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बिना पैसे दिए पान खाते थे महाप्रभु जगन्नाथ, एक दिन रखना पड़ा अंगवस्त्र गिरवी, विस्तार से जानें कथा

Lord Jagannath Story: इस साल 7 जुलाई, 2024 से शुरू हुई ओडिशा स्थित पुरी की जगन्नाथ मंदिर की विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा 16 जुलाई को समाप्त हो जाएगी। आइए जानते हैं, महाप्रभु के पान प्रेम से जुड़ी एक कथा, जब उन्हें उधार चुकाने के लिए अपना अंगवस्त्र गिरवी रखना पड़ गया था।
06:40 AM Jul 15, 2024 IST | Shyam Nandan
बिना पैसे दिए पान खाते थे महाप्रभु जगन्नाथ  एक दिन रखना पड़ा अंगवस्त्र गिरवी  विस्तार से जानें कथा

Lord Jagannath Story: मंगलवार 16 जुलाई, 2024 को ओडिशा स्थित पुरी के जगन्नाथ मंदिर विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा समाप्त हो जाएगी। महाप्रभु जगन्नाथ, भगवान बलभद्र और देवी सुभद्रा मौसी गुंडिचा के महल से मुख्य मंदिर लौट आएंगे। मंगलाचरण, भोग, आरती और अन्य महत्वपूर्ण सेवाओं सहित महाप्रभु को ताम्बूल यानी पान की सेवा भी दी जाने लगेगी। जी हां! भगवान जगन्नाथ को पान बहुत प्रिय है। आइए जानते हैं, महाप्रभु जगन्नाथ और भगवान बलभद्र के पान खाने से जुड़ी एक सच्ची और रोचक कथा।

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महाप्रभु जगन्नाथ और पान विक्रेता रघुनाथ

15वीं सदी के पुरी में ग्रैंड रोड पर रघुनाथ दास नामक एक पनवारी की छोटी-सी दुकान थी। उड़िया रामायण के प्रसिद्ध कवि बलराम दास ने देखा कि दो लड़के, जिसमें एक सांवला और दूसरा गोरा था, रघुनाथ दास जी की दुकान पर आए और दो पान लगाने को कहा। रघुनाथ दास ने लड़कों को पान लगाकर दिया और वे दोनों कुछ भी भुगतान किए बिना पान खाकर चले गए। कवि बलराम दास ने कई दिनों तक नोटिस किया वे दोनों लड़के पाहुड़ा यानी मंदिर के द्वार बंद होने से ठीक पहले आते हैं। एक दिन उन्होंने उन दोनों का पीछा किया तो दोनों लड़कों को सिंह द्वार के बाद गायब होते देखा।

कवि बलराम दास ने पान विक्रेता रघुनाथ दास जी से पूछा कि वे उन लड़कों से पान के पैसे क्यों नहीं लेते हैं? रघुनाथ दास जी ने बड़े भोलेपन से जवाब दिया कि वे उन दोनों के आकर्षण में खो जाते हैं और पैसे मांगना भूल जाते हैं। तब कवि बलराम दास ने उनसे कहा कि एक व्यवसायी मुफ्त में सामान और सेवा क्यों देगा, जब वे कल आएंगे, तो उनसे पैसे जरूर मांगना। रघुनाथ दास जी ने कहा कि बात तो सही है और उन्होंने लड़कों से पैसे मांगने का फैसला किया।

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अगली रात जब लड़के आए और पान मांगा, तो रघुनाथ दास जी ने उनसे पैसे देने को कहा। लड़कों ने कहा कि उनके पास अभी कोई पैसा नहीं है। वे कल फिर आएंगे, तो वे पैसे जरूर लेकर आएंगे। यदि उनको विश्वास न हो और वे चाहें तो पान की कीमत के बदले में उनका अंगवस्त्र (स्टोल) रख सकते हैं। रघुनाथ दास जी ने उनके अंगवस्त्र रख लिए।

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फोटो: Jagannath Temple - Facebook

अगले दिन जब मंदिर खुला, तो सभी यह देखकर दंग रह गए कि देवताओं के अंगवस्त्र गायब थे। यह खबर राजा तक पहुंची और जांच का आदेश दिया गया। महाप्रभु के अंगवस्त्र के खो जाने की खबर सुनकर कवि बलराम दास राजा के पास पहुंचे। उन्होंने राजा को बताया कि अंगवस्त्र पान विक्रेता रघुनाथ दास की दुकान में हैं। स्वयं राजा और उसके आदमी रघुनाथ दास की दुकान पर पहुंचे। उन्होंने पाया कि वाकई में महाप्रभु का अंगवस्त्र उस दुकान में है।

रघुनाथ दास जी ने राजा को सब कुछ बताया कि उसे अंगवस्त्र कैसे मिले। राजा को अपनी कानों और आंखों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने तुरन्त रघुनाथ दास जी को गले लगा लिया और कहा, रघुनाथ, आप बहुत भाग्यशाली हो, असाधारण रूप से भाग्यशाली। आपने जो देखा वह किसी ने नहीं देखा था। इतने सारे संतों, भक्तों ने उसे देखने के लिए क्या नहीं किया था और उनमें से कितने असफल रहे और आप रघुनाथ, इतने दिनों तक महाप्रभु को साक्षात देखते रहे, कितने धन्य हो और जो आपका पान खाने के लिए स्वयं महाप्रभु महल से नीचे आए।

महाप्रभु जगन्नाथ के पान सेवायत

कहते हैं तब से महाप्रभु जगन्नाथ की सेवा में पान देने की प्रथा है। यह जिम्मेदारी आज भी रघुनाथ दास जी के वंशज पीढ़ियों से करते चले आ रहे हैं, जिन्हें बिडिया जोगनिया कहते हैं। बिडिया जोगनिया का मुख्य काम पान महाप्रभु जगन्नाथ सहित सभी देवताओं के लिए पान लगाना है। जबकि महाप्रभु जगन्नाथ तक पान पहुंचाने का काम हाडप नायक और ताम्बूल सेवक का है। महाप्रभु जो पान चबाते हैं, उसमें सुपारी, लौंग, जायफल और कपूर का उपयोग विशेष तौर पर होता है।

रोजाना लगता है 36 पान का भोग

सम्राटों के सम्राट महाप्रभु को दिन में चार बार भोग लगाया जाता है- नाश्ता, दोपहर का भोजन, शाम का नाश्ता और रात का खाना। नाश्ते, दोपहर के भोजन और शाम के नाश्ते के बाद उन्हें पान के 7 बीड़े चढ़ाए जाते हैं। चंदन के लेप से और उनका अभिषेक करने के बाद उन्हें पान के 20 बीड़े अर्पित किए जाते हैं। रात में सोने से पहले का वस्त्र यानी सिंघरा बेशा धारण करने से पहले 8 बीड़े पान का भोग लगता है। वहीं, जब महाप्रभु सोने के लिए बिस्तर पर चले जाते हैं, तो अंतिम बार 1 बीड़ा पान अर्पित किया जाता है। इस प्रकार सुबह से शाम तक प्रभु को 36 पान का भोग लगता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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