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महाभारत का पूरा युद्ध देखने वाले बर्बरीक कलियुग में कैसे बने कृष्ण के अवतार खाटू श्याम? जानें अद्भुत कहानी
Khatu Shyam Story: भारतीय महाकाव्य महाभारत में अनेक वीर और योद्धाओं का वर्णन है, अपने शौर्य और पराक्रम से इतिहास में अमर हैं। अर्जुन, भीम, कर्ण, भीष्म पितामह, द्रोणाचार्य, अभिमन्यु, घटोत्कच, एकलव्य आदि कुछ ऐसे ही नाम हैं। लेकिन महाभारत के युद्ध में एक ऐसा भी वीर था, जिसकी शक्ति और दिव्य अस्त्रों के कारण सभी दंग रह गए थे। वह थे बर्बरीक।
बर्बरीक कौन थे?
बर्बरीक, भीम के पुत्र घटोत्कच और उसकी पत्नी मोरवी के पुत्र थे यानी वे भीम और हिडिम्बा के पोते थे। स्कंद पुराण की कथा के अनुसार, घटोत्कच और उनकी पत्नी के यहां एक महा-तेजस्वी बालक ने जन्म लिया। जन्म लेते ही वह बालक युवावस्था को प्राप्त हो गया। तब घटोत्कच ने उसे को सीने से लगाकर कहा, "हे पुत्र! तुम्हारे केश घुंघराले यानी बर्बराकार हैं, इसलिए तुम्हारा नाम ‘बर्बरीक’ होगा। हालांकि महाभारत युद्ध में एक योद्धा की तरह यह नाम कहीं दिखाई नहीं देता है, लेकिन वे इतने वीर थे महाभारत का युद्ध 18 दिन चलने की बजाय कुछ घंटों में खत्म हो गया होता। इससे लगता है कि यदि बर्बरीक युद्ध लड़ते तो वे अर्जुन, कर्ण और भीष्म पितामह से भी बड़े योद्धा साबित होते।
भगवान कृष्ण ने दिया शक्ति प्राप्त करने का सुझाव
स्कंद पुराण की कथा के अनुसार, बर्बरीक को लेकर उसके पिता घटोत्कच एक बार भगवान कृष्ण से मिलने द्वारिका पहुंचे। तब बर्बरीक ने भगवान कृष्ण से पूछा, "हे माधव श्रीहरि! संसार में उत्पन्न हुए जीव का कल्याण किस साधन से होता है?" तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से कहा, "तुम पहले बल प्राप्त करने के लिए देवियों की आराधना करो।" फिर भगवान ने बर्बरीक की प्रशंसा करते हुए कहा कि तुम्हारा हृदय बहुत ही सुन्दर है, इसलिए आज से तुम्हारा एक नाम ‘सुहृदय’ भी होगा।
तब बर्बरीक ने महीसागरसंगम तीर्थ में जाकर 9 दुर्गाओं की उपासना की। बर्बरीक ने तीन वर्षों तक देवियों की उपासना की। तब बर्बरीक की पूजा से संतुष्ट होकर देवियों ने उसे प्रत्यक्ष दर्शन दिया और साथ में वो दुर्लभ शक्ति प्रदान की, जो तीनों लोकों में पहले से किसी और के पास नहीं थी। देवियों ने बर्बरीक को एक नया नाम ‘चण्डिल’ भी दिया और आशीर्वाद दिया कि वह समस्त विश्व में प्रसिद्ध और पूजनीय होगा।
बर्बरीक को प्राप्त थी ये सिद्धियां
बर्बरीक ने देवी दुर्गा के नौ रूपों की तपस्या से कुछ ऐसी सिद्धियाँ प्राप्त थीं, जिनके बल से पलक झपते ही महाभारत के युद्ध में भाग लेनेवाले समस्त वीरों को मार सकते थे। कहते हैं, बर्बरीक की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी माता ने उन्हें तीन अद्भुत बाण दिए थे। इसलिए उन्हें 'तीन बाण धारी' भी कहा जाता है। माना जाता है कि उसके पास ऐसी धनुर्धारी विद्या थी, जिससे वे केवल महाभारत का युद्ध ही नहीं संपूर्ण पृथ्वी का विनाश मात्र तीन तीरों में ही कर सकते थे। लेकिन बर्बरीक को उनकी माता मोरवी ने यह सिखाया था कि सदा ही पराजित यानी हारे हुए पक्ष की तरफ से युद्ध करना और वे इसी सिद्धांत पर महाभारत का युद्ध लड़ना चाहते थे। लेकिन जब भगवान कृष्ण से उसकी मुलाकात हुई, तो पूरी कहानी ही बदल गयी।
भगवान कृष्ण ने मांग लिया शीश
जब यह निश्चित हो गया कि कौरवों और पांडवों में महाभारत युद्ध होकर ही रहेगा, तब बर्बरीक भी युद्ध में सम्मिलित होने की इच्छा लेकर अपने नीले घोड़े पर सवार होकर अपने तीन बाण और धनुष के साथ कुरुक्षेत्र की रणभूमि की ओर अग्रसर हुए। वहां, भगवान कृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण कर बर्बरीक की परीक्षा ली। वे जान गए कि यदि बर्बरीक ने युद्ध में भाग लिया और तीनों बाणों को प्रयोग में लाया तो तीनों लोकों में हाहाकार मच जाएगा। युद्ध कुछ पलों में ही खत्म हो जाएगा।
श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से पूछा कि वह युद्ध में किस ओर से शामिल होगा, तो बर्बरीक ने अपनी मां को दिए वचन को दोहराया कि वह युद्ध में उस ओर से भाग लेगा जिस ओर की सेना कमजोर हो और हार रही होगी। श्रीकृष्ण जानते थे कि युद्ध में हार तो कौरवों की ही निश्चित है, लेकिन बर्बरीक ने कौरवों का साथ दिया, तो परिणाम कौरवों के पक्ष में ही होगा।
बर्बरीक के बारे कहा जाता है कि वे बहुत दानवीर थे। यह बात सर्वव्यापी भगवान कृष्ण जानते थे। ब्राह्मण वेश में श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिए। बर्बरीक क्षण भर के लिए सोच में पड़ गए, लेकिन वे अपनी दानवीरता पर दृढ़ रहे। तब उन्होंने ब्राह्मण से अपने वास्तिवक रूप से अवगत कराने की प्रार्थना की। कहते हैं, तब श्रीकृष्ण ने उसे उन्हें अपना विराट रूप दिखाया। यह देखने के बाद बर्बरीक बिना एक भी क्षण गंवाए, अपना शीश काटकर भगवान को दे दिया।
अपना शीश देने से पहले बर्बरीक ने उनसे प्रार्थना की कि वह अंत तक महाभारत युद्ध देखना चाहता है। श्रीकृष्ण ने उनकी यह बात स्वीकार कर ली। उनका सिर युद्धभूमि के समीप ही एक पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया। संजय के अलावा बर्बरीक दूसरे व्यक्ति थे, जिन्होंने महाभारत को बतौर प्रत्यक्षदर्शी अपनी आंखों से देखा था।
ऐसे हुआ बाबा खाटू श्याम का जन्म
बर्बरीक की दानवीरता से प्रसन्न होकर भगवान कृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में तुम मेरे अवतार होगे और मेरे श्याम नाम से पूजे जाओगे। खाटू नामक ग्राम में प्रकट होने के कारण खाटू श्याम के नाम से प्रसिद्धि पाओगे। मेरी सभी सोलह कलाएं तुम्हारे शीश में स्थापित होंगी और तुम मेरे ही प्रतिरूप बनकर पूजे जाओगे।
कहते हैं, युद्ध समाप्ति के बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को गर्भवती नदी में बहा दिया। ऐसे में गर्भवती नदी से बर्बरीक यानी बाबा श्याम का शीश बहकर खाटू, उस समय की खाटूवांग नगरी, आ गया। कार्तिक मास की देवोत्थान एकादशी को बर्बरीक के शीश को नदी से निकालकर खाटू गांव में स्थापित किया गया। बाबा श्याम को कलयुग का अवतार माना जाता है। बाबा खाटू श्याम को 'हारे का सहारा' भी कहा जाता है।
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