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Krishna Quotes: मानसिक द्वन्द्व और विचारों की आंधी को शांत कर देते हैं गीता के ये 5 उपदेश

Krishna Quotes: श्रीमद्भगवदगीता में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि मानसिक द्वंद्व विचारों, भावनाओं और इच्छाओं के टकराव से उत्पन्न होता है और जिससे मन अस्थिर रहता है। यहां गीता से चुने गए 5 उपदेशों को अपनाकर हम निष्काम कर्म करते हुए मानसिक शांति और संतुलित जीवन प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं, क्या हैं ये 5 अनमोल गीता उपदेश?
03:46 PM Feb 03, 2025 IST | Shyam Nandan
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Krishna Quotes: श्रीमद्भगवदगीता भगवान श्रीकृष्ण की अमृतवाणी है, जिसका जितना भी रसास्वादन किया जाए, मन अघाता नहीं है। गीता में भगवान कृष्ण बताते हैं कि मानसिक द्वंद्व और उहापोह तब उत्पन्न होते हैं जब व्यक्ति के विचार, भावनाएं और इच्छाएं परस्पर टकराती हैं। इसके कुछ प्रमुख कारण हैं: संशय यानी जब कोई निर्णय स्पष्ट न हो और मन में दुविधा बनी रहे, भय यानी भविष्य की अनिश्चितता या विफलता का डर या जब व्यक्ति वास्तविकता को न समझकर भ्रम में जीता है यानी अज्ञान में जीता है। गीता में दिए गए उपदेश को जीवन अपने जीवन में अपनाने से मानसिक द्वंद्व, अस्थिरता और चिंता से बचा जा सकता है। आइए जानते हैं, गीता के वे 5 उपदेश, जो हमें संतुलित जीवन जीने की राह दिखाती है, जहाँ हम नतीजों की चिंता किए बिना अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं।

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काम के परिणाम का अधिक ध्यान न करें

भगवान श्रीकृष्ण श्रीमद्भगवदगीता के दूसरे अध्याय के 47वें श्लोक में कहते हैं कि केवल कर्म करने का अधिकार है, लेकिन फल पर नहीं। यह श्लोक कर्म योग के बारे में बताता है, जो हर काम को निष्काम भाव से करने की समझ देता है। इसलिए हमें अपने कर्तव्य को मन लगाकर करना चाहिए। अपने कार्य को पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना हमारे वश में होता है। मनुष्य को काम के फल की चिंता छोड़ देनी चाहिए। क्योंकि, परिणाम पर अधिक ध्यान देने से मन विचलित होता है, इसलिए उसे भगवान पर छोड़ देना चाहिए। गीता की यह सीख अपनाने से मन में उद्वेग नहीं होता है।

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समभाव से जीवन में आएगा संतुलन

श्रीमद्भगवदगीता के दूसरे अध्याय में ही 48वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन को धनंजय नाम से संबोधित करते हुए कहते हैं कि 'हे धनंजय! आसक्ति को त्यागकर, सफलता और असफलता में समान रहकर कर्मों को करो'। चाहे सफलता मिले या असफलता, एक समान रूप से काम करने को गीता में 'समभाव' कहा गया है। समभाव योग की स्थिति है, जो निरंतर अभ्यास से संभव है। यह श्लोक सिखलाता है कि मन को स्थिर रखकर और आसक्ति छोड़कर कर्म करने से समभाव आएगा। इसके लिए जरूरी है कि भावनाओं में बहने के बजाय संतुलित और स्थिर मन से निर्णय लें।

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शांति की और ले जाएगा स्थिर मन

श्रीमद्भागवत गीता के चौथे अध्याय के 39वें श्लोक में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि जिनकी गहरी आस्था होती है और जिन्होंने अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने का अभ्यास किया होता है, उन्हें ही दिव्य ज्ञान की प्राप्ति होती है। गीता के इस उपदेश में मन और इंद्रियों को नियंत्रित करने की बात की गई है। यह मन ही है, जो विचारों के प्रवाह तो तेज करता है, उहापोह और संशय को जन्म देता है, जबकि इंद्रियां सुख की लालसा में कई काम करती है। मन और इंद्रियों पर कंट्रोल करने से जीवन में परम शांति का अनुभव होता है।

ऐसे मिलेगी मृत्यु के भय से मुक्ति

श्रीमद्भागवदगीता के दूसरे अध्याय का 20 श्लोक कहता है कि आत्मा न किसी काल में जन्म लेता है और न मरता है और न यह एक बार होकर फिर अभावरूप होने वाला है। यह श्लोक हमें सिखाता है कि आत्मा अमर है और केवल शरीर बदलता है। जब हम इस सत्य को समझते हैं, तो मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है, और जीवन में शांति आती है। गीता का यह ज्ञान हमें सिखाता है कि जन्म और मृत्यु केवल परिवर्तन हैं, न कि अंत।

इच्छाओं के त्याग से आएगी शांति

भगवान श्रीकृष्ण गीता के दूसरे अध्याय के 71वें श्लोक में कहते हैं कि जो सभी इच्छाओं को त्यागकर निःस्पृह रहता है यानी कुछ भी प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखता है, वही शांति को प्राप्त करता है। इच्छाओं और अपेक्षाओं का त्याग ही सच्ची शांति का मार्ग है। जब व्यक्ति कुछ पाने या खोने की चिंता से मुक्त हो जाता है, तब वह वास्तविक आनंद और आत्मिक शांति का अनुभव करता है। गीता का यह उपदेश हमें संतुलित और सहज जीवन जीने की प्रेरणा देता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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