भगवान जगन्नाथ की बिना पलकों की बड़ी-बड़ी आंखों का रहस्य, चौंका देंगी मान्यताएं
Jagannath Rath Yatra 2024: ओडिशा के जगन्नाथ मंदिर और इसकी रथयात्रा दुनिया भर में काफी प्रसिद्ध हैं। देश-विदेश से लोग यहां रथयात्रा में शामिल होने के लिए यहां आते हैं। इस बार जगन्नाथ रथयात्रा 7 जुलाई, 2024 को शुरू होगी। ओडिशा के पुरी में स्थित जगन्नाथ मंदिर में इस रथयात्रा की सभी तैयारियां पूरी कर ली गई हैं, अब बस जुलाई महीने के पहले रविवार को भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की यात्रा निकाली जाती है।
इस रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमा को पूरे शहर में 10 दिनों तक घुमाया जाता है। कई मायनों में बाकी भगवानों की प्रतिमाओं से भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा काफी अलग है। भगवान जगन्नाथ की प्रतिमा में उनकी आंखों पर पलकें नहीं होती हैं और उनकी आंखें भी काफी बड़ी होती हैं। क्या आपको इसके पीछे मान्यता के बारे में पता है? इस खबर में हम आपको यहीं बताने वाले हैं।
भगवान जगन्नाथ की आंखों का रहस्य
आमतौर पर मंदिरों में जब भी भगवान की प्रतिमा में उनकी आंखें बहुत ही सौम्य होती हैं। वहीं जगन्नाथ भगवान की प्रतिमा की आंखें बहुत ही बड़ी होती हैं। इसके पीछे मान्यता है कि हर रोज लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान जगन्नाथ के दर्शन के लिए आते हैं। ऐसे में भगवान जगन्नाथ की नजरों से कोई भक्त छूटना नहीं चाहिए, इसलिए भगवान की आंखें इतनी बड़ी बनाई जाती हैं। अगर एक बार को भक्त भगवान को न भी देख सके तो भी भगवान उसे देख लेंगे।
चौंकाने वाली मान्यताएं
स्थानीय मान्यता के मुकाबित, अगर भगवान जगन्नाथ एक पल के लिए भी अपनी आंखें बंद कर लें या फिर पलकें झपका लें तो इतने समय में वे अपने कई हजार भक्तों को देख नहीं पाएंगे। क्योंकि यहां भगवान के दर्शन के लिए हर रोज़ लाखों लोगों का भीड़ उमड़ता है। इसलिए भगवान जगन्नाथ की आंखें इतनी बड़ी और बिना पलकों के बनाई जाती हैं, ताकि भगवान जगन्नाथ की नज़रों से कोई भक्त न छूटे और उनका आशीर्वाद सभी को मिले।
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कई लोगों को लगता है कि भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की जो प्रतिमाएं मंदिर में स्थापित हैं वह स्थायी हैं। हालांकि ऐसा नहीं है, जगन्नाथ मंदिर में स्थापित प्रतिमाओं को आषाढ़ के अधिक मास में पूरी विधि-विधान के साथ बदला जाता है। इसमें मंदिर की पुरानी प्रतिमाओं को समुद्र में प्रवाहित कर दिया जाता है और नई प्रतिमाओं का निर्माण कर उसकी स्थापना की जाती है। इसे नव कलेवर उत्सव कहा जाता है।