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कोटितीर्थ कुंड के जल के बिना अधूरी है महाकाल की पूजा, हनुमानजी लाए थे समस्त तीर्थों का जल, जानें पूरी कथा

Ujjain Mahakaleshwar: मध्य प्रदेश की धार्मिक राजधानी उज्जैन स्थित विश्व प्रसिद्ध बाबा महाकाल की सुबह में होने वाली भस्म आरती का विशेष महत्व है। इस आरती से पहले उनका विशेष जल से अभिषेक किया जाता है। आइए जानते हैं, यह पवित्र जल कहां से आता है और इसका महत्व क्या है?
09:28 AM Jul 22, 2024 IST | Shyam Nandan
कोटितीर्थ कुंड के जल के बिना अधूरी है महाकाल की पूजा  हनुमानजी लाए थे समस्त तीर्थों का जल  जानें पूरी कथा

Ujjain Mahakaleshwar: भगवान शिव का प्रिय महीना सावन शुरू हो चुका है। इस मौके पर उज्जैन स्थित महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग मंदिर में श्री महाकाल की भस्म आरती के पहले विशेष जलाभिषेक किया जाता है। इस जल के बिना भगवान महाकाल की पूजा अधूरी मानी जाती है। कहते हैं, जिस जल से उनका अभिषेक होता है, उसमें भारत के सभी तीर्थों का जल होता है। आइए जानते हैं, इस पवित्र जल की विशेषताएं, महत्व और इतिहास।

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कोटि तीर्थ कुंड से लाया जाता जल

सदियों से भगवान महाकाल की भस्म आरती से पहले चढ़ने वाला जल जल कोटितीर्थ कुंड से लाया जाता है। यह एक प्राकृतिक कुंड है, जो महाकाल मंदिर के पिछले हिस्से में स्थित है। मान्यता है कि इस कुंड का जल औषधि-युक्त जल है। इस कुंड के जल में के बारे कहा जाता है कि जो व्यक्ति इसे ग्रहण करता है, उसके सभी रोग और शोक खत्म हो जाते हैं, जीवन की बाधाएं दूर होने लगती है। बता दें, हजारों साल से शिप्रा नदी और इस पावन कुंड के जल से महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का अभिषेक-पूजन होता आ रहा है।

हरिओम जल से होता है महाकाल का पंचामृत अभिषेक

प्रतिदिन सूर्योदय से पहले मदिर के गर्भगृह की सफाई के बाद भगवान महाकाल को स्नान करवाया जाता है। इसके बाद उनका 'पंचामृत अभिषेक' होता है। इस दौरान सारा जल कोटितीर्थ कुंड से लाया जाता है। इस जल को 'हरिओम जल' कहते हैं। इसके बाद बाबा महाकाल की भस्म आरती होती है। बता दें, सदियों से इसी जल का उपयोग मंदिर आने वाले शिव भक्त और श्रद्धालु भगवान महाकाल का अभिषेक करने के लिए करते आ रहे हैं।

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हनुमानजी लाए थे सभी तीर्थों का जल

महाकाल की पावन नगरी उज्जैन स्थित कोटितीर्थ कुंड एक अतिप्राचीन प्राकृतिक सरोवर है। इस सरोवर यानी कुंड का वर्णन और महत्व पौराणिक कथाओं में भी मिलता है। पौराणिक कथाओं के अनुसार, लंका विजय करने के बाद भगवान श्रीराम ने यज्ञ करने के लिए सभी तीर्थों का जल लाने का काम हनुमानजी को दिया था। भगवान हनुमान आखिरी में अवंतिका यानी उज्जैन नगरी पहुंचे थे, तब उन्होंने इस कुंड में उस समस्त तीर्थो का जल डाला था। इसलिए इसको कोटितीर्थ यानी करोड़ों तीर्थ के जल वाला कुंड कहते हैं। इसके प्रमाण के रूप में महाकाल मंदिर परिसर में हनुमानजी एक प्रतिमा है, जिसमें उनके एक हाथ में कलश है और दूसरे हाथ में सोटा है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक  शास्त्र पर आधारित हैं और केवल जानकारी के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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