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कुरुक्षेत्र में ही क्यों हुआ महाभारत युद्ध, श्रीकृष्ण भी रो पड़े यहां से जुड़ी घटना जानकर...दहल जाएगा आपका भी दिल
Mahabharata Story: इतिहास में कुरुक्षेत्र को कई नामों जैसे ब्रह्मवर्त, स्थानेश्वर, थानेश्वर, थानेसर आदि से भी जाना जाता है। इस जगह का नाम कुरु वंश के संस्थापक महाराजा कुरु के नाम पर पड़ा है। क्या आप जानते है कि 18 दिनों तक चलने वाला विश्व का एक सबसे भीषण और भयानक महाभारत युद्ध यहीं पर क्यों लड़ा गया? भगवान श्रीकृष्ण ने आखिर कुरुक्षेत्र को ही इस रक्तरंजित युद्ध के लिए क्यों चुना? आइए विस्तार से जानते हैं यह कहानी।
युद्ध भूमि की तलाश
यह निश्चित हो गया था कि कौरवों और पांडवों में युद्ध होगा। तब एक उपयुक्त युद्ध भूमि की आवश्यकता आन पड़ी थी। ऐसे स्थान की तलाश के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने अपने दूतों को कई जगहों पर भेजा। श्रीकृष्ण जानते थे कि महाभारत का युद्ध महा-विनाशकारी और अति-रक्तरंजित होने वाला है। इसके लिए ऐसी भूमि चाहिए थी, जो युद्ध की नृशंसता और क्रूरता को सहन कर सके। कई जगहों के भ्रमण और छानबीन के बाद दूतों ने श्रीकृष्ण को अनेक जगहों के बारे में बताया। उनमें से एक दूत जब श्रीकृष्ण के पास आया, तो वह काफी निराश, हताश और अत्यंत पीड़ा में था। उसकी हालत देख श्रीकृष्ण भी चौंक पड़े।
कुरुक्षेत्र की रक्तरंजित कहानी
भगवान श्रीकृष्ण दूत की व्याकुल अवस्था देख बहुत चकित हुए। उन्होंने दूत से पूछा, "ऐसा क्या संदेश लाए हैं कि आप स्वयं उसका बोझ संभाल पाने में नाकाम हो रहे हैं। मैं आपकी अवस्था देखकर समझ पा रहा हूं कि अवश्य ही कोई बात आपके हृदय को वेध रही है? दूत ने अपनी भर्राई आवाज में कहा, “हे माधव, आप सही कह रहे हैं। मैं कुरुक्षेत्र गया था। वहां से आने के बाद मैं गहन पीड़ा में हूं।" फिर दूत कुरुक्षेत्र की एक घटना बताई।
दूत ने कहा, "कुरुक्षेत्र में दो भाइयों के बीच खेत का बंटवारा हुआ। सिंचाई का पानी दूसरे के खेत में अधिक न जाए, इसके लिए खेत में मेड़ बनाई हुई थी। संयोगवश एक दिन वह मेड़ टूट गई, जिससे दोनों भाइयों के बीच लड़ाई हो गई।"
दूत ने थोडा ठहर फिर कहा, "हे माधव, धीरे-धीरे यह लड़ाई इतनी ज्यादा बढ़ गई कि दोनों भाइयों के बीच हाथापाई होने लगी। उनकी मार-पीट जल्द ही रक्तरंजित युद्ध में बदल गई। फिर बड़े भाई ने छोटे भाई की हत्या कर दी। उसने छोटे भाई के शव को घसीटकर टूटी हुई मेड़ की जगह पर रखकर उसकी लाश से ही सिंचाई के पानी रोक दिया।" इतना कहकर दूत रो पड़ा।
रोने लगे पीड़ा से भरे श्रीकृष्ण
भगवान श्रीकृष्ण को दूत की सुनाई गई भाई-भाई के बीच की कहानी से इतनी पीड़ा हुई कि वे भी रोने लगे। उनकी आंखों से झर-झर आंसूं बहने लगे थे। फिर उन्होंने अपने आपको संभालते हुए दूत से कहा, "जिस भूमि पर भाई-भाई के बीच इतना द्वेष है। वह स्थान युद्ध के लिए उपयुक्त है। जिस जमीन में इतनी कठोरता हो, वहां किसी का दिल नर्म नहीं पड़ेगा। यह भूमि निश्चय ही युद्ध का भार सह लेगी।" श्रीकृष्ण जानते थे कि महाभारत का युद्ध अनिवार्य था क्योंकि इसके बिना युग का परिवर्तन असंभव था।
अन्याय की समाप्ति का प्रतीक
कुरुक्षेत्र में संसार का सबसे विनाशकारी युद्ध होने और इस धरती के अपवित्र हो जाने के बारे बारे में जब देवताओं ने श्रीकृष्ण से सवाल किया कि जिस जमीन ने लाखों मानवों का रक्त पिया हो, उस भूमि को किसी काल की तरह देखा जाएगा, उस अशुद्ध और पतित भूमि पर कौन बसना चाहेगा? तब भगवान श्रीकृष्ण ने कुरुक्षेत्र की भूमि को शाप मुक्त करने के लिए यज्ञ करने का तरीका बताया। उन्होंने कहा, "कुरुक्षेत्र में आकर जो भी सच्चे मन से अपने पूर्वजों का तर्पण करेगा, उसे मोक्ष की प्राप्ति होगी। यहां न्याय और अन्याय के बीच युद्ध होने के कारण यह अन्याय की समाप्ति के लिए याद रखी जाएगी।"
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