भगवान श्रीकृष्ण ने क्यों तोड़कर फेंक दी बांसुरी, जानें क्या है राधा जी की मृत्यु से इसका संबंध...पढ़ें पूरी कथा
Radha Krishna Love Story: 'राधे-कृष्ण' ये शब्द नहीं हैं, प्रेम में समर्पण की पराकाष्ठा का प्रतीक है। राधा और कृष्ण का नाम लेते ही प्रेम, भक्ति और निष्ठा की कथा याद आ जाती। ये दोनों नाम एक-दूसरे के पूरक हैं और सदियों से इनका प्रेम भारतीय संस्कृति में पूजित रहा है। आइए राधा जी की जयंती राधाष्टमी के मौके पर जानते हैं, राधा-कृष्ण में इतना प्रेम होते हुए भी दोनों में वियोग क्यों हुआ, उनकी प्रेम कहानी अधूरी क्यों रह गई और राधा की मृत्यु कैसे हुई थी?
ऐसे हुआ राधा और कृष्ण में प्रेम
प्रथमदृष्टया प्रेम यानी पहली नजर में प्यार... जी हां! कहा जाता है कि राधा और कृष्ण जब पहली बार मिले तो एक-दूसरे को देखते ही प्रेम हो गया था। उन दोनों की मुलाकात कब और से कैसे हुई, इससे जुड़ी कई कथाएं हैं। कहते हैं पहली बार राधा जी ने श्रीकृष्ण को तब देखा था जब उनकी मां यशोदा ने उन्हें ओखले से बांध दिया था। कुछ लोग मानते हैं कि जब वह अपने पिता वृषभानुजी के साथ गोकुल आई थी, तब श्रीकृष्ण को पहली बार देखा था। वहीं अनेक कथाओं में बताया गया है कि राधा और श्रीकृष्ण की पहली मुलाकात संकेत तीर्थ पर हुई थी। तभी से दोनों में प्रेम हो गया था। कहते हैं कि राधा ने जब कृष्ण को देखा तो वह बेहोश हो गई थीं।
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राधा-कृष्ण में वियोग
राधा और कृष्ण की प्रेम कथा संयोग से अधिक वियोग की कथा है। यह कथा न केवल दिव्य बल्कि ईश्वरीय भी है। जब तक श्रीकृष्ण गोकुल में रहे तब तक उनका मिलन श्रीराधाजी से होता रहा। लेकिन जब कंस के निमंत्रण पर श्रीकृष्ण और बलरामजी मथुरा गए और श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया, तब वे फिर कभी गोकुल या वृंदावन नहीं गए। यहीं से शुरू होता है राधा जी और श्रीकृष्ण का लंबे समय का वियोग। मुथरा के बाद श्रीकृष्ण द्वारिका चले गए, लेकिन इस दौरान भी वे कभी राधा जी को नहीं भूले और राधा जी भी श्रीकृष्ण को कभी नहीं भूलीं।
राधा और श्रीकृष्ण का पुनर्मिलन
पुराणों के अनुसार, जब कृष्ण गोकुल-वृंदावन छोड़कर मथुरा और फिर द्वारिका चले गए, तब राधा के लिए उन्हें देखना और उनसे मिलना और दुर्लभ हो गया। इसके बहुत सालों के बाद राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में तब हुआ बताया जाता है, जब एक सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद बाबा के साथ ग्रहण-स्नान के लिए राधा जी भी आई थीं। कहते हैं, राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थीं।
जब राधा जी पहुंची द्वारिका
माना जाता है कि राधा और श्रीकृष्ण की अंतिम मुलाकात द्वारिका में हुई थी। अपने सारे कर्तव्यों से निभाने के बाद राधा जी आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने द्वारिका गईं। जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के सागर महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा। लेकिन इससे राधाजी को कोई इर्ष्या नहीं हुई। कृष्ण जी ने भी जब राधा जी को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए।
राधा जी के अनुरोध पर श्रीकृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया। कहते हैं कि वहीं पर राधा महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं। लेकिन राधा-कृष्ण मिल नहीं पाते थे। कहते हैं, इससे राधाजी उदास रहती थीं और एक दिन इसी उदासी में राधा ने महल से दूर जाने का निर्णय लिया।
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राधा और श्रीकृष्ण का अंतिम मिलन
कहते हैं, राधा किसी जंगल के एक गांव में रहने लगीं थी। धीरे-धीरे समय बीतता गया, राधा बिलकुल अकेली वृद्ध होकर कमजोर होती चली गईं। उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी। उन्होंने भगवान को याद किया कि वे दर्शन दें। भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए। भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें लेकिन उन्होंने मना कर दिया।
जब भगवान श्रीकृष्ण ने तोड़ दी अपने बांसुरी
भगवान श्रीकृष्ण ने राधाजी से फिर अनुरोध किया वे कुछ मांगे। उनके दोबारा कहने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं। श्रीकृष्ण ने मधुर अनुरोध पर अपनी बांसुरी ली और बेहद दिव्य और सुरीली धुन बजाने लगे। राधाजी मग्न हो सुनती रहीं। कहते हैं, भगवान श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई। बांसुरी की धुन सुनते-सुनते राधा जी ने अपने शरीर का त्याग कर अपनी आत्मा को श्रीकृष्ण के साथ विलीन कर दिया। कहते हैं, भगवान होते हुए भी श्रीकृष्ण राधा जी के प्राण त्यागते ही अत्यंत दुखी हो गए। उन्होंने बांसुरी तोड़कर फेंक दी और फिर कभी बांसुरी नहीं बजाया।
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