डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष मान्यता पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।
शारीरिक और मानसिक कष्टों से मुक्ति पाने के लिए सूर्य ग्रहण के दिन करें इन मंत्रों का जाप, जीवन रहेगा खुशहाल
Surya Grahan 2024: वैदिक ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, साल 2024 का पहला सूर्य ग्रहण 8 अप्रैल यानी चैत्र अमावस्या को लगने वाला है। ज्योतिषियों के अनुसार, सूर्य ग्रहण का प्रभाव भारत पर नहीं पड़ेगा और न ही सूतक काल मान्य नहीं रहेगा। लेकिन विश्व के कई देशों में सूर्य ग्रहण का प्रभाव रहेगा। ज्योतिषियों का मानना है कि जब भी ग्रहण लगता है तो पृथ्वी पर राहु का प्रभाव बढ़ जाता है, जिससे खाने-पीने की चीजें दूषित हो जाती हैं।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, ग्रहण के दौरान खाने-पीने की अनुमति नहीं दी जाती है। ग्रहण के दौरान मांगलिक कार्य भी करने की मनाही होती है। इसलिए शास्त्रों में ग्रहण के दौरान कुछ विशेष नियमों का पालन करने के बारे में बताया गया है। इन नियमों का पालन करने से शारीरिक एवं मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती हैं। साथ ही जीवन खुशहाल रहने लगता है। तो आज इस खबर में जानेंगे कि सूर्य ग्रहण के दौरान कौन-कौन से उपाय करने चाहिए।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, ग्रहण के दौरान कुछ ऐसे चमत्कारी मंत्र हैं जिनका जाप करना चाहिए। साथ ही भगवान श्री हरि नाम का भी जाप करना चाहिए। मान्यता है कि हरि नाम और इन मंत्रों का जाप करने से जीवन की सारी समस्याएं दूर हो जाती हैं। तो आइए उन मंत्रों के बारे में जानते हैं।
सूर्य मंत्र
ओम आकृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यण्च ।
हिरण्य़येन सविता रथेन देवो याति भुवनानि पश्यन ।।
ओम घृणि: सूर्यादित्योम
ओम घृणि: सूर्य आदित्य श्री
ओम ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय: नमः
ओम ह्रीं ह्रीं सूर्याय नमः
जपाकुसुम संकाशं काश्यपेयं महाद्युतिम ।
तमोsरिं सर्वपापघ्नं प्रणतोsस्मि दिवाकरम ।
ओम आदित्याय विदमहे दिवाकराय धीमहि तन्न: सूर्य: प्रचोदयात ।।
राहु ग्रह मंत्र
ओम कयानश्चित्र आभुवदूतीसदा वृध: सखा ।
ओम ऎं ह्रीं राहवे नमः
ओम भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नमः
ओम ह्रीं ह्रीं राहवे नमः राहु ग्रह का पौराणिक मंत्र ।।
ओम अर्धकायं महावीर्य चन्द्रादित्यविमर्दनम ।
सिंहिकागर्भसंभूतं तं राहुं प्रणमाम्यहम ।।
“ओम शिरो रूपाय विद्महे अमृतेशाय धीमहि तन्नो राहुः प्रचोदयात्”।।
भगवान शिव स्तुति
शंकरं, शंप्रदं, सज्जनानंददं, शैल-कन्या-वरं, परमरम्यं ।
काम-मद-मोचनं, तामरस-लोचनं, वामदेवं भजे भावगम्यं ॥
कंबु-कुंदेंदु-कर्पूर-गौरं शिवं, सुन्दरं, सच्चिदानंदकंदं ।
सिद्ध-सनकादि-योगीन्द्र-वृन्दारका, विष्णु-विधि-वन्द्य चरणारविंदं ॥
ब्रह्म-कुल-वल्लभं, सुलभ मति दुर्लभं, विकट-वेषं, विभुं, वेदपारं ।
नौमि करुणाकरं, गरल-गंगाधरं, निर्मलं, निर्गुणं, निर्विकारं ॥
लोकनाथं, शोक-शूल-निर्मूलिनं, शूलिनं मोह-तम-भूरि-भानुं ।
कालकालं, कलातीतमजरं, हरं, कठिन-कलिकाल-कानन-कृशानुं ॥
तज्ञमज्ञान-पाथोधि-घटसंभवं, सर्वगं, सर्वसौभाग्यमूलं ।
प्रचुर-भव-भंजनं, प्रणत-जन-रंजनं, दास तुलसी शरण सानुकूलं ॥
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