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सावधान! क्या आप भी पहनते हैं हाथ में कई महीनों तक कलावा? तो जान लें रक्षा सूत्र से जरूरी ये खास बातें
Kalava Tie Rules: सनातन धर्म में प्रायः हर धार्मिक कार्य में हाथ में कलावा जरूर बांधा जाता है। इस पवित्र धागे के कई नाम हैं, जैसे रक्षा सूत्र, मौली, राखी आदि। यह केवल लाल, नारंगी या पीले रंग का धागा मात्र नहीं है। मान्यता है कि यह एक ढाल की तरह काम करता है और इसे पहनने से नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियों से रक्षा होती है। साथ ही यह आस्था और विश्वास में भी वृद्धि करता है। आइए जानते हैं कि कलावा या रक्षा सूत्र बांधने से क्या लाभ होते हैं, इसे बांधने के नियम क्या हैं और कितने दिनों बाद कलावे को उतार देना चाहिए?
द्रौपदी और श्रीकृष्ण से जुड़ी है कलावे की कथा
महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार, एक बार गलती से जब भगवान श्रीकृष्ण की कलाई कटने से जख्मी हो गई थी, तब द्रौपदी ने खून बहने से रोकने के लिए तुरंत अपनी साड़ी का आंचल फाड़ कर कलाई पर बांध दिया था। यहां साड़ी के टुकड़े ने पवित्र धागे का काम किया था। माना जाता है कि कलाई पर ‘पवित्र धागा’ बांधे जाने की यह पहली घटना थी। इसके बदले में भगवान श्रीकृष्ण ने चीर हरण से द्रौपदी की रक्षा की थी।
कलावा बांधने से लाभ
मान्यता है कि कलाई के नाड़ी बिंदु के पास चारों ओर कलावा बांधने से मनुष्य की शारीरिक और आध्यात्मिक शक्ति और ऊर्जा संतुलित रहती है। इसे बांधने से ध्यान और प्रार्थना में एकाग्रता बढ़ती है। रक्षा सूत्र या कलावा पहनने से जीवन से नकारात्मकता दूर होती है और बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
कलावा या रक्षा सूत्र बांधने के नियम
हिन्दू धर्म में कलावा या रक्षा सूत्र बांधने के नियम पुरुष और स्त्री के लिए भिन्न-भिन्न हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पुरुष को दाएं हाथ में कलावा बांधना चाहिए। अविवाहित लड़कियों को भी दाएं हाथ में कलावा पहनना अधिक शुभ होता है। वहीं विवाहित स्त्रियों को बाएं हाथ में कलावा बांधने से अधिक लाभ होता है। हाथ में कलावा बंधवाते समय उस हाथ की मुट्ठी बांध लेनी चाहिए। साथ ही दूसरे हाथ को सिर पर रख लिया जाता है। कलावा या रक्षा सूत्र बांधने के नियम से जुड़ी एक अहम नियम यह है कि इसे कलाई में केवल 3 बार ही लपेटना चाहिए।
कब उतार देना चाहिए कलावा
मान्यता है कि रंग उतरा हुआ कलावा बांधना अशुभ होता है। इसलिए उसे तत्काल उतार देना चाहिए। बहुत से लोग कलावे को बहुत दिनों तक पहने रहते हैं। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार, 21 दिन के बाद कलावे की सकारात्मक ऊर्जा समाप्त होने लगती है। इससे अधिक दिनों तक पहनने से कलावा बेअसर हो जाता है, यहां तक कि नकारात्मकता ही लेकर आता है। इसलिए 21 दिनों के बाद कलाई से कलावे को उतार कर बहती नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए।
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