Chhath Puja 2024: किसने की थी पहली छठ पूजा? जानें इतिहास, महत्व और रीति-रिवाज
Chhath Puja 2024: बिहार, यूपी, झारखंड, पश्चिम बंगाल और ओडिशा के कुछ क्षेत्र और पड़ोसी देश नेपाल में दीपावली के बाद जिस त्योहार की धूम रहती है, वह है छठ पूजा। वास्तव में, छठ पूजा इन क्षेत्र के लोगों के लिए साल का सबसे बड़ा त्योहार है। दीपावली के 6 दिन बाद मनाया जाने वाला यह पर्व एक चार दिवसीय त्योहार है, जो भगवान सूर्य को समर्पित है। हर साल यह पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से शुरू होकर सप्तमी तिथि को समाप्त होता है। आइए छठ महापर्व के कैलिडोस्कोप में झांकते हैं और जानते हैं कि इसका इतिहास और महत्व क्या है, पहली छठ पूजा किसने की थी और इससे जुड़े महत्वपूर्ण रीति-रिवाज क्या हैं।
माता सीता ने रखा था व्रत
सबसे पहली छठ पूजा किसने की थी, इसकी पहली पौराणिक कथा त्रेता युग से संबंधित मानी गई है। कहते हैं, पहली छठ पूजा करने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका माता सीता थी। वे मिथिला की रहने वाली थीं, जहां प्राचीन काल से सूर्य की उपासना होती आ रही थीं। मान्यता के अनुसार भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण 14 वर्ष के वनवास से वापस अयोध्या लौटे थे। तब रावण के वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने मुद्गल ऋषि को आमंत्रित किया। इसके बाद माता सीता ने मुग्दल ऋषि के आश्रम में रहकर छह दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की। सप्तमी को सूर्योदय होने पर फिर से अनुष्ठान कर सूर्यदेव का आशीर्वाद प्राप्त किया। मान्यता है कि तब से छठ की शुरुआत हुई है।
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कर्ण थे सूर्य के महा-उपासक
महाभारत के साक्ष्य बताते हैं कि सूर्य षष्ठी पूजन यानी छठ पूजा की शुरुआत सबसे पहले भगवान सूर्य के पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण न केवल सूर्य भगवान के पुत्र थे, बल्कि वे परम सूर्य भक्त थे। महाभारत में बताया गया है कि अपने राज्य अंग प्रदेश (वर्तमान में बिहार का भागलपुर) में वे घंटों तक जल में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। कहते हैं कि सूर्य देव की कृपा से ही वे महान योद्धा और राजा बने थी। आज भी छठ महापर्व में भगवान दिनकर सूर्य को अर्घ्य देने की यही परंपरा प्रचलित है।
द्रौपदी ने किया था सूर्य षष्ठी पूजन
एक और कथा के अनुसार भी यह साक्ष्य मिलता है कि छठ महापर्व की शुरुआत महाभारत काल में हुई थी। महाभारत के अनुसार, जब पांडव अपना पूरा राजपाट जुए में हार गए थे और 12 वर्षों के वनवास पर चले गए थे। तब उनके साथ द्रौपदी भी थीं और उन्होंने सूर्य षष्ठी पूजन का महाव्रत रखा था। कहते है, इस व्रत को करने से पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया और द्रौपदी की सभी मनोकामनाएं पूरी हुई थी।
बेहद कठिन पर्व है छठ
छठ एक बेहद कठिन पर्व है। इसका व्रत रखने वाले को 'व्रती' कहते हैं। व्रती छठ पर्व के 4 दिनों में काफी पवित्रता और निष्ठा से इससे जुड़े हर रस्म और रिवाज को पूरा करते हैं। मान्यता है कि एक छोटा से छोटा नियम टूटने पर व्रत खंडित हो जाता है, चाहे वह भूल अनजाने में भी क्यों न हुआ हो। लोगों के मानना है कि छठ पूजा में किसी भूल या गलती की थोड़ी भी गुंजाइश नहीं है। कहते हैं, छठ पूजा में की हुई गलती का फल तुरंत मिल जाता है, जो अक्सर अशुभ और अनिष्टकारी होता है।
बता दें कि छठ पूजा में लगभग 72 घंटे तक निर्जला यानी बिना पानी का रहना पड़ जाता है, जो इस पर्व का सबसे कठिन भाग है। दूसरी सबसे बड़ी कठिनाई है, डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य देने के लिए ठंड के मौसम में ठंडे पानी में घंटों हाथ जोड़कर खड़ा रहना। व्रती का मन, वचन और कर्म से खुद को पूरी पूजा के दौरान शुचिता और पवित्रता से रखना भी काफी चुनौतीपूर्ण होता है। इन कारणों से छठ पर्व बेहद कठिन हो जाता है।
कब है छठ 2024?
छठ एक पर्व मात्र नहीं है, बाली एक महान सामाजिक उत्सव है, जो लोगों को एक साथ लाता है और सामाजिक बंधन को मजबूत करता है। बिहार, यूपी और झारखंड के लोग, चाहे दुनिया में कहीं हों, वे छठ के मौके पर घर जरूर जाते हैं। इस साल छठ पूजा की शुरुआत 5 नवंबर से होगी और इसका समापन 8 को सुबह की सूर्य पूजा का अर्घ्य और पारण से होगा।
जानें छठ के महत्वपूर्ण रीति-रिवाज
छठ पूजा न केवल आस्था, पवित्रता और प्रकृति से जुड़ा का त्योहार है। इस महापर्व शुरुआत नहाय-खाय की रस्म या विधि से होती है। आइए जानते हैं, साल 2024 में छठ पूजा से जुड़े महत्वपूर्ण रीति-रिवाज कब हैं?
- नहाय-खाय: इस रीति से छठ महापर्व का आगाज होता है, जो मंगलवार 5 नवंबर, 2024 को है।
- खरना: यह एक प्रकार से छठ माता का आह्वान है, जो नहाय-खाय के अगले दिन शाम में किया जाता है। यह बुधवार 6 नवंबर, 2024 को है।
- संध्या सूर्य अर्घ्य: इस दिन शाम में सूर्य भगवान को पहला अर्घ्य दिया जाता है, जो इस साल गुरुवार 7 नवंबर, 2024 को है।
- प्रातः सूर्य अर्घ्य: इस दिन सुबह में भगवान सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया जाता है, शुक्रवार 8 नवंबर, 2024 को है।
- पारण: प्रातः सूर्य अर्घ्य के दिन यानी 8 नवंबर, 2024 को व्रती के पारण से इस व्रत का विधिवत समापन होता है।
छठ पूजा का महत्व यह है कि यह प्रकृति का उत्सव माना गया है। यह सूर्य, जल और प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का प्रतीक है। यह दृढ़ विश्वास किया जाता है कि छठ पूजा करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं। इसलिए लोग अपने परिवार की खुशी, स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए छठ माता से प्रार्थना करते हैं।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।