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पुरा महादेव और भगवान परशुराम की कहानी, गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर कांवड़िया करते हैं अभिषेक
Sawan 2024: पुरा महादेव मंदिर त्रेतायुग से शिवभक्तों का श्रद्धा का केन्द्र है। इसकी स्थापना किसी और ने नहीं बल्कि स्वयं भगवान विष्णु के अवतार भगवान परशुराम ने की थी। पहले इस शिवधाम का नाम परशुरामेश्वर धाम और शिवपुरा था, जो समय के साथ बदलते हुए पुरा महादेव हो गया। वर्तमान में यह शिवधाम उत्तर प्रदेश के बागपत जिले के बालेनी कस्बे में स्थापित है। यूं तो यहां हमेशा शिवभक्तों की भीड़ लगी रहती है, लेकिन सावन के महीने में यह विशेष रूप से गुलजार हो जाता है, जब बृजघाट यानी गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर कांवड़िया पुरा महादेव का जलाभिषेक करते हैं। इस मंदिर की एक खास बात यह भी है कि यहां फाल्गुन के माह में भी भक्त हरिद्वार से पैदल ही कांवड़ में गंगा का पवित्र जल लाकर परशुरामेश्वर महादेव का अभिषेक करते हैं।
पुरा महादेव और भगवान परशुराम की कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार, आज जहां पुरा महादेव मंदिर है, वहां कभी कजरी वन हुआ करता था। जहां एक आश्रम में भगवान परशुराम अपने पिता जमदग्नि ऋषि और मां रेणुका के साथ रहते थे। एक घटना विशेष के बाद जमदग्नि ऋषि अपनी पत्नी रेणुका से नाराज हो गए। उन्होंने परशुराम से रेणुका का सिर धड़ से अलग करने का आदेश दिया। परशुराम जी ने पिता के आदेश को अपना धर्म माना और अपनी मां रेणुका का सिर धड़ से अलग कर दिया। लेकिन इसके बाद में परशुराम जी को बहुत मानसिक संताप, पीड़ा और घोर पश्चाताप हुआ। उन्होंने कजरी वन में ही तपस्या करना शुरू कर दिया और वहां शिवलिंग स्थापित कर उसकी पूजा करने लगे। इसी शिवलिंग को पुरा महादेव कहा गया है।
मां रेणुका का पुनर्जीवन
कहते हैं, परशुराम जी की घोर तपस्या से भगवान शिव प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रत्यक्ष दर्शन दिया और परशुराम जी को वरदान मांगने को कहा। भगवान परशुराम ने अपनी मां रेणुका को पुनर्जीवित करने की प्रार्थना की। भगवान शिव ने उनकी माता को जीवित कर दिया। मान्यता है कि परशुराम जी को भगवान शिव ने एक फरसा भी दिया और आशीर्वाद दिया कि जब भी युद्ध के समय वे इसका इस्तेमाल करेंगे, वे हमेशा विजयी होंगे।
पुनर्जीवित होने के बाद मां रेणुका सहित परशुराम जी वहीं पर एक आश्रम बनाकर रहने लगे। कहते हैं कि देवी रेणुका हर रोज कच्चा घड़ा बनाकर हिंडन नदी से जल भर कर लाती थीं और पुरा महादेव शिवलिंग का जलाभिषेक करती थीं। हिंडन नदी को पुराणों में पंचतीर्थी भी कहा गया है, जो हरनंदी नदी के नाम से भी विख्यात था।
दुनिया के पहले कांवड़िया भगवान परशुराम
वहीं पौराणिक कथाओं में यह वर्णन मिलता है कि भगवान परशुराम गढ़मुक्तेश्वर के पास स्थित गंगा नदी से कांवड़ से जल ढोकर लाते थे और भगवान शिव का अभिषेक करते थे। माना जाता है, परशुराम जी दुनिया के पहले कांवड़िया थे। कांवड़ यात्रा शुरू करने का श्रेय उनको ही दिया जाता है। सदियों से यह परंपरा आज भी बदस्तूर चली आ रही है। बता दें, साल 2024 में सावन मास की शुरुआत 22 जुलाई से हो रही है, जब कांवड़ यात्री जत्थे में बृजघाट यानी गढ़मुक्तेश्वर से जल लाकर पुरा महादेव का जलाभिषेक करेंगे। कुछ कांवड़िया यहां हरिद्वार से भी जल लाते हैं और भगवान शिव की पूजा करते हैं।
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