Papankusha Ekadashi Vrat Katha: ये पौराणिक कथा सुने बिना अधूरा है पापांकुशा एकादशी का व्रत, जानें महत्व
Papankusha Ekadashi Vrat Katha: सनातन धर्म के लोगों के लिए भगवान विष्णु को समर्पित पापांकुशा एकादशी के व्रत का खास महत्व है। ये दिन मनोकामना पूर्ति और पापों से मुक्ति पाने के लिए जाना जाता है। हर वर्ष आश्विन माह की शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि के एक दिन बाद पापांकुशा एकादशी का व्रत रखा जाता है। सूर्योदय की तिथि के मुताबिक, 13 अक्टूबर 2024 को पापांकुशा एकादशी का व्रत रखना शुभ होगा। जबकि वैष्णव समाज के अनुयायी आश्विन माह में आने वाली एकादशी तिथि के अगले दिन ये व्रत रखते हैं, जिसकी सही डेट 14 अक्टूबर 2024 है। इस दिन पूजा का विजय मुहूर्त दोपहर में 02:02 मिनट से लेकर 02:49 मिनट तक है।
पापांकुशा एकादशी के दिन व्रत की पौराणिक कथा पढ़ी और सुनी जाती है, वरना पूजा को अधूरा माना जाता है। चलिए विस्तार से जानते हैं पापांकुशा एकादशी व्रत की असली कथा के बारे में।
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पापांकुशा एकादशी व्रत की कथा
प्राचीन समय में क्रोधन नामक एक शिकारी था, जो विंध्य पर्वत पर रहता था। उसने जीवनभर पाप किए थे, लेकिन जैसे-जैसे उसकी मृत्यु का समय करीब आ रहा था। वो डरने लगा। एक दिन वो महर्षि अंगिरा के आश्रम गया। वहां जाकर उसने महर्षि अंगिरा से कहा, 'हे ऋषिवर, मैंने जीवनभर पाप कर्म किए हैं। कृपा मुझे कोई उपाय बताइए, जिससे मुझे अपने पापों से मुक्ति मिल सके और मोक्ष की प्राप्ति हो सके।'
महर्षि अंगिरा ने क्रोधन को पापांकुशा एकादशी का व्रत करने को कहा। इसी के साथ उन्होंने व्रत के महत्व के बारे में बताया। उन्होंने कहा, 'पापांकुशा एकादशी को पापों का नाश करने वाली एकादशी कहा जाता है। इस दिन जो साधक सच्चे मन और विधिपूर्वक भगवान विष्णु की पूजा करता है, उसे मनोवांछित फल मिलता है। साथ ही स्वर्ग की प्राप्ति होती है।'
इसी के आगे महर्षि ने कहा, 'मनुष्य को कई साल तक कठोर तपस्या करने के बाद जो फल मिलता है, वो फल उसे विष्णु जी को नमस्कार करने से प्राप्त हो जाता है। जो लोग अज्ञानवश पापों के लिए हरि से माफी मांगते हैं, वो नरक नहीं जाते हैं। विष्णु जी के नाम जाप से संसार के सब तीर्थों के पुण्य का फल मिलता है। जो साधक भगवान विष्णु की शरण में होता है, उसे कभी भी यम यातना का सामना नहीं करना पड़ता है। इसलिए इस एकादशी के बराबर कोई व्रत नहीं है। माना जाता है कि जब तक व्यक्ति पापांकुशा एकादशी का व्रत नहीं करता है, तब तक उसकी देह में पाप वास करता है।'
महर्षि अंगिरा के कहने पर क्रोधन ने श्रद्धा भाव से ये व्रत करा, जिसके प्रभाव से उसे अपने सभी पापों से छुटकारा मिल गया। इसी के बाद से पापांकुशा एकादशी व्रत रखने की परंपरा चली आ रही है।
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