Sarva Pitru Amavasya 2024: सर्वपितृ अमावस्या पर इस मुहूर्त में करें तर्पण, पूर्वज होंगे प्रसन्न! जानें तिथि
Sarva Pitru Amavasya 2024: पूर्वजों व पितरों को श्रद्धांजलि देने के लिए हर साल श्राद्ध पक्ष में पूजा-अर्चना की जाती है। पंचांग के अनुसार, साल 2024 में भादो मास की पूर्णिमा तिथि के दिन 17 सितंबर से श्राद्ध पक्ष का आरंभ हो गया है, जिसका समापन आश्विन मास की अमावस्या यानी सर्वपितृ अमावस्या के दिन होगा। सर्वपितृ अमावस्या के दिन मृत पूर्वजों और पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, श्राद्ध और पिंडदान आदि कार्य किए जाते हैं। मान्यता है कि इस महा अनुष्ठान के बिना पितरों की आत्मा को शांति नहीं मिलती है। इसलिए हर साल पितृ पक्ष के दौरान लोग सच्चे मन से श्राद्ध पूजा करते हैं। चलिए जानते हैं सर्वपितृ अमावस्या की सही तिथि, तर्पण करने का शुभ मुहूर्त और विधि के बारे में।
सर्वपितृ अमावस्या कब है?
वैदिक पंचांग के अनुसार, इस बार 01 अक्टूबर 2024 को देर रात 09:34 मिनट से अश्विन माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की अमावस्या तिथि का आरंभ हो रहा है, जिसका समापन 03 अक्टूबर को सुबह 12:18 मिनट पर होगा। ऐसे में उदयातिथि के आधार पर 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या की पूजा की जाएगी। इस दिन कुतुप मुहूर्त सुबह 11 बजकर 45 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 24 मिनट तक है। इसके बाद रौहिण मुहूर्त दोपहर में 12 बजकर 34 मिनट से लेकर 01 बजकर 34 मिनट तक है।
कुतुप और रौहिण मुहूर्त के अलावा अपराह्न काल में भी तर्पण करना शुभ माना जाता है। दरअसल, तर्पण की पूजा दोपहर के समय ही की जाती है। ज्योतिषियों के मुताबिक, अपराह्न काल में किया गया तर्पण पितर व पूर्वज स्वीकार करते हैं। 2 अक्टूबर को सर्वपितृ अमावस्या के दिन अपराह्न काल दोपहर में 01 बजकर 21 मिनट से लेकर 03 बजकर 43 मिनट तक है।
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अमावस्या पर किनका श्राद्ध किया जाता है?
धार्मिक मान्यता के अनुसार, सर्वपितृ अमावस्या के दिन सभी पितरों का श्राद्ध करना शुभ होता है। जिन लोगों की मृत्यु तिथि आपको ज्ञात नहीं है, उनका श्राद्ध भी सर्वपितृ अमावस्या के दिन किया जा सकता है।
तर्पण करने की विधि
- तर्पण करने वाली जगह को गंगाजल से शुद्ध करें।
- एक दीपक जलाएं।
- जिनका तर्पण करना है, उनकी फोटो चौकी पर स्थापित करें।
- मंत्रों का जाप करके पितरों का आवाहन करें।
- जल से भरा लोटा लें। पितरों का नाम लेते हुए फोटो के सामने जल चढ़ाएं।
- घी, दूध और दही को साथ में मिलाएं और फिर उसे जल में अर्पित करें।
- इस दौरान तर्पयामी मंत्र का उच्चारण करें।
- पिंड बनाएं और फिर उसे कुश पर रखके जल से सींचें।
- पितरों व पूर्वजों को उनके प्रिय भोजन का भोग लगाएं।
- पितरों को श्रद्धांजलि अर्पित करें।
- पशु-पक्षियों को भोजन कराएं।
- अंत में अपनी क्षमता अनुसार ब्राह्मण को दान-दक्षिणा जरूर दें।
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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।