खेलवीडियोधर्म
मनोरंजन.. | मनोरंजन
टेकदेश
प्रदेश | पंजाबहिमाचलहरियाणाराजस्थानमुंबईमध्य प्रदेशबिहारउत्तर प्रदेश / उत्तराखंडगुजरातछत्तीसगढ़दिल्लीझारखंड
धर्म/ज्योतिषऑटोट्रेंडिंगदुनियास्टोरीजबिजनेसहेल्थएक्सप्लेनरफैक्ट चेक ओपिनियननॉलेजनौकरीभारत एक सोचलाइफस्टाइलशिक्षासाइंस

वैभव गहलोत या लुंबाराम चौधरी, किसे मिलेगी जीत? क्या काम आएगा 'स्थानीय बनाम बाहरी' का मुद्दा?

Jalore-Sirohi Lok Sabha Seat: राजस्थान की जालोर-सिरोही लोकसभा सीट से इस बार पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत और लुंबा राम चौधरी आमने-सामने हैं। इस चुनाव में स्थानीय बनाम बाहरी मुद्दा छाया हुआ है।
03:15 PM Mar 15, 2024 IST | Achyut Kumar
Jalore-Sirohi Lok Sabha Seat पर Vaibhav Gehlot और Lumba Ram Choudhary के बीच होगा मुकाबला
Advertisement

के जे श्रीवत्सन

Advertisement

Jalore-Sirohi Lok Sabha Seat: कभी मजबूत गढ़ होने और बूटा सिंह सरीखे बड़े नेता को चुनकर भेजने वाली कांग्रेस राजस्थान में जिस सीट पर एक अदद जीत के लिए करीब दो दशक से इंतजार में है, वह जालौर-सिरोही लोकसभा सीट है। साल 1999 के बाद से इस सीट पर कांग्रेस को लगातार चार बार हार का सामना करना पड़ा है। जालोर-सिरोही सीट पर पिछले 10 लोकसभा चुनाव का परिणाम देखें तो यहां से 5 बार कांग्रेस और 5 बार बीजेपी ने जीत हासिल की है।  पिछले तीन लोकसभा चुनावों से बीजेपी के यहां पर बाहरी प्रत्याशी उतारने के बाद भी दमदार जीत मिल रही है।

बीजेपी ने जालोर-सिरोही सीट पर किया नया प्रयोग

बीजेपी ने इस बार गुजरात से सटे जालोर-सिरोही संसदीय क्षेत्र में नया प्रयोग किया है। उसने यहां पर तीन बार के अपने प्रत्याशी को ही बदल दिया, जबकि कांग्रेस ने भी यहां पर एक बड़ा दांव खेलते हुए पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को चुनाव में उतारा है, जिसके चलते यहां पर भी मतदाताओं का मिजाज जुदा ही नजर आ रहा है। यहां पर इस इलाके के बाहर काम पर चले जाने वाले मतदाताओं की तादाद भी 30 फीसदी से अधिक है। ऐसे में चुनावों के वक्त यहां पर इनकी घर वापसी उत्सव का माहौल भी बना देता है।

चुनाव में निर्णायक भूमिका निभाते हैं प्रवासी

Advertisement

जालोर-सिरोही जिले के अधिकांश लोग गुजरात, महाराष्ट्र सहित दक्षिण भारत के अन्य राज्यों में फैले हुए हैं। लोकसभा चुनावों के दौरान शादी-ब्याह का सीजन शुरू होने वाला है। ऐसे में लोग वापस अपने गांवों की तरफ लौटने लगे हैं। ये प्रवासी लोग यहां के चुनाव में निर्णायक भूमिका अदा करते हैं। पिछले तीन बार से बीजेपी के टिकट पर चुनाव जीतने वाले देवजी पटेल भी बाहरी ही थे। पीएम मोदी के करीबी और गुजरात से होने के नाते वे जीतते आ रहे थे, लेकिन विधानसभा चुनाव में प्रयोग के तहत बीजेपी ने उन्हें चुनावी मैदान में उतारा, जिसमें उन्हें खुद की ही एंटी इन्कम्बेंसी के चलते हार का सामना करना पड़ा।

बीजेपी ने लुंबाराम चौधरी को बनाया उम्मीदवार

बीजेपी ने नए प्रत्याशी के रूप में इस बार यहां से लुंबाराम चौधरी को चुनावी मैदान में उतारा है, जो सिरोही के रहने वाले हैं। वहीं, कांग्रेस ने पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को मैदान में उतारा है। वैभव स्थानीय मतदाताओं के लिए नए जरूर हैं, लेकिन अशोक गहलोत की छवि का फायदा उन्हें मिल सकता है। इससे पहले वैभव गहलोत ने अपने गृह क्षेत्र जोधपुर से केन्द्रीय जल शक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत के सामने चुनाव लड़ा था, जिसमें उनकी हार हुई। कुल मिलाकर कहा जाए तो यहां बीजेपी ने रिवाज तोड़ते हुए इस बार स्थानीय को टिकट दिया है। वहीं, कांग्रेस ने स्थानीय की बजाय जालौर से करीब 140 किलोमीटर दूर पड़ोसी जिले जोधपुर के रहने वाले नए चेहरे वैभव गहलोत पर दांव खेला है।

जालोर-सिरोही लोकसभा में कितनी विधानसभा सीटें हैं?

जालोर-सिरोही संसदीय सीट में जालोर, सिरोही, रेवदर, सांचौर, पिंडवाड़ा-आबू, आहोर, भीनमान व रानीवाड़ा विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें से ज्यादातर पर बीजेपी का ही दबदबा रहा है।

जालोर-सिरोही लोकसभा क्षेत्र का कैसा है माहौल?

विकास जालोर-सिराही लोकसभा क्षेत्र की बड़ी जरूरत है। इसके अलावा न लोगों की अपेक्षा है, और न ही प्रत्याशी किसी तरह के वादे कर रहे हैं। पहली बार 1984 में बूटा सिंह यहां से चुनाव जीते और केन्द्र में राजीव गांधी सरकार में कृषि और फिर देश के गृह मंत्री भी बने। जालोर से चुनाव जीत कर देश के सबसे ऊंचे ओहदे तक पहुंचने वाले पहले व्यक्ति हैं। बड़े नाम के बावजूद भी विकास में पिछड़ने वाले जालौर में भी मुद्दों की बजाय मोदी लहर ही पिछले दो लोकसभा चुनावों में हावी रही है। तीन बार के सांसद देवजी पटेल से शिकायत जरूर थी, लेकिन मतदाताओ में बड़ा आक्रोश नहीं दिख रहा। यहां हुए कुल 17 लोकसभा चुनाव में 8 बार कांग्रेस, 5 बार भाजपा, 1 बार स्वतंत्र पार्टी, 1 बार भारतीय लोकदल और 1 बार निर्दलीय उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। इस लिहाज से पिछले 3 बार से जालोर सीट पर लगातार भाजपा का कब्जा है।

जातीय समीकरण का गणित

आजादी के बाद से ही यह अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट थी, लेकिन साल 2009 में हुए परिसीमन के बाद यह सामान्य सीट हो गई। इस लोकसभा सीट पर करीब 19.53 लाख मतदाता हैं। अनुसूचित जाति-जनजाति बाहुल्य क्षेत्र है। इनकी तादाद सात लाख से अधिक है। पटेल समाज के करीब तीन लाख, देवासी 2.25 लाख, मूल ओबीसी तीन लाख, राजपूत व भोमिया 1.70 लाख, ब्राह्मण व वैश्य सहित अन्य सवर्ण ढाई लाख और करीब 1 लाख मुस्लिम मतदाता हैं।

पारसाराम मेघवाल ने बनाया सबसे कम वोटों से जीतने का रिकॉर्ड

जालोर-सिरोही लोकसभा संसदीय क्षेत्र की जनता ने 69 सालों में 16 सांसदों को जिताकर संसद भेजा है। इस सीट पर तीन बार प्रत्याशी नजदीकी मुकाबले में 10 हजार से भी कम मतों से जीतकर सांसद बने हैं। इसमें सबसे कम वोटों से जीतने और सबसे कम समय के लिए सांसद रहने का रिकॉर्ड पारसाराम मेघवाल के नाम है। पहली बार बार 2014 के दौरान भाजपा प्रत्याशी देवजी पटेल ने 3 लाख 81 हजार 145 वोटों से कांग्रेस प्रत्याशी को हराकर इस सीट की रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी।

कभी कांग्रेस का था मजबूत गढ़, अब बना बीजेपी का किला

जालोर-सिरोही के मतदाताओं का बाहरी प्रत्याशियों से विशेष लगाव रहा है। अब तक 9 बार यहां से बाहरी प्रत्याशी चुनाव जीतकर संसद जा चुके हैं। इसी वजह से कांग्रेस के दिग्गज बूटासिंह पंजाब से यहां आकर चुनाव लड़े और एक नहीं, दो नहीं, बल्कि 4 बार चुनाव जीते। वहीं, भाजपा के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण की पत्नी वी. सुशीला भी एक बार यहां से चुनाव जीत चुकी हैं। साल 2004 में बी सुशीला की बूटा सिंह को दी गई शिकस्त के साथ ही तब से यह सीट बीजेपी के पास ही है। वैसे कांग्रेस का यह कितना मजबूत गढ़ था, इसका अंदाजा इसी से समझा जा सकता है कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहते बंगारू लक्ष्मण यहां से साल 1999 में चुनाव लड़कर हार चुके हैं

यह भी पढ़ें: Rajasthan BJP में परिवारवाद का सबूत, पिता कानून मंत्री तो बेटा एडिशनल एडवोकेट जनरल

जालोर-सिरोही सीट पर छाया स्थानीय बनाम बाहरी का मुद्दा

बीजेपी ने स्थानीय निवासी लुंबाराम चौधरी को टिकट दिया है। ऐसे में उसने स्थानीय और बाहरी का मुद्दा उछालना शुरू कर दिया है। हालांकि, इस सीट पर रिकॉर्ड रहा है कि हमेशा बाहरी उम्मीदवार ने चुनाव जीता है। ऐसे में वैभव गहलोत के लिए यह 'सकारात्मक पहलु' हो सकता है, लेकिन 2004 में बी सुशीला ने बूटा सिंह को शिकस्त देकर इस सीट को बीजेपी के पाले में डाल दिया था। तब से यह सीट बीजेपी के पास ही है।

आसान नहीं है वैभव गहलोत की राह

बीजेपी की लगातार तीन बड़ी जीत के बाद भले ही पूर्व सीएम अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को जालोर सीट पर उतार दिया है, लेकिन पार्टी ने इसके लिए जबरदस्त होम वर्क भी किया था।  कांग्रेस के कई बड़े नेता और स्थानीय नेताओं ने विधानसभा चुनाव के वक्त से ही वैभव को यहां लाकर उनके साथ माहौल बनाना शुरू कर दिया था। वैभव खुद भी 2019 के चुनाव से ही यहां सक्रिय नजर आये। अशोक गहलोत ओबीसी के तहत माली समाज से आते हैं तो तमाम ओबीसी वर्ग को भी विश्वास में लिया गया। इलाके के राजपूत समाज के बड़े घरानों से बातचीत की।  ऐसे में अब तमाम दूसरे पहलुओं के साथ खुद वैभव पर निर्भर करेगा कि अब वे इस सीट पर समीकरण को अपने पक्ष में करके इस चुनाव को कैसे जीत पाएंगे।

यह भी पढ़ें: लोकसभा चुनाव से पहले पेट्रोल-डीजल सस्ता, राजस्थान कैबिनेट मीटिंग में CM भजनलाल का बड़ा ऐलान

Advertisement
Tags :
lok sabha election 2024Rajasthan NewsVaibhav gehlot
वेब स्टोरी
Advertisement
Advertisement