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Ganesh Chaturthi 2024: माता पार्वती को क्यों करनी पड़ी भगवान गणेश की पूजा ?

हिन्दू धर्म में कोई भी शुभ कार्य शुरू करने से पहले भगवान गणेश की पूजा की जाती है। मनुष्य तो मनुष्य देवगण भी गणेश जी की पूजा किये बिना कोई भी शुभ कार्य आरम्भ नहीं करते। ऐसे में एक बार माता पार्वती ने भी श्री गणेश की पूजा की थी। जिसके बाद से गणेश चतुर्थी मनाया जाता है। तो आइये जानते हैं इससे जुडी पौराणिक कथा क्या है?
05:47 PM Sep 06, 2024 IST | News24 हिंदी
भगवान गणेश ,गणेश चतुर्थी क्यों मनाया जाता है
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Ganesh Chaturthi 2024: हिन्दू धर्मग्रंथों के अनुसार हर माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को गणेश जी की पूजा करना शुभ माना जाता है लेकिन भाद्र कृष्णपक्ष की चतुर्थी को गणेश पूजन करने का ख़ास महत्त्व है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन माता पार्वती ने भगवान गणेश की पूजा की थी। तो आइये जानते हैं इससे जुड़ी पौराणिक कथा क्या है?

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गणेश पुराण की कथा

गणेश पुराण के प्रथम खंड के सातवें अध्याय में वर्णित कथा के अनुसार त्रिपुरासुर वध के बाद भी जब काफी दिनों तक भगवान शिव कैलाश पर्वत वापस नहीं आए तो माता पार्वती चिंतित हो उठी। वह अपने कक्ष से बाहर निकली परंतु भगवान शिव उन्हें कहीं भी दिखाई नहीं दिए। जिसके बाद माता पार्वती दुखी हो गई और शोकाकुल होकर रोने लगी । उसी समय कैलाश से होते हुए एक भील कहीं जा रहा था उसने जब माता पार्वती को रोते हुए देखा तो वह पर्वतराज हिमालय के पास गया और बोला हे महाराज ! ना जाने क्यों आपकी पुत्री पार्वती कैलाश पर अकेली बैठी रो रही है। भील की बातें सुनकर पर्वतराज चिंतित हो उठे और अपनी पुत्री माता पार्वती के पास तत्काल ही कैलाश आ पहुंचे ।

माता पार्वती ने की श्री गणेश की पूजा

हिमालय ने कहा पुत्री! क्या हुआ और तुम रो क्यों रही हो ? तब गिरिजनन्दिनी पार्वती ने कहा पिताजी ! न जाने मेरे स्वामी भगवान शिव कहां हैं ? कुछ दिन पहले वो त्रिपुरासुर से युद्ध करने गए थे। कई दिनों से सुनने में आ रहा है की भगवान शंकर ने उस असुर का वध कर दिया परन्तु वे अभी तक लौट कर नहीं आये हैं। पिताजी आप ही बताइये की मैं ऐसा क्या उपाय करूं की मेरे स्वामी सकुशल लौट आएं। माता पार्वती की बातें सुनकर पर्वतराज कुछ देर सोचने के बाद बोले पुत्री तुम भगवान श्री गणेश का पूजन करो।

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पुत्री सुबह उठकर नित्यकर्म से निवृत होने के बाद स्नान कर लेना। उसके बाद विघ्नहर्ता गणेश की मूर्ति बनाकर शास्त्रोक्त विधि से मूर्ति की पूजा करना। ध्यान रहे पूजा के बाद गणेश जी को भोग अवश्य लगाना और भोग में मोदक यानि लड्डू देना मत भूलना। भोग लगाने के बाद भगवान गणेश का भक्तिभाव पूर्वक ध्यान लगाना। ऐसा करने से वे शीघ्र ही प्रसन्न हो जायेंगे। जब तक शिवजी न लौटें तब तक गणेश जी के एकाक्षरी 'गं' मन्त्र का जप करती रहना। इतना कहकर पर्वतराज हिमालय वहां से चले गए। पिता के जाने के बाद माता पार्वती ने विधिपूर्वक भगवान गणेश का पूजन किया। फिर कुछ दिनों के बाद गणेश जी की कृपा से भगवान शिव कैलाश लौट आये।

गणेश पुराण के अनुसार श्रावणशुक्ल चतुर्थी से भाद्रशुक्ल चतुर्थी तक गणपति पूजन और अनुष्ठान करना सबसे उत्तम बताया गया है। पूजा के उद्देश्य से एक से एक सौ आठ मूर्ति को स्थापित करना शुभ बताया गया है। पूजा संपन्न होने के बाद मूर्ति का किसी पवित्र नदी या सरोवर में विसर्जन करना चाहिए।

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