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Parivartini Ekadashi 2024: इस दिन भगवान विष्णु क्यों बदलते हैं करवट, जानें पौराणिक कथा और बहुत कुछ !

Parivartini Ekadashi 2024: भाद्र माह की अंतिम एकादशी को परिवर्तिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। इस दिन जो भी मनुष्य व्रत कर भगवान विष्णु की पूजा करता है उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और वह मृत्यु के बाद मोक्ष को प्राप्त करता है। पुराणों के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु करवट बदलते हैं, लेकिन क्यों? आइये इस रोचक कथा के माध्यम से जानते हैं।
08:25 PM Sep 08, 2024 IST | News24 हिंदी
parivartini ekadashi 2024  इस दिन भगवान विष्णु क्यों बदलते हैं करवट  जानें पौराणिक कथा और बहुत कुछ

Parivartini Ekadashi 2024: इस वर्ष परिवर्तिनी एकादशी 13 सितम्बर, शुक्रवार को है। परिवर्तिनी एकादशी को पद्मा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि इसी दिन चातुर्मास में सो रहे श्री हरि विष्णु करवट बदलते हैं। महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार एक बार युधिष्ठिर के पूछने पर भगवान श्री कृष्ण ने परिवर्तिनी एकादशी से जुड़ी एक कथा के बारे में बताया था।

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परिवर्तिनी एकादशी की कथा

श्री कृष्ण कहते हैं हे युधिष्ठिर ! त्रेतायुग में बलि नाम का मेरा एक भक्त हुआ करता था। कहने को तो वह दैत्य कुल का था परन्तु वह रोज मेरी पूजा बड़ी ही भक्ति पूर्वक किया करता था। असुरराज बलि नित्य यज्ञ कर ब्राह्मणों को दान भी दिया करता था। एक दिन की बात है अपने शक्ति के अहंकार में आकर उसने इंद्रलोक पर आक्रमण कर उसे जीत लिया और सारे देवताओं को इंद्रलोक छोड़ने पर विवश कर दिया।

बलि से हारने के बाद इंद्र सहित सभी देवगण मेरे पास बैकुंठ धाम आए। बैकुंठ धाम आकर सभी देवताओं ने मन्त्रों का उच्चारण कर मेरी स्तुति की। जिससे मेरी निद्रा भंग हो गई और मैंने करवट लिया। उसके बाद देवताओं से कहा आपलोग चिंतित न हों मैं जल्द ही कुछ ऐसा उपाय करता हूं जिससे आपको अपना लोक मिल जाएगा।

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देवताओं के जाने के बाद मैंने वामन का रूप धारण किया और असुरराज बलि के यहां पहुंच गया। उसके बाद मैंने बलि से तीन पग भूमि दान में देने को कहा। मेरी मांग सुनकर असुरराज बलि सहर्ष तैयार हो गया। तब मैंने बलि से वचन मांगा ताकि वो बाद में दान देने से मना न कर दे। उसके बाद मैंने अपना आकार बढ़ा लिया और दो पग में ही धरतीलोक और स्वर्गलोक को माप लिया।

उसके बाद मैंने असुरराज बलि से कहा कि अब मैं तीसरा पग कहां रखूं तो उसने अपना मस्तक आगे कर दिया। मेरा पग मस्तक से लगते ही बलि पाताल को चला गया। बाद में उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर मैंने उसे पाताललोक का राजा बना दिया।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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