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बरसाना-नंदगांव में कब खेली जाती है लठमार होली? जानें इसके पीछे क्या है कहानी

Lathmar Holi Barsana: रंगों और रंग-बिरंगे फूलों से होली खेलने के बारे में तो आपने सुना ही होगा, लेकिन क्या आपने कभी लठमार होली के बारे में सुना है। अगर नहीं, तो आइए जानते हैं देश में कहां पर लठमार होली जाती है और कैसे लठमार होली खेलनी की शुरुआत हुई है।
08:00 AM Mar 19, 2024 IST | Nidhi Jain
बरसाना नंदगांव में कब खेली जाती है लठमार होली  जानें इसके पीछे क्या है कहानी

Lathmar Holi Barsana: हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि पर होली का पर्व मनाया जाता है। इस साल होली का त्योहार 25 मार्च, दिन सोमवार को मनाया जाएगा। होली के दिन घरों में तो अलग ही धूम देखने को मिलती ही है। कई मंदिरों में भी अलग ही रौनक देखने को मिलती है। देश में कई ऐसे प्राचीन और प्रसिद्ध मंदिर है, जहां लोग होली खेलने के लिए आते हैं।

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इसके अलावा उत्तर प्रदेश के कई शहरों में अलग ही तरीके से होली खेली जाती है, जिसमें ब्रज की लठमार होली का भी नाम आता है। ब्रज की लठमार होली देश ही नहीं विदेश में भी प्रसिद्ध है। आज हम आपको ब्रज की फेमस लठमार होली से जुड़ी ही कुछ खास बातों के बारे में बताएंगे।

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कब खेली जाती है लठमार होली?

आमतौर पर होली का त्योहार एक या दो दिन तक मनाया जाता है, लेकिन ब्रज में 40 दिनों तक होली खेली जाती है। ब्रज के बरसाना, वृंदावन, मथुरा और नंदगांव आदि क्षेत्रों में बहुत ही अलग तरह से होली खेली जाती है। यहां हर क्षेत्र की होली एक दूसरे से अलग है। यहां 40 दिनों तक आपको सभी भक्त राधा रानी और श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन देखने को मिलेंगे। आपको बता दें कि हर साल शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि के दिन बरसाना में लठमार होली खेली जाती है, जो कि फाल्गुन मास में पड़ती है।

नंदगांव की लठमार होली कब है?

बता दें कि हर साल होली खेलने के लिए नंद गांव से पुरुष बरसाना आते हैं, जहां महिलाएं उन पर लाठियां बरसाती हैं। वहीं पुरुष खुद को बचाने की कोशिश करते हैं। सबसे पहले 18 मार्च को बरसाना में होली खेली जाती है, जिसके अगले दिन 19 मार्च को नंद गांव में लठमार की होली जाती है। हर साल लठमार होली खेलने के लिए ब्रज में बड़ी संख्या में लोग आते हैं।

लठमार होली क्यों मनाई जाती है?

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब श्रीकृष्ण राधा रानी के साथ होली खेलने के लिए बरसाना आया करते थे, तो वो राधा रानी और उनकी सखियों के साथ हंसी-ठिठोली किया करते थे। तब श्री राधा और उनकी सखियां श्रीकृष्ण के पीछे लाठी लेकर भागा करती थी। इसी के बाद से बरसाने में लठमार होली खेलने की परंपरा शुरू हो गई। इसलिए आज भी यहां पर लठमार होली खेली जाती है।

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