पितृपक्ष 2024: क्या पुरुष अपने सास-ससुर का तर्पण कर सकते हैं?

अक्सर देखा जाता है की पितृपक्ष मे कोई भी पुरुष अपने माता-पिता या अपने ही परिवार के लोगों को जल अर्पित कर सकता है । लेकिन क्या आप जानते हैं कि कोई भी पुरुष पितृपक्ष के दौरान अपने सास-ससुर को भी जल अर्पित कर सकता है ।

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पितृपक्ष के दौरान हिन्दूधर्म के लोग अपने पूर्वजों के नाम जल अर्पित करते हैं जिसे तर्पण कहा जाता है।ऐसा माना जाता है कि इन 16 दिनों में पुत्रों या परिवार के किसी भी सदस्यों  द्वारा विधि पूर्वक जितना भी जल पितरों को अर्पित किया जाता है वही जल उनके पूर्वज सालभर पीते हैं। वहीं जो मनुष्य अपने पितरों को पितृपक्ष के दौरान सम्पूर्ण विधि से जल नहीं चढ़ाता उसके पूर्वज प्यासे ही भटकते रहते हैं। तो आइए जानते हैं कि तर्पण की सही विधि क्या है ।

तर्पण के लिए सही पात्र  

धर्मग्रंथों में बताया गया है कि मनुष्यों को किसी भी पात्र से तर्पण की विधि सम्पन्न नहीं करनी चाहिए। तर्पण शुरू करने से पहले सही पात्र का चयन अवश्य ही सावधानी पूर्वक करें । क्योंकि सोना,चांदी,तांबा और कांस्य से बने पात्र को ही तर्पण के लिए सबसे उत्तम बताया गया है।तर्पण करते समय भूलकर भी मिट्टी या लोहे से बने पात्रों का प्रयोग नहीं करना चाहिए।ऐसा माना जाता है कि यदि कोई लोहे या मिट्टी से बने पात्रों  से पितरों को जल अर्पित करता है तो वह पितरों तक नहीं पहुंचता ।

मनुष्य पितृ तर्पण विधि 

तर्पण शुरू करते समय सबसे पहले अपने पूर्वजों का नाम और गोत्र के साथ आहवाहन करें और नीचे दिए हुए मंत्र को पढ़ते हुए तीन बार जल अर्पित करें।

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पितृ(पिता) पक्ष तर्पण मंत्र 

पिता-मम पिता तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

चाचा या ताऊ-मम पितृव्याः तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

दादा-मम पितामह तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

परदादा-मम प्रपितामह तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

माता-मम माता तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

दादी-मम पितामही तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

परदादी-मम प्रपितामही तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

सौतेली माता-मम सापत्नमाता तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

मातृ(माता) पक्ष तर्पण मंत्र

नाना-मम मातामह तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

परनाना-दादा-मम प्रमातामह तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

नानी-मम मातामही तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

परनानी-मम प्रमातामही  तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

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अन्य संबंधी के लिए तर्पण मंत्र 

पत्नी-मम भार्या तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

पुत्र-मम पुत्रः तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

पुत्री-मम पुत्री तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

भाई-मम भ्राता तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

ससुर-मम श्वशुरः तृप्यताम् इदं गङ्गाजलं तस्मै स्वधा

इन मंत्रों के अलावा दिशा का भी ध्यान रखना ज्यादा जरूरी माना गया है।पितरों को जल अर्पित करते समय हमेशा दक्षिण दिशा की ओर मुख रखना चाहिए।तर्पण कि विधि समाप्त होने बाद अपने पूर्वजों से क्षमा याचना अवश्य करनी चाहिए।ऐसा माना जाता है कि जिस घर पर देवताओं के साथ साथ पितरों का आशीर्वाद बना रहता है उस घर में कोई भी नकारात्मक शक्ति का वास नहीं होता।

 

 

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