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भगवान शिव और पांडवों से जुड़ा है गढ़मुक्तेश्वर, गंगा दशहरा पर होते हैं पितृ दोष से मुक्ति के अनुष्ठान
Ganga Dussehra 2024: उत्तर प्रदेश के हापुड़ जिले में स्थित गढ़मुक्तेश्वर धाम का वर्णन महाभारत और पुराणों में भी मिलता है, जिससे इसकी प्राचीनता और महत्व को समझा जा सकता है। यह तीर्थस्थल गंगा नदी के किनारे स्थित है, जो पितरों और पूर्वजों के पिंडदान के लिए प्रसिद्ध है। इसकी प्रसिद्धि का एक दूसरा कारण है, कार्तिक मास में पूर्णिमा के मौके पर यहां लगने वाला वार्षिक मेला। इस मेले को उत्तर भारत का सबसे बड़ा धार्मिक मेला माना जाता है।
गंगा दशहरा पर होती है विशेष पूजा
गढ़मुक्तेश्वर में गंगा के किनारे बने गंगा मंदिर में गंगा दशहरा के मौके पर विशेष पूजा और अनुष्ठान किए जाते हैं। बता दें, गंगा दशहरा ज्येष्ठ माह में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है। इस तिथि को देवी गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई थीं। यूं तो यहां सालों भर पितरों का तर्पण और पिंडदान किया जाता है, लेकिन गंगा दशहरा पर्व के दिन यहां भारी संख्या में लोग गंगा स्नान करने और पितृ दोष से मुक्ति के लिए पूजा और अनुष्ठान के लिए आते हैं।
इसलिए कहलाता है गढ़मुक्तेश्वर
गढ़मुक्तेश्वर संभवतः हरिद्वार-ऋषिकेश, गया और प्रयाग जैसे भारत के प्राचीनतम तीर्थस्थलों में से एक है। शिव पुराण और भागवत पुराण के अनुसार, जब भगवान शिव के गण शापित होकर पिशाच योनि में चले गए थे, तब उन्हें यहीं पर इस योनि से मुक्ति मिली थी। इसका वास्तविक नाम गणमुक्तेश्वर था, जो आज गढ़मुक्तेश्वर के नाम से जाना जाता है।
पांडवों ने यहीं किया था पिंडदान
कहते हैं, महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने युद्ध में मृत अपने सगे-संबंधियों का तर्पण और पिंडदान गढ़मुक्तेश्वर में ही किया था। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, यहां पिंडदान करने के बाद बिहार के गया नामक स्थान पर पिंडदान और श्राद्ध करने की जरुरत नहीं होती है।
गढ़मुक्तेश्वर के ब्रजघाट का महत्व
गंगा नदी किनारे स्थित इस पौराणिक धाम का सबसे पवित्र घाट 'ब्रजघाट' को माना जाता है। मान्यता है कि यह घाट हरिद्वार की हर की पौड़ी, नासिक के रामकुंड घाट और काशी के दशाश्वमेध घाट की तरह पवित्र है।
कैसे पहुंचें यहां?
गढ़मुक्तेश्वर रेल और सड़क मार्ग दोनों से भलीभांति जुड़ा है, लेकिन यहां के रेलवे स्टेशन पर एक्सप्रेस ट्रेन बहुत कम संख्या में रूकती है। इसलिए यहां सड़क मार्ग से पहुंचना ज्यादा आसान है। यह तीर्थस्थल दिल्ली-मुरादाबाद नेशनल हाईवे 09 पर हापुड़ शहर से लगभग 35 किमी की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से यह धाम लगभग 120 किमी दूर है, जहां लगभग ढाई घंटे में पहुंचा जा सकता है।
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