैसे हुआ बीएपी का जन्म
2018 के विधानसभा चुनाव से पहले जन्मी बीटीपी ने चुनाव में एक सीट पर विजय प्राप्त की। इसके बाद 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी का विलय भारत आदिवासी पार्टी में कर दिया गया। इस चुनाव में पार्टी के 3 सीटों पर विधायक जीतकर विधानसभा पहुंचे। बीएपी का दक्षिण राजस्थान की 10-12 सीटों पर सीधा प्रभाव है। हालांकि राजस्थान का इतिहास रहा है कि यहां पर स्थानीय पार्टियां या छोटी पार्टियां ज्यादा दिनों तक टिक नहीं पाती है। प्रदेश की जनता शुरुआत से ही राष्ट्रीय राजनीतिक दलों पर भरोसा करती रही है। हालांकि बीएपी कितनी सफल होगी यह तो आनेवाल वक्त ही बताएगा।
संघ भी मैदान में उतरा
भाजपा ने इस सीट पर जीत के लिए संघ के आनुषंगिक संगठन वनवासी कल्याण परिषद् को भी मैदान में उतारा है। यह संगठन प्रत्यक्ष तौर पर किसी को वोट देने के लिए नहीं कहता है लेकिन यह बताता है कि देश को ताकतवर सरकार की जरूरत क्यों हैं और हमें कैसी सरकार का चुनाव करना चाहिए। वहीं राजकुमार रोत की पार्टी बीएपी जल, जंगल और जमीन पर पहला हक आदिवासियों का बताकर इस मुद्दे को उठा रहे हैं।
त्रिकोणीय मुकाबले में फंसी सीट
कुल मिलाकर इस सीट पर भाजपा की स्थिति मजबूत है। कांग्रेस प्रत्याशी के नाम वापस नहीं लेने पर अरविंद डामोर भी मैदान में हैं। ऐसे में इस सीट पर मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है। ऐसे में भाजपा एक बार फिर यहां मैदान मार सकती है। इस सीट पर लगभग 22 लाख मतदाता है। इसमें 15 लाख एसटी, 3 लाख 25 हजार ओबीसी, एक लाख 80 हजार सामान्य, एससी के 90 हजार वोट शामिल हैं। इस सीट पर 70 फीसदी वोट आदिवासियों के हैं। ऐसे में बीएपी उम्मीदवार राजकुमार रोत भाजपा के लिए चुनौती बने हुए हैं।
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