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Navratri Special Story: शुम्भ-निशुम्भ के अत्याचार से देवी दुर्गा ने देवताओं को कैसे बचाया?

Navratri Special Story: दुर्गा सप्तशती के अनुसार माता दुर्गा ने असुरों और राक्षसों का वध करने के लिए कई रूप धारण किए। इस लेख में हम आपको शुम्भ-निशुम्भ के वध की कथा बताने जा रहे हैं।
06:00 AM Sep 26, 2024 IST | Nishit Mishra
Story of Shumbha-Nishumbha slaughter
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Navratri Special Story: महिषासुर वध के बाद दो राक्षस भाइयों ने देवताओं को देवलोक से भगा दिया था। देवतागण अपनी व्यथा लेकर माता के पास पहुंचे। तब माता ने देवताओं से कहा मैं इन दोनों भाइयों का अंत अवश्य करूंगी, आपलोग निश्चिंत रहें। चलिए जानते हैं कि देवी दुर्गा ने शुम्भ-निशुम्भ का अंत कैसे किया?

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दुर्गा सप्तशती की कथा

दुर्गा सप्तशती में वर्णित कथा के अनुसार शुम्भ और निशुम्भ नाम के दो राक्षस भाई हुआ करते थे। देवताओं से मिले वरदान की शक्ति से दोनों भाइयों ने देवराज इंद्र से उनका सिंहासन छीन लिया था और स्वर्ग से सारे देवताओं को बाहर भी निकाल दिया था। स्वर्ग से निर्वासित होने के बाद देवताओं को माता दुर्गा का वरदान याद आया। माता दुर्गा ने महिषासुर वध के बाद देवताओं को वरदान दिया था कि संकट के समय यदि आपलोग मेरी प्रार्थना करेंगे तो मैं स्वयं आपलोगों के संकट का निवारण करूंगी। उसके बाद इंद्र सहित सारे देवता हिमालय पहुंचे और फिर वहां माता की स्तुति करने लगे।

माता को मिला विवाह का प्रस्ताव

देवताओं की स्तुति सुनकर माता प्रकट हुई और बोली आप लोग क्या चाहते हैं? तब देवराज इंद्र ने कहा शुम्भ-निशुम्भ ने हमें स्वर्ग के सिंहासन से अलग कर दिया है। कृपया कर दोनों भाइयों का अंत करें। उधर जब शुम्भ-निशुम्भ को माता के रूप का पता चला तो उसने सुग्रीव नाम के दैत्य को माता के पास शादी  का प्रस्ताव लेकर भेजा। सुग्रीव के प्रस्ताव को सुनकर माता बोली मैं उसी से विवाह करूंगी जो मुझे युद्ध में परास्त कर देगा। माता की बातें सुनकर सुग्रीव दोनों भाइयों के पास गया और बोला देवी को अगर आपने युद्ध में परास्त कर दिया तभी वो आपसे विवाह करेंगी। दूत की बातें सुनकर दोनों भाई क्रोधित हो उठे और उन्होंने धूम्रलोचन नाम के राक्षस को माता को लाने हिमालय पर भेजा। किन्तु धूम्रलोचन के प्रस्ताव को सुनते ही देवी ने उसका वध कर दिया।

शुम्भ-निशुम्भ का अंत

धूम्रलोचन वध के बाद शुम्भ-निशुम्भ ने अपनी सेना को भेजा लेकिन देवी ने सारी सेना का भी अंत कर दिया। इसके बाद स्वयं दोनों भाई देवी से युद्ध करने के लिए आए और देवी को युद्ध के लिए ललकारा। देखते ही देखते शुम्भ-निशुम्भ और देवी दुर्गा के बीच भयानक युद्ध छिड़ गया। फिर देवी ने अपने बाणों के प्रहार से निशुम्भ को घायल कर दिया। देवी के बाणों के प्रहार से निशुम्भ बेहोश हो गया। भाई को घायल देख शुम्भ देवी से युद्ध करने लगा। फिर देवी ने त्रिशूल से शुम्भ पर प्रहार किया और वह भी बेहोश हो गया। थोड़ी देर बाद जब निशुम्भ को जब होश आया तो वह पुनः देवी से युद्ध करने लगा, परन्तु इस बार देवी ने तलवार से उसका वध कर दिया। इस तरह निशुम्भ का अंत हो गया। निशुम्भ के वध के बाद  शुम्भ भी होश आने पर देवी से युद्ध करने लगा। शुम्भ से काफी देर युद्ध करने के बाद माता ने अपने त्रिशूल से शुम्भ का भी वध कर दिया। यह देख देवता बहुत प्रसन्न हुए और माता पर पुष्प की बारिश करने लगे।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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