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Maha Kumbh 2025: एक बार में 100 साल के कल्पवास का फल, जानें महत्व और प्रयागराज के प्रमुख घाटों की पौराणिक कथाएं

Maha Kumbh 2025: कल्पवास क्या है? इसका महत्त्व क्या है और किन किन घाटों पर स्नान करने का अधिक फलदायी है? आइए जानते हैं।
01:59 PM Dec 27, 2024 IST | Simran Singh
maha kumbh 2025  एक बार में 100 साल के कल्पवास का फल  जानें महत्व और प्रयागराज के प्रमुख घाटों की पौराणिक कथाएं
कुंभ मेला कल्पवास 2025

दीपक दुबे प्रयागराज

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प्रयागराज: Maha Kumbh Kalpavas 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ को लेकर तैयारियां जोर शोर से चल रही है। इस बार महाकुंभ मेले के आयोजन  की शुरुआत 13 जनवरी से 26 फरवरी तक चलने वाला है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु पूरी भक्ति व निष्ठा के साथ पूजन अर्चन और अनुष्ठान करते हैं। वहीं, बड़ी संख्या में गंगा घाट के किनारे श्रद्धालु कल्पवास करने के लिए भी आते हैं। मान्यता है कि कल्पवास करने से सभी प्रकार के पापों, कायिक, वाचिक और मानसिक से मुक्ति मिलती है और ईश्वर के चरणों में स्थान प्राप्त होता है। सूर्य ग्रह द्वारा जब मकर राशि में प्रवेश किया जाता है तब कल्पवास की शुरुआत होती है।

महाकुंभ में कल्पवास का खास महत्व बताया गया है। साथ ही सभी घाट और वहां पर स्नान का भी बड़ा महत्व होता है। कल्पवास को एक कठिन व्रत और एक जीवनदायिनी साधना माना जाता है। यह व्रत व्यक्ति को अपने जीवन के उद्देश्य को समझने और उसे आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनाने का अवसर प्रदान करता है। आज हम आपको कल्पवास से संबंधित खास जानकारी देने जा रहे हैं।

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कल्पवास के संबंध में कई संत, महात्मा से बात की है श्री महंत महेश्वर दास अध्यक्ष पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा ने बताया कि महाकुंभ के दौरान कई स्थानों पर कल्पवास होता है। जहां जहां गंगा के तट हैं, वहां कल्पवास होता है। साधु संत महात्मा, श्रद्धालु कुटिया बनाकर कल्पवास करते हैं। सनातन धर्म के अनुसार जीवन में एक बार माघ के दौरान माघ, श्रवण के मेले में कल्पवास करना काफी शुभ माना गया है।

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इस अनुष्ठान को इसलिए किया जाता है कि जीवन में जो भी हमसे गलतियां, त्रुटियां हुई है उन सबका परिमार्जन हो जाए।कल्पवास में बड़े कठोर नियमों का पालन करना पड़ता है। जहां कल्पवासी को जमीन पर शयन करना पड़ता है। नीत पूजा पाठ करनी होती है। त्रिकाल संध्या करना, अपने हाथ से शुद्ध व सात्विक भोजन बनाना होता है। भोजन किस प्रकार के बना रहे हैं यह भी काफी महत्वपूर्ण होता है। सनातन धर्म में सात्विक भोजन करने के लिए कहा जाता है। कल्पवास के दौरान साधकों द्वारा इसी तरह का भोजना बनाया जाता है।

भोजन के प्रकार की श्रेणी

  1. सात्विक भोजन
  2. राजसी भोजन
  3. तामसिक भोजन
  4. राक्षसी भोजन

कल्पवास के नियम

सत्य वचन बोलना, दया भाव होना, अहिंसा, इन्द्रियों पर नियंत्रण, ब्रह्मचर्य का पालन, सुबह ब्रह्म मुहूर्त में जागना, नियमित स्नान, पितरों का पिंडदान, जाप,देवी-देवताओं का पूजन आदि विभिन्न नियमों का पालन करने से व्यक्ति को कल्पवास का पुण्य प्राप्त होता है। कल्पवासी को सात्विक भोजन करना अनिवार्य होता है दाल, सब्जी, रोटी, फलाहार करें।

ऐसे 100 साल के बार मिलता है कल्पवास का फल

महंत श्री दुर्गादास श्री पंचायती अखाड़ा उदासीन के अनुसार कल्पवास वैदिक काल से चला आ रहा है। घाट पर कुटिया बनाकर कल्पवास किया जाता है। सनातन धर्म की परंपरा है कि तीर्थ यात्रा एक बार जीवन में अवश्य करना चाहिए और अगर आप कुंभ के दौरान कल्पवास करते हैं तो सौ सालों के बराबर का कल्पवास का फल एक कल्पवास कुंभ के दौरान करने से प्राप्त होता है ।कल्पवास बालक,वृद्ध,युवा सभी कर सकते है, बस आपके अंदर श्रद्धा का भाव होना चाहिए, पति पत्नी भी एक साथ कल्पवास कर सकते है।

महंत श्री दुर्गादास के मुताबिक कल्पवास में व्रत का जितना पौराणिक महत्व है उतना ही देश हित और अच्छे स्वास्थ्य की दृष्टि से भी यह बहुत ही अच्छा है।कल्पवास एक घंटे,एक दिन, तीन दिन एक हफ्ते,एक महीने आपको ऊपर निर्भर करता है कब तक आप कल्पवास करना चाहते है। मन को अपने वश में करना भी कल्पवास का एक माध्यम है। इस दौरान कल्पवासी को बड़े गुरुजनों, साधु संतों का आशीर्वाद, कल्पवास में मिलना फलदाई होता है और जिस घर में कल्पवास किया जाता है उसके घर में। धन धान्य की बरकत होती है परिवार में खुशहाली रहती है लक्ष्मी का वास होता है।

जियानद ब्रह्मचारी जी सचिव श्री शुभ पंच अग्नि अखाड़ा के मुताबिक कल्पवास से धर्म के प्रति मजबूती भी मिलती है। राजा हर्षवर्धन कल्पवास के दौरान दान पुण्य करते थे। पुरोहित द्वारा कल्पवास के दौरान संकल्प कराया जाता है। जियानद ब्रह्मचारी कहते है कि भक्त के बस में है भगवान, जब जब भक्त को कष्ट में होता है तब तब भगवान आते हैं। कल्पवास के दौरान कल्पवासी को गलत विचार नहीं करना चाहिए, अगर हम गलत विचार नहीं करेंगे तो गलत विचार आएगा भी नहीं।

प्रयागराज में घाटों का महत्व

त्रिवेणी घाट

प्रयागराज की पहचान ही त्रिवेणी घाट से है जहां की महिमा अपरंपार है कोई कहीं से भी चलता है देश विदेश से तो जरूर जिंदगी में एक बार त्रिवेणी के तट पर आकर जरूर स्नान करना चाहता है। जहां गंगा यमुना, सरस्वती का ऐसा समागम है कि साक्षात ईश्वर का आशीवार्द प्राप्त होता है।

दशाश्वमेध घाट

चार वेदों की प्राप्ति के बाद ब्रह्माजी ने प्रयागराज में ही यज्ञ किया था। सृष्टि की प्रथम यज्ञ स्थली होने के कारण ही इसे प्रयाग कहा गया। प्रयाग माने प्रथम यज्ञ। प्रयागराज के गंगा घाटों का भी अपना इतिहास है। दारागंज के दशाश्वमेध घाट का ऐतिहासिक महत्व है। इस घाट पर धर्मराज युधिष्ठर ने दस यज्ञ कराए थे। उसके पहले ब्रह्माजी ने भी यहां यज्ञ किया था। इसीलिए इस घाट को दशाश्वमेध घाट कहा जाता है।यहां एक साथ दो शिवलिंगों ब्रह्मेश्वर और दशाश्वेवर की पूजा होती है. सावन में इस मंदिर में विशेष पूजन का महत्व है

रसूलाबाद घाट 

यह घाट प्रयागराज शहर के उत्तरी क्षेत्र में स्थित रसूलाबाद मुहल्ले में गंगा तट पर है। यहां साल भर लोग स्नान करते हैं। यहां पर अंतिम संस्कार भी किया जाता है। अमर शहीद चंद्रशेखर आजाद सहित तमाम ख्यातिनाम लोगों का यहां पर अंतिम संस्कार होने के कारण इस घाट का ऐतिहासिक महत्व भी है।

शंकर घाट

यहां नागेश्वर महादेव मंदिर के साथ अन्य मंदिर हैं जिसमें हनुमान, गणेश, मां दुर्गा आदि की मूर्तियां विराजमान हैं।

सरस्वती घाट

अकबर के किले के करीब यमुना नदी के तट पर यह घाट स्थित है। समीप में एक रमणीक पार्क भी बनाया गया है। यहां पर लोग स्नान के अलावा नौकायन के लिए भी जाते हैं। यहां से संगम जाने के लिए हर समय नाव मिलती हैं। मनकामेश्वर महादेव का मंदिर भी इसी घाट के समीप है।

रामघाट

यह घाट संगम क्षेत्र में गंगा पर स्थित है। त्रिवेणी क्षेत्र स्थित काली सड़क से यहां सीधे पहुंचा जा सकता है। दैनिक स्नानार्थियों की सर्वाधिक भीड़ इस घाट पर होती है।

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