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Garud Puran Story: मृत्यु के बाद 13 दिनों तक अपने परिवार के बीच क्यों भटकती रहती है आत्मा ?

Garud Puran Story: हिन्दू धर्म में जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो, गरुड़ पुराण का पाठ किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि गरुड़ पुराण के पाठ को सुनकर आत्मा को मुक्ति मिलती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि मृत्यु के बाद 13 दिनों तक मृत आत्मा अपने घर में ही भटकती रहती है। चलिए इसका कारण जानते हैं, जिसके बारे में गरुड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है।
01:46 PM Oct 19, 2024 IST | Nishit Mishra
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Garud Puran Story: गरुड़ पुराण में मृत्यु के बाद आत्मा के साथ क्या होता है, इसका विस्तार से वर्णन किया गया है। गरुड़ पुराण कहता है कि मृत्यु के बाद आत्मा को यमलोक जाने में एक साल का समय लगता है। मृत्यु के बाद आत्मा अपने परिवार के बीच ही मौजूद रहती है। चलिए जानते हैं कि जब आत्मा परिवार के आस-पास मौजूद होती है तो वह क्या सोचती है और यमदूत उसे तेरह दिनों तक यमलोक क्यों नहीं ले जाते?

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गरुड़ पुराण कथा

गरुड़ पुराण में बताया गया है कि जब किसी की मृत्यु हो जाती है तो, यमराज के दूत उसकी आत्मा को अपने साथ यमलोक ले जाते हैं। जहां उसके पुण्य और पाप का लेखा-जोखा किया जाता है। फिर चौबीस घंटे के अंदर उस मृत आत्मा को यमदूत घर छोड़ जाते हैं। यमदूत के द्वारा वापस छोड़ जाने के बाद मृतक की आत्मा अपने परिजनों के बीच भटकती रहती है। मृत आत्मा अपने परिजनों को पुकारती रहती है लेकिन उसकी आवाज को कोई नहीं सुनता। यह देख मृतक की आत्मा बैचेन हो जाती है और जोर जोर से चिल्लाने लगती है। तब भी मृत आत्मा की आवाज को कोई नहीं सुनता। अगर मृत शरीर का अंतिम संस्कार नहीं हुआ होता है तो आत्मा उस शरीर में प्रवेश करने की कोशिश करती है। लेकिन यमदूत के पाशों में बंधे होने के कारण वह आत्मा मृत शरीर में प्रवेश नहीं कर पाती है।

आत्मा क्या सोचती है?

गरुड़ पुराण के अनुसार किसी अपनों की मृत्यु हो जाने पर जब उसके परिजन रोते बिलखते हैं तो, यह देख मृत आत्मा दुखी हो जाती है। परिजनों को रोता हुआ देख मृत आत्मा भी रोने लगती है, परन्तु वह कुछ कर नहीं पाती। फिर अपने जीवन काल में किए हुए कर्मों को याद कर दुखी हो जाती है। गरुड़ पुराण कहता है कि जब यमदूत मृत आत्मा को परिजनों के बीच छोड़ जाते हैं तो, उस आत्मा में इतना बल नहीं रहता कि वह यमलोक की यात्रा तय कर सके।

पिंडदान का महत्त्व

गरुड़ पुराण के मुताबिक मृत्यु के बाद जो दस दिनों तक पिंडदान किया जाता है उससे मृत आत्मा के विभिन्न अंगों की रचना होती है। फिर ग्यारहवें और बारहवें दिन जो पिंडदान किया जाता है, उससे मृत आत्मा रुपी शरीर के मांस और त्वचा का निर्माण होता है। फिर तेरहवीं के दिन जो मृत आत्मा के नाम से पिंडदान किया जाता है, उससे ही वो यमलोक की यात्रा तक का मार्ग तय करती है। अर्थात मृत्यु के बाद तेरह दिनों तक जो मृत आत्मा के नाम से पिंडदान किया जाता है, उसी से आत्मा को मृत्युलोक से यमलोक तक जाने का बल मिलता है।

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इसलिए मृत आत्मा मृत्यु के बाद भी तेरह दिनों तक अपने परिजनों के बीच भटकती रहती है। मृत आत्मा को पृथ्वीलोक से यमलोक तक जाने में एक साल का समय लगता है। गरुड़ पुराण कहता है कि तेरह दिनों तक किया गया पिंडदान मृत आत्मा के लिए भोजन का काम करता है। इसलिए हिन्दू धर्म में किसी की मृत्यु हो जाने के बाद तेरहवीं मनाई जाती है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है

 

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