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ऐसे मिली भगवान शिव को हलाहल विष से मुक्ति, जानें महादेव-पार्वती की 8वीं संतान देवी मनसा की कथा
Devi Manasa Story: वर्षा ऋतु शुरू होने में कुछ दिन ही बाकी हैं। इस मौसम में नागों और विषैले सर्पों का प्रकोप बढ़ जाता है। इससे बचने के लिए भादो माह में देवी मनसा की विशेष पूजा की जाती है। पौराणिक कथाओं में मनसा देवी को सर्पों की माता के रूप वर्णित किया गया है। उन्हें भगवान शिव और देवी पार्वती की आठवीं संतान भी माना जाता है। शिवजी ने इन इनका विवाह जरत्कारू ऋषि के करवाया था, जिससे आस्तिक मुनि का जन्म हुआ था। आस्तिक मुनि ने जनमेजय के नागेष्ठी यज्ञ से नागवंश की रक्षा की थी।
ऐसे हुआ देवी मनसा का जन्म
देवी मनसा की उत्पति की कथा 'मनसाविजय' नामक ग्रंथ में वर्णित है। इस ग्रंथ की कथा के अनुसार, नागराज वासुकि की माता ने एक नागकन्या की प्रतिमा का निर्माण किया था। दैव योग से इस प्रतिमा का स्पर्श भगवान शिव के वीर्य से हो गया। इससे वह नागकन्या जीवित हो उठी। भगवान शिव उस कन्या को कैलाश पर्वत पर लेकर गए।
देवी पार्वती
भगवान शिव के साथ मनसा को देखकर देवी पार्वती क्रोधित हो गईं और उन्होंने मनसा को खत्म करने के लिए देवी चंडी का रूप धारण कर लिया। तब भगवान शिव ने मनसा की उत्पत्ति का रहस्य बताया कि वे उनकी और पार्वती की बेटी हैं। तब जाकर देवी पार्वती का क्रोध शांत हुआ और उन्होंने मनसा को शिव परिवार में शामिल कर पुत्री का प्रेम दिया।
भगवान शिव जो हलाहल विष से मुक्ति
अमृत मंथन से निकले हलाहल विष को पीने की बाद भगवान शिव उसकी ऊष्मा (गर्मी) से काफी अशांत हो गए थी। इसका एक ही उपाय था कि हलाहल विष को किसी और में स्थानान्तरित किया जाए। लेकिन भगवान शिव के अलावा ब्रह्मांड में ऐसा कोई नहीं था। तब ब्रह्मा जी ने बताया कि देवी मनसा उनकी ही मानसपुत्री हैं, जो हलाहल को धारण कर सकती हैं। ब्रह्मा जी के अनुरोध पर देवी मनसा ने हलाहल विष के अधिकांश भाग को भगवान शिव से ले लिया। तब जाकर महादेव शिव हलाहल विष के नकारात्मक असर से मुक्त हो पाए। शिवजी का विष हर लेने के बाद ब्रह्मा जी ने मनसा का नाम 'विषहरी' रख दिया।
मनसा देवी के आशीर्वाद से महाभारत युद्ध जीत पाए युधिष्ठिर
कहते हैं, महाभारत युद्ध के दौरान ज्येष्ठ पांडुपुत्र युधिष्ठिर ने युद्ध की शीघ्र समाप्ति और विजय प्राप्ति के लिए कुरुक्षेत्र से थोड़ी दूर सालवन गांव (वर्तमान में करनाल में स्थित) में देवी मनसा की पूजा की थी। उनके आशीर्वाद से पांडवों को महाभारत युद्ध में जीत मिली थी।
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