Garbh Geeta: मां के गर्भ में बच्चों को सहनी पड़ती है ये पीड़ाएं,जानिए इसके बारे में गर्भ गीता क्या कहती है?

Garbh Geeta: माँ के गर्भ में जब कोई बच्चा पलने लगता है तो वह एक महिला के लिए सबसे ख़ुशी का पल होता है। लेकिन ये जानकर आप हैरान हो जाएंगे की गर्भ में बच्चे को बहुत ही असहनीय पीड़ा सहनी पड़ती है। जिसका वर्णन गर्भ गीता में किया गया है। गर्भ गीता में भगवान कृष्ण ने कहा है कि जो भी प्राणी गर्भ में आता है उसे कष्ट भोगना ही पड़ता है और इसके कई कारण हैं। आइए इस लेख में इन कारणों के बारे में विस्तार से जानते हैं।

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गर्भ में बच्चों का क्या हाल होता है?

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Garbh Geeta: गर्भ गीता में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को जन्म-मरण से जुड़ी बातें विस्तार से बताई है। श्री कृष्ण कहते हैं कि जो भी मनुष्य अपने जीवनकाल में गर्भ गीता का पाठ करता है वह जन्म-मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है अर्थात उसे इस मृत्युलोक पर कभी जन्म नहीं लेना पड़ता। इसके आलावा श्री कृष्ण ने गर्भ गीता में यह भी बतलाया है कि मां के गर्भ में प्राणियों को असहनीय पीड़ा क्यों सहनी पड़ती है। आइए जानते हैं कि आखिर जन्म से पहले भी प्राणियों को गर्भ में कष्ट क्यों सहना पड़ता है?

गर्भ गीता क्या कहता है?

गर्भ गीता में अर्जुन भगवान श्री कृष्ण से पूछते हैं हे मधुसूदन ! कोई भी प्राणी जब मां के गर्भ में आता है तो वह किस पूर्व कर्म के कारण आता है? और माता के गर्भ में जन्म लेने से पहले प्राणी इतना कष्ट क्यों भोगता है ? तब भगवान कृष्ण कहते हैं हे अर्जुन ! जन्म-मरण तो संसार में लिप्त रहने वाले प्राणियों की नियति है। ऐसे प्राणी सांसारिक वस्तुओं की कामना तो करता है परन्तु मेरी भक्ति पर ध्यान नहीं देता। इसी कारण वह बारम्बार अलग-अलग योनियों में आकर जन्म-मरण का दुःख भोगता है।

हे अर्जुन ! वन-वन भटकते हुए सन्यासी भी मुझे तब तक प्राप्त नहीं कर पाते, जब तक उनके ह्रदय में मेरा निवास नहीं होता। जटा धारण करने अथवा भस्म लगा लेने मात्र से कोई भी प्राणी मेरी कृपा का पात्र नहीं बन जाता। मैं ऐसे ह्रदय वाले प्राणी को मिलता हूँ जो काम,क्रोध,मोह और अहंकार से परे है। वहीं जो प्राणी जीवित रहते काम,क्रोध,मोह और अहंकार के वश में रहता है उसे पुनः किसी न किसी योनि में अवश्य जन्म लेना पड़ता है।

गर्भ में कैसे रहता है प्राणी?

मां के गर्भ में आने के बाद वह मांस-मज्जा और गंदे रुढोरों यानि खूनो से घिरा रहता है। जब वह गर्भ में छह माह का होता है तो दुर्गंधों के बीच रहना पड़ता है। ऐसे  में गर्भ में पल रहा प्राणी सोचता है आखिर मैंने पूर्वजन्म में ऐसा कौन सा अधर्म किया था जो मुझे इस नरक में आना पड़ा। वह जोर जोर से ईश्वर को आवाज देने लगता है। गर्भ में पल रहा प्राणी ईश्वर से कहता है कि हे प्रभु मैं मोह से भरी दुनिया में जन्म नहीं लेना चाहताा। परन्तु ईश्वर उसकी बातों को अनसुना कर देते हैं। हे अर्जुन ! मां के गर्भ में प्राणियों को मृत्युलोक से भी ज्यादा कष्ट भोगना पड़ता है। परन्तु कौन सा प्राणी कितना कष्ट भोगेगा वह उसके पूर्व में किये गए कर्मो पर निर्भर होता है।

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उसके बाद गर्भ में पल रहा प्राणी अपने पूर्व जन्म के कर्मो के बारे में सोचने लगता है। उसे याद आता है की कैसे उसने अपने पूर्वजन्म में माता-ता को कष्ट पहुँचाया था?,कैसे उसने स्वाद के लिए जीवों की हत्या की थी?,कैसे उसने भौतिक सुखों की पूर्ती के लिए लोगों से रिश्वत लिया था?, धन कमाने के लिए उसने कितना झूठ बोला था?,फिर जैसे जैसे उसके जन्म की तारीख नजदीक आती है वैसे वैसे वह अपने पूर्व जन्म के बात को भूलने लगता है और जन्म लेने के बाद उसे कुछ भी याद नहीं रहता।

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Disclaimer: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

 

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