whatsapp
For the best experience, open
https://mhindi.news24online.com
on your mobile browser.
Advertisement

Mahabharat Story: किसने किया महावीर अर्जुन का वध? जिसे देखकर हंसने लगी देवी गंगा!

Mahabharat Story: महाभारत में बताया गया है कि अर्जुन अजय था। अर्जुन के कारण ही पांडवों को महाभारत युद्ध में जीत मिली थी। लेकिन एक कथा ऐसी भी है जिसमें बताया गया है कि महाभारत युद्ध के बाद उसका किसी ने वध कर दिया था, अर्जुन के वध से देवी गंगा प्रसन्न हो गई थीं और वह जोर-जोर से हंसने लगी थीं। आइये जानते हैं ऐसा क्या हुआ था और किसने किया था अर्जुन का वध?
06:06 PM Sep 29, 2024 IST | Nishit Mishra
mahabharat story  किसने किया महावीर अर्जुन का वध  जिसे देखकर हंसने लगी देवी गंगा
Why Devi Ganga smiled at Arjuna's Death

Mahabharat Story: अर्जुन ने द्रौपदी के अलावा भी तीन कन्याओं से विवाह किया था। उसके दो पुत्र महाभारत युद्ध के दौरान ही मृत्यु को प्राप्त हो चुके थे। लेकिन एक पुत्र ने महाभारत युद्ध में भाग नहीं लिया था। उसी पुत्र ने युद्ध के बाद अर्जुन का वध कर दिया था। चलिए जानते हैं कि आखिर पुत्र ने ही अर्जुन का वध क्यों कर दिया था और देवी गंगा अर्जुन को मरा हुआ देख मुस्कुराने क्यों लगी थीं?

Advertisement

महाभारत की कथा

ये कथा उस समय की है, जब कौरवों पर विजय प्राप्त करने के बाद ज्येष्ठ पांडव युधिष्ठिर हस्तिनापुर के राजा बने। राजा बनने के कुछ दिनों बाद श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर से अश्‍वमेध यज्ञ करने को कहा। उसके बाद युधिष्ठिर ने अश्‍वमेध यज्ञ शुरू किया और यज्ञ के अश्व को अर्जुन के नेतृत्व में छोड़ दिया गया। अश्व जहां भी जाता अर्जुन उसकी रक्षा के लिए उसके पीछे-पीछे वहां जाते। अश्व कई राज्यों से होकर गुजरा जहां के राजाओं ने अर्जुन से युद्ध किये बिना ही हस्तिनापुर की अधीनता स्वीकार कर ली। जिस राज्य ने अश्‍वमेध यज्ञ के अश्व को रोका, उसे अर्जुन ने युद्ध में पराजित कर हस्तिनापुर के अधीन कर लिया।

अर्जुन का पुत्र बभ्रुवाहन

कुछ दिनों बाद कई राज्यों से होता हुआ अश्‍वमेध यज्ञ का अश्व मणिपुर राज्य पहुंचा। उस समय मणिपुर का राजा अर्जुन और चित्रांगदा का पुत्र बभ्रुवाहन हुआ करता  था। बभ्रुवाहन ने जब सुना कि उसके पिता महावीर अर्जुन मणिपुर आ रहे हैं तो वह अपने पिता के स्वागत के लिए राज्य की सीमा पर जा पहुंचा। फिर जब अर्जुन मणिपुर की सीमा पर पहुंचे तो बभ्रुवाहन उनके स्वागत के लिए अर्जुन के पास आया, परन्तु अर्जुन ने उसे रोक दिया। अर्जुन ने अपने पुत्र से कहा, मैं इस समय तुम्हारा पिता नहीं हूं बल्कि हस्तिनापुर नरेश युधिष्ठिर का प्रतिनिधि हूं। तुम एक क्षत्रिय हो और तुम्हें क्षत्रिय धर्म के अनुसार मुझसे युद्ध करना चाहिए। यदि युद्ध नहीं करना चाहते हो तो हस्तिनापुर की अधीनता स्वीकार कर लो और इस अश्व को आगे बढ़ने दो।

Advertisement

बभ्रुवाहन और अर्जुन की लड़ाई

उसी समय अर्जुन की दूसरी पत्नी नाग कन्या उलूपी वहां आ पहुंची और वह बभ्रुवाहन से बोली हे पुत्र! तुम्हें क्षत्रिय धर्म का पालन करते हुए इस समय अपने पिता से युद्ध करना चाहिए। यदि तुम ऐसा नहीं करते तो यह क्षत्रिय धर्म के साथ-साथ तुम्हारे पिता का भी अपमान माना जाएगा। उलूपी की बातें सुनकर बभ्रुवाहन युद्ध के लिए तैयार हो गया। इसके बाद कई दिनों तक पिता-पुत्र के बीच यह घोर युद्ध चला। जब बभ्रुवाहन ने देखा कि युद्ध का कोई परिणाम नहीं निकल रहा है तो उसने अपने पिता पर कामाख्या देवी से मिले दिव्या बाण से प्रहार कर दिया। कामाख्या देवी के दिव्य बाण लगते ही अर्जुन का सर धड़ से अलग हो गया।

श्री कृष्ण मणिपुर पहुंचे

अर्जुन की मृत्यु का समाचार सुनकर श्री कृष्ण उसी क्षण मणिपुर के लिए निकल पड़े। उधर देवी कुंती भी अर्जुन के बारे में सुनकर मणिपुर आ पहुंची। श्री कृष्ण जब मणिपुर पहुंचे तो उन्होंने देखा कि देवी गंगा अर्जुन के शव के पास बैठकर जोर-जोर से हंस रही हैं। माता कुंती अर्जुन के शव को अपने गोद में रखकर विलाप कर रही हैं। कुछ ही देर बाद देवी गंगा कुंती से बोलीं, कुंती तुम्हारे पुत्र को उसके कर्मों का फल मिला है। तुम व्यर्थ ही विलाप कर रही हो। मेरा पुत्र भीष्म इसे जान से भी ज्यादा स्नेह करता था फिर भी तुम्हारे पुत्र ने मेरे पुत्र का छल से वध कर दिया। मैंने आज अपने पुत्र के वध का बदला अर्जुन से ले लिया है। मेरे ही कहने पर देवी कामाख्या ने बभ्रुवाहन को ये दिव्य बाण दिए थे।

Advertisement

देवी गंगा और श्री कृष्ण

देवी गंगा के मुख से बदले की बातें सुनकर श्री कृष्ण बोले हे गंगे! आप किस-किस से बदला लेंगी। आप एक माता से कैसे बदला ले सकती हैं। तब देवी गंगा बोली हे कृष्ण! आप तो जानते ही हैं कि अर्जुन ने  मेरे पुत्र का वध किया था, जब उसने शिखंडी को देखकर अपना धनुष नीचे रख दिया था। उस समय वह निहत्था था। अब मैंने  अर्जुन का  वध करवाकर क्या अनुचित किया है? तब श्री कृष मुस्कुराते हुए हुए बोले हे गंगे! पितामह ने स्वयं अर्जुन को अपने वध का मार्ग बतलाया था। अर्जुन चाहता तो उस दिव्य बाण को रोक सकता था लेकिन उसने ऐसा नहीं किया क्योंकि वह जानता था कि बभ्रुवाहन ने जो बाण चलाया है वह माता कामाख्या के दिव्य बाण हैं।

अर्जुन को मिला जीवनदान

उसके बाद देवी गंगा बोली हे वासुदेव! मुझसे बड़ी भूल हो गई, अब आप ही बताइए अर्जुन को कैसे पुनर्जीवित किया जा सकता है?  उसके बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन के सर को उसके धड़ से जोड़ दिया और उलूपी के पास रखे  नागमणि से अर्जुन को जीवित कर दिया।

ये भी पढ़ें- Chanakya Niti: विवाह के बाद भी इन 3 चीजों से पुरुषों का मन नहीं भरता, हमेशा पाने को जी चाहता है!

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

Open in App Tags :
Advertisement
tlbr_img1 दुनिया tlbr_img2 ट्रेंडिंग tlbr_img3 मनोरंजन tlbr_img4 वीडियो