Chhath Puja 2024: छठ में ठेकुआ क्यों चढ़ाते हैं, क्यों कहते हैं इसे महाप्रसाद, जानें विस्तार से
Chhath Puja 2024: मीडिया और सोशल मीडिया की बदौलत पिछले कुछ सालों से छठ पर्व की लोकप्रियता बेहद बढ़ गई है। इसलिए आज न तो छठ अनजाना रहा है, और न ही छठ का प्रसिद्ध प्रसाद ठेकुआ। दरअसल छठ और ठेकुआ एक दूसरे के पर्यायवाची बन चुके हैं। छठ में ठेकुआ न बने ऐसा हो ही नहीं सकता है। अमीर हो या गरीब, छठ पूजा में सभी के यहां प्रसाद के रूप में भगवान सूर्य को ठेकुआ चढ़ाना और उसका भोग लगाना अनिवार्य है। आइए जानते हैं, छठ में ठेकुआ क्यों चढ़ाते हैं? सदियों से क्यों चली आ रही है यह परंपरा, इसके पीछे धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक कारण क्या हैं? लेकिन ठेकुआ पर चर्चा आगे बढ़ाने से पहले आइए बात करते हैं, छठ पूजा के संक्षिप्त इतिहास की और छठ व्रत की।
बता दें कि छठ एक पर्व एक चार दिवसीय त्योहार है, जो भगवान सूर्य को समर्पित है। हर साल यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि को समाप्त होता है। इस साल यह महापव 5 नवंबर को नहाय खाय से शुरू होगा और 8 नवंबर को प्रातः सूर्य अर्घ्य देने और व्रती के पारण करने के बाद समाप्त होगा।
प्राचीन काल में छठ पूजा
पुराण में उल्लिखित एक कथा के अनुसार राजा प्रियवद ने संतान प्राप्ति के लिए इस व्रत को किया था। वहीं इसका संबंध त्रेता युग से जुड़ता है और बताया जाता है कि माता सीता ने भी सूर्य षष्ठी पूजन किया था, जो मिथिला में होता आ रहा था। जबकि महाभारत में उल्लेख मिलता है कि सबसे पहले सूर्यपुत्र कर्ण ने अंग प्रदेश में सूर्यपूजन किया था। द्रौपदी भी अपने परिजनों के उत्तम स्वास्थ्य की कामना और लंबी उम्र के लिए सूर्य उपासना करती थीं।
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आडम्बर से मुक्त प्रकृति की पूजा है छठ
सुख-समृद्धि और मनोवांछित फल देने वाले इस पर्व को महिलाएं अधिक करती हैं, लेकिन, इस व्रत को पुरुष और महिला दोनों ही एक समान रूप से करते हैं। ऋग्वेद में सूर्य को सृष्टि का संचालक और पालनकर्ता कहा गया है। इस वेद के अनुसार, 'सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च' अर्थात सूर्यदेव समस्त चेतन और स्थूल यानी जड़ जगत की आत्मा हैं।
छठ पूजा में जरा-सा भी आडम्बर नहीं होता है और न ही कोई भेदभाव होता है। इस पूजा में जो भी होता है, वो स्थानीय होता है, स्थानीय जरूरतों के मुताबिक़ होता है, विशुद्ध रूप से प्राकृतिक होता है। भावार्थ के रूप में कहें तो, तो छठ पर्यावरण और प्रकृति की पूजा है। इस पूजा में ठेकुआ भी इसका अभिन्न अंग है।
ठेकुआ कैसे बनता है?
ठेकुआ को आटा, गुड़ और घी के मिश्रण से बनाया जाता है और तेल या घी में तला जाता है। इसमें थोड़ा ड्राय फ्रूट्स जैसे कुटा या घिसा हुआ नारियल, बादाम, काजू आदि भी डाला जाता है। वैदिक ज्योतिष के अनुसार, ये सभी इंग्रेडिएंट्स यानी आटा, गुड़ और घी रंग में सफेद और हलके-से सुनहरे होते हैं, जो भगवान सूर्य से सबंधित हैं।
सूर्य रंगों का प्रतिनिधित्व करता है ठेकुआ
ठेकुआ को जब तला जाता है, तब इसका रंग सुनहरा, नारंगी-भूरा हो जाता है। छठ में सूर्य को पहले शाम को और फिर सुबह में ठेकुआ और अन्य प्रसाद सामग्रियों के साथ अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने से पहले, काफी देर तक ठेकुआ और अन्य भोग सूर्य की किरणों से अभिषिक्त होते हैं। उनमें सूर्य की किरणें संचित हो जाती हैं यानी ठेकुआ में सूर्य की शक्ति समाहित हो जाती हैं।
आध्यात्मिक चेतना जगाता है ठेकुआ
सुनहरे-भूरे रंग का ठेकुआ अन्दर से सफेद होता है और सूर्य की ऊर्जा से ओत-प्रोत होता है। इसका सेवन हमें आध्यात्मिक चेतना और शक्ति के साथ-साथ चिकित्सकीय लाभ भी देता है। कोई परम्परा यूं ही हजारों से वर्षों से नहीं चलती आती है, कुछ तो बात होती है। ये अलग बात है, लोगों ने इसे भुला दिया है या नहीं जानते हैं।
छठ में ठेकुआ क्यों चढ़ाते हैं?
इसलिए ठेकुआ कहलाता है महाप्रसाद
छठ पूजा में इन चीजों को पौराणिक काल से शामिल करने की यही खास वजह है। ताकि लोग धार्मिक भावना के लिहाज से इसे अपने भोजन में जरूर शामिल करें। खास बात ये है कि छठ के प्रसाद में शामिल सभी चीजों का स्वाद भी बेमिसाल होता है और ये स्थानीय रूप में ही बनते या मिलते हैं। छठ की सभी चीजें बिहार, यूपी, झारखण्ड और आसपास के भौगोलिक खेतिहर संस्कृति के अभिन्न अंग हैं।
छठ पूजा में चढ़ाया जाने वाला हर भोग और प्रसाद बदलते मौसम में बीमारियों से बचाव और स्वास्थ्य की मजबूती के लिए जरूरी सिद्ध होते हैं। प्रसाद के तौर पर चढ़ाई गई छठ की सभी चीजें वैज्ञानिक तौर पर सेहत के लिए अच्छी हैं। वही आस्था और भक्ति युगों-युगों तक कायम रहेगी, जो वैज्ञानिक और तार्किक है। छठ का प्रसाद ठेकुआ इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यही कारण है कि छठ को महाप्रसाद कहा गया है और ठेकुआ के बिना छठ पूजा अधूरी मानी जाती है।
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