Maha kumbh 2025: नागा साधु और अघोरी साधु में क्या होता है अंतर?
Naga Sadhus and Aghori Sadhus: इस बार संगम नगरी प्रयागराज में दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला "महाकुंभ" आयोजित हो रहा है। यह आयोजन हर बार लाखों श्रद्धालुओं और साधु-संतों को अपनी ओर खींचता है। इस महाकुंभ में देश और दुनिया के कोने-कोने से नागा साधु और अघोरी साधु भी हिस्सा लेने आएंगे। जहां नागा साधु धर्म के रक्षक माने जाते हैं, वहीं अघोरी साधु अपनी अद्भुत और रहस्यमय साधना के लिए जाने जाते हैं। दोनों साधु वर्ग दिखने में भले ही एक जैसे लगते हों, लेकिन उनकी परंपराएं और साधना के तरीके पूरी तरह से अलग होते हैं।
नागा साधु (Naga Sadhus)
नागा साधु भारतीय धार्मिक परंपरा का अहम हिस्सा हैं। इनकी परंपरा का प्रारंभ 8वीं सदी में आदिगुरु शंकराचार्य ने किया था। नागा साधुओं का मुख्य उद्देश्य धर्म की रक्षा करना और शास्त्र विद्या में निपुण होना है। वे अखाड़ों से जुड़े होते हैं और समाज की सेवा व धर्म प्रचार करते हैं। ये साधु कठिन तपस्या और शारीरिक क्षमता के लिए जाने जाते हैं। नागा साधु शरीर पर भस्म लगाते हैं। उनकी साधना परंपरा अखाड़ों से संचालित होती है, जो उन्हें अनुशासन और संगठित जीवन का मार्ग दिखाती है।
अघोरी साधु (Aghori Sadhus)
अघोरी साधु भगवान शिव के अनन्य भक्त माने जाते हैं। ये साधु अघोर पंथ को मानते हैं और कपालिका परंपरा का अनुसरण करते हैं। इनके साथ हमेशा एक नरमुंड रहता है, जो उनकी साधना का प्रतीक है। अघोरी साधुओं के गुरु भगवान दत्तात्रेय माने जाते हैं, जिन्हें शिव, विष्णु और ब्रह्मा का अवतार कहा गया है। ये साधु दुनिया की सामान्य परंपराओं से अलग रहकर जीवन और मृत्यु के रहस्यों को समझने में लगे रहते हैं। जहां नागा साधु धर्म और समाज के लिए काम करते हैं, वहीं अघोरी साधु अपनी साधना में लीन रहते हैं और सिर्फ भगवान शिव की उपासना करते हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।