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कितनी तरह की होती हैं कांवड़ यात्रा, क्या हैं उनसे जुड़े नियम... पहली बार कांवड़िया बनने से पहले जान लें ये बातें

Kawad Yatra 2024: साल 2024 में सावन के पवित्र महीने की शुरुआत 22 जुलाई से हो रही है। इस महीने में शिव भक्त और श्रद्धालु कांवड़ से जल ढोकर शिवालयों में भोलेनाथ का जलाभिषेक करते हैं। आइए जानते हैं, कांवड़ कितने तरह के होते हैं और उनसे जुड़े खास नियम क्या हैं?
07:49 AM Jul 11, 2024 IST | Shyam Nandan
कितनी तरह की होती हैं कांवड़ यात्रा  क्या हैं उनसे जुड़े नियम    पहली बार कांवड़िया बनने से पहले जान लें ये बातें

Kawad Yatra 2024: हिंदू धर्म में सावन माह भगवान शिव को समर्पित है। इस माह में श्रद्धालु व्रत, उपवास, पूजा-अर्चना और विभिन्न अनुष्ठानों से देवादिदेव भगवान महादेव को प्रसन्न करने के उपाय करते हैं। अनेक श्रद्धालु सावन सोमवार का विशेष व्रत रखते हैं, शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। वहीं कुछ शिव भक्त और श्रद्धालु इस पवित्र महीने में कांवड़ यात्रा करते हैं और पवित्र नदियों, जैसे गंगा, नर्मदा, शिप्रा और गोदावरी से जल लाकर शिवलिंग का अभिषेक करते हैं। मान्यता है कि सावन माह में कांवड़ यात्रा का विशेष लाभ होता है। शिव कृपा से मनोकामनाएं पूरी होती हैं। भगवान शिव के आशीर्वाद सुख-समृद्धि में बढ़ोतरी होती है।

कांवड़ यात्रा क्यों है विशेष?

कांवड़ यात्रा भगवान शिव के प्रति पूर्ण विश्वास और समर्पण की पराकाष्ठा है। यह यात्रा न केवल अटूट श्रद्धा और भक्ति को प्रदर्शित करती है, बल्कि मनोबल के उच्च स्तर को भी सामने लाती है। सावन में महीने में जो श्रद्धालु कांवड़ लेकर यात्रा पर निकलते हैं, उन्हें 'कांवड़िया' कहते हैं। सभी कांवड़िया गंगा और अन्य पवित्र नदियों से जल जल लेकर पैदल चलते हैं और विभिन्न शिव मंदिरों में जाकर जल चढ़ाते हैं। प्रायः यह यात्रा पूरे अनुशासन, पूर्ण संयम और जत्थे में की जाती है।

कांवड़ यात्रा के प्रकार

वर्त्तमान समय में सावन की कांवड़ यात्रा के 4 प्रकार देखे गए हैं, जिनके नियम भी अलग-अलग होते हैं। आइए जानते हैं, ये चारों कांवड़ यात्रा क्या है, कैसे की जाती हैं और इससे जुड़े नियम क्या हैं?

सामान्य कांवड़ यात्रा

सामान्य कांवड़ यात्रा सबसे लोकप्रिय है, क्योंकि इसके नियम सहज और सरल हैं। इसमें कावंडिया जब चाहे आराम कर सकते हैं और फिर से अपनी यात्रा शुरू कर सकता है। यूं तो यह यात्रा पूरी तरफ पैदल की जाती है, लेकिन अब लोग गाड़ी और बाइकों पर भी जल लेने जाते हैं और शिव मंदिरों में चढ़ाते हैं। बिहार और झारखंड में इस प्रकार के कांवड़ यात्रा को 'बोल बम' भी कहते हैं।

खड़ी कांवड़ यात्रा

खड़ी कांवड़ यात्रा सामान्य कांवड़ यात्रा से थोड़ी कठिन होती है। इसमें कांवड़ को लेकर लगातार चलना होता है। इस कांवड़ यात्रा में एक कांवड़िया की मदद के लिए और दो-तीन कांवड़िया होते हैं। जब एक कांवड़िया आराम करता है, तो दूसरा कांवड़ लेकर चलने की स्थिति में हिलता रहता है। इस यात्रा में कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते, इसलिए इसे खड़ी कांवड़ यात्रा कहते हैं।

Dak-Kawad-Deoghar

देवघर जाते हुए डाक कांवड़िया

डाक कांवड़

डाक कांवड़ यात्रा एक कठिन यात्रा है। इसमें कांवड़ लेकर या गंगाजल को पीठ पर ढोकर लगातार चलना पड़ता है। बिहार के सुल्तानगंज से देवघर जाने वाले डाक कांवड़ यात्री को 24 घंटे के अंदर देवघर के बाबा वैद्यनाथ धाम के शिवलिंग का जलाभिशेष करना अनिवार्य है, अन्यथा यह कांवड़ यात्रा अधूरी मानी जाती है। इसलिए प्रायः इस यात्रा के लिए रास्ता खाली करा दिया जाता है।

दांडी कांवड़ यात्रा

दांडी यात्रा को 'दंडप्रणाम कांवड़ यात्रा' भी कहते हैं। यह सबसे कठिन कांवड़ यात्रा है, जिसे पूरा करने में हफ्ते या महीने लग सकते हैं। इस यात्रा में श्रद्धालु गंगा घाट से शिव मंदिर तक दंडवत प्रणाम करते हुए यानी जमीन पर लेटकर अपनी हाथों सहित कुल लंबाई को मापते हुए आगे बढ़ता जाता है। इसमें यात्री अपनी इच्छानुसार आराम कर सकते हैं, लेकिन उनकी सहायता के लिए साथ में एक व्यक्ति का साथ होना जरूरी होता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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