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भगवान कृष्ण का कालिय नाग को श्राप- 'जहां भी पीछे मुड़कर देखोगे, वहीं पत्थर के हो जाओगे', जानिए पूरी कथा
Krishna Story: भगवान श्रीकृष्ण लीलाधर हैं। उनकी बाल लीलाएं तो और भी रोचक और आश्चर्यजनक है। उनकी बाल लीलाएं हमेशा से ही भक्तों को मोहित करती रही हैं। ऐसी ही एक बाल लीला कालिय नाग के मर्दन से जुडी है। कालिय नाग मर्दन श्रीकृष्ण बाल लीलाओं में से एक अत्यंत महत्वपूर्ण लीला है, जो उनके पराक्रम और दिव्य शक्तियों का एक अद्भुत प्रदर्शन है। आइए जानते है, कालिय नाग मर्दन की कथा और भगवान श्रीकृष्ण ने उसे श्राप क्यों दिया?
दर्शन मात्र से मिलती है कालसर्प दोष से मुक्ति
गोकुल, ब्रज और वृन्दावन की भाग्यशाली माटी इस बात की गवाह है कि लीलाधर भगवान श्रीकृष्ण ने यहां की धरती पर अनेकों लीलाएं की है। इनमें से एक लीला कालिय नाग मर्दन की भी है। इसका प्रमाण आज भी ब्रज क्षेत्र के जैंत नामक एक गांव में सजीव है। कहते हैं कि भगवान कृष्ण के श्राप के बाद से कालिय नाग यहां पत्थर के रूप में स्थापित है। इसको आज देखा जा सकता है। मान्यता है कि यहां स्थापित कालिय नाग के दर्शन मात्र से कालसर्प दोष से मुक्ति मिल जाती है।
कालिय नाग का कहर
भागवत कथा के अनुसार, ये घटना तब की है कि जब भगवान कृष्ण गोकुल में बाबा नंद और मैया यशोदा के साथ रहा करते थे। उस समय कालिय नामक पांच फणों वाला एक भयंकर और महान विषधर नाग भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ पक्षी से दुश्मनी होने के कारण गोकुल के पास बहने वाली यमुना नदी में आकर रहने लगा था। इससे पूरी यमुना नदी में कालिय नाग का जहर फैल गया। था। इससे न केवल नदी के जलीय जीव मरने लगे, बल्कि नदी का जहरीला पानी पीकर पशु-पक्षी और गांव वालों की भी मृत्यु होने लगी।
संयोग से एक दिन भगवान लीलाधर श्रीकृष्ण अपने ग्वाल बाल सखाओं के साथ यमुना के तट 'कंदुक' यानी गेंद से खेल रहे थे। खेलते-खेलते गेंद अचानक यमुना नदी में जा गिरी। अब नदी से गेंद कौन निकाले? एक भी ग्वाल बाल सखा तैयार न हुए। बलराम भैया ने भी इंकार कर दिया। तब अपनी लीला को दिखाते हुए भगवान कृष्ण गेंद को निकालने के लिए कृष्ण यमुना नदी में कूद पड़े।
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मुष्टि प्रहार से पस्त हो गया कालिय नाग
उनके यमुना में कूदते ही नदी में सो रहा कालिय नाग जाग गया। नींद में खलल पड़ने पर कालिय क्रोध में और भी भयंकर दिखाई दे रहा था। वह श्रीकृष्ण को अपने जहर का शिकार बनाने लगा। लेकिन कालिय नाग जहां विष छोड़ता या फण मारता श्रीकृष्ण वहां से कब का हट चुके होते। वहीं कृष्ण ने अपनी मुष्टि यानी मुक्कों से प्रहार कालिय नाग को पस्त कर दिया था। वहीं, दूसरी तरफ यह बात माता यशोदा समेत पूरे गोकुल को पता चल गई। पूरे गांव वाले दौड़े-दौड़े यमुना नदी किनारे आ गए। नंद बाबा सहित सभी गांववासी आश्चर्य और कौतुक से यह अद्भुत नजारा देख रहे थे।
ऐसे किया कालिय नाग का मर्दन
जल्दी ही विषैले कालिय नाग को श्रीकृष्ण ने इतना थका दिया कि वह बेसुध हो गया। भगवान श्रीकृष्ण ने कालिय नाग को नदी छोड़कर जाने का आदेश दिया। लेकिन वह नहीं माना और एक बार फिर श्रीकृष्ण पर हमला कर दिया। इस बार लड़ाई और भी भयंकर थी। उधर मैया यशोदा का दिल बैठा जा रहा था, उनकी आंखों से आंसूओं का झरना बह निकला था। काफी देर तक भगवान कृष्ण और कालिय नाग की जोरदार लड़ाई होती रही। कुछ समय बाद कालिय नाग हार गया। तब भगवान कृष्ण ने कालिय नाग के पांचों फणों को नाथ दिया और उस पर बांसुरी बजा कर नृत्य करने लगे और उसे अपने वश में कर लिया।
कथा अभी बाकी है...
लेकिन कथा यहीं खत्म नहीं हुई है! कालिय नाग को नाथने के बाद नाग की पत्नियों ने श्रीकृष्ण से विनती की कि वे उनके पति को माफ कर दें। तब भगवान कृष्ण ने कालिय नाग क्षमा कर दिया। लेकिन यमुना नदी से बाहर निकलते ही कालिय नाग वहां से भागने लगा। भगवान कृष्ण ने उसे रुकने के लिए कहा, लेकिन वह नहीं रुका।
भगवान श्री कृष्ण ने दिया था श्राप
श्रीकृष्ण जानते थे, कालिय नाग एक महान विषैला सांप है। वह जहां भी जाएया, वह मनुष्य और जीवों के लिए काल ही सिद्ध होगा। इसलिए श्रीकृष्ण ने कालिय नाग को श्राप दिया। "ओ कालिय! यदि भागने के दौरान जहां भी पीछे मुड़कर देखोगे, वहीं पत्थर के हो जाओगे।" कहते हैं कि वृंदावन से लगभग 5 किलोमीटर दूर जैंत गांव में ही कालिय नाग ने पीछे मुड़कर देखा और पत्थर का हो गया। आज इस जगह पर कालिय नाग का मंदिर है, जहां देशभर से श्रद्दालु पत्थर बन गए कालिय नाग दर्शन और पूजा के लिए आते हैं।
कालिय नाग पत्थर को ब्रिटेन भेजना चाहती थी सरकार
जैंत गांव के लोग बताते हैं कि ब्रिटिश शासन के दौरान पत्थर बन गए कालिय नाग जमीन में धंस गए थे। ब्रिटिश सरकार ने पत्थर के रूप में बने कालिय नाग की खुदाई करवाई और कालिय नाग पत्थर को ब्रिटेन भेजना चाहती थी। ग्रामीणों की इसकी जानकारी होने पर उन लोगो ने जमीन में धंसे कालिय नाग को रातोंरात जमीन से निकालकर छिपा दिया। ब्रिटिश सैनिकों ने पूरे गांव में कालिय नाग पत्थर की तलाशी का अभियान चलाया, लेकिन वह नहीं मिल पाई। भारत की आजादी के बाद ग्रामीणों ने फिर दोबारा से कालिय नाग को उसी जगह पर स्थापित किया। बाद में ग्रामीणों और सहयोग के बाद कालिय नाग मंदिर को बनवाया गया।
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