Mahabharat: श्री कृष्ण के अलावा कोई और क्यों नहीं बन सकता था अर्जुन का सारथी?
Mahabharat: महाभारत का युद्ध जब शुरू हुआ तो अर्जुन ने कुरुक्षेत्र में अपना धनुष त्याग दिया था। अर्जुन को ऐसा करते देख भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया। गीता के अनमोल वचनों को सुनकर अर्जुन युद्ध के लिए तैयार हो गए । इस युद्ध में श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बने थे। युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनना क्यों स्वीकार किया? इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं। चलिए जानते हैं कि श्री कृष्ण के सारथी बनने का रहस्य क्या था?
महाभारत कथा
महाभारत में वर्णित कथा के अनुसार जब कौरवों और पांडवों में युद्ध निश्चित हो गया, तब दुर्योधन और अर्जुन श्री कृष्ण के पास सहायता लेने द्वारका पहुंचे। द्वारका पहुंचने पर दुर्योधन ने देखा की श्री कृष्ण सो रहे हैं तो वह उनके सिर की ओर बैठ गया। उसके बाद अर्जुन श्री कृष्ण के पास पहुंचे और वह श्री कृष्ण के पैर की ओर बैठ गए। थोड़ी देर बाद जब श्री कृष्ण नींद से जागे तो दोनों ने सहायता के लिए कहा। तब श्री कृष्ण ने दुर्योधन से कहा मैं इस युद्ध में शस्त्र नहीं उठाऊंगा। इसलिए एक और मैं निहत्था रहूंगा और दूसरी और मेरी नारायणी सेना होगी। कृष्ण की बातें सुनकर दुर्योधन ने नारायणी सेना का चयन किया और अर्जुन ने निहत्थे श्री कृष्ण को चुना।
अर्जुन के प्रश्न
थोड़ी देर बाद जब दुर्योधन चला गया तो श्री कृष्ण ने अर्जुन से कहा पार्थ! इस युद्ध में मैं तुम्हारा सारथी बनूंगा। कृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन ने कहा हे नारायण ! आप मेरा सारथी ही क्यों बनना चाहते हैं ? श्री कृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा तुम्हारे इस प्रश्न का जवाब मैं युद्ध के अंतिम दिन दूंगा। फिर श्री कृष्ण ने रथ की सुरक्षा की दृष्टि से हनुमान जी और माता दुर्गा को अर्जुन के रथ पर विराजमान होने को कहा। जिस दिन युद्ध शुरू हुआ श्री कृष्ण सवेरे ही एक सारथी की भांति रथ को तैयार कर शिविर के बाहर अर्जुन की प्रतीक्षा करने लगे। अर्जुन अस्त्र-शस्त्र से सुसज्जित होकर शिविर से बाहर आये तो श्री कृष्ण ने पहले अर्जुन को रथ पर बिठाया और उसके बाद स्वयं रथ पर बैठे और कुरुक्षेत्र की ओर चल दिए।
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युद्ध का पहला दिन
युद्ध के पहले दिन जब अर्जुन ने अपने सामने भीष्म पितामह, कृपाचार्य और गुरु द्रोणाचार्य जैसे योद्धा को देखा तो गांडीव निचे रखकर श्री कृष्ण से बोले हे नारायण! मैं इन वीरों के साथ युद्ध नहीं करना चाहता। तब श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया और अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार किया। फिर शाम को जब युद्ध रुका तो वह अर्जुन को रथ में बिठाकर शिविर वापस आये। शिविर आकर सबसे पहले कृष्ण रथ से उतरे और फिर अर्जुन को रथ से नीचे उतारा। पहले दिन की भांति श्री कृष्ण रोज कुरुक्षेत्र जाने से पहले अर्जुन को रथ पर बिठाते और फिर स्वयं बैठते। रोज शाम को शिविर वापस आकर पहले स्वयं रथ से उतरते उसके बाद अर्जुन को रथ से उतारते।
युद्ध का अंतिम दिन
युद्ध के अंतिम दिन यानि अठारहवें दिन जब युद्ध समाप्त हो गया तो श्री कृष्ण शाम को रथ लेकर वापस पांडवों के शिविर आये और इस दिन श्री कृष्ण ने पहले अर्जुन को रथ से नीचे उतरने को कहा। कृष्ण की बातें सुनकर अर्जुन ने कहा माधव! शिविर वापस आने के बाद तो आप पहले रथ से उतरते हैं परन्तु आज मुझे पहले क्यों रथ से उतरने को कह रहे हैं? तब श्री कृष्ण ने कहा पार्थ! पहले रथ से उतरो उसके बाद मैं तुम्हारे सवाल का जवाब देता हूँ। कृष्ण के कहने पर अर्जुन पहले रथ से उतरे और उसके बाद श्री कृष्ण भी रथ से उतर गए। श्री कृष्ण के रथ से उतरते ही अर्जुन का रथ धू-धू कर जलने लगा।
क्यों बने सारथी?
रथ को जलते हुए देख अर्जुन हैरान हो गए और पूछा हे नारायण ! यह रथ क्यों जल रहा है ? तब श्री कृष्ण ने कहा अर्जुन तुम्हारा रथ तो युद्ध के पहले दिन ही नष्ट हो गया था। यह उसी दिन भीष्म पितामह और गुरु द्रोणाचार्य जैसे महारथियों के बाण से नष्ट हो गया था। इस रथ पर हनुमानजी,देवी दुर्गा और स्वयं मैं विराजमान था इस लिए अभी तक इसका अस्तित्व बचा हुआ था। साथ ही अगर मैं तुम्हारा सारथी न होता तो शायद आज ये महाभारत युद्ध ही नहीं हुआ होता। याद करो कैसे तुमने युद्ध के पहले दिन अपना धनुष त्याग दिया था। यदि कोई और तुम्हारा सारथी होता तो क्या वह तुम्हें युद्ध के लिए तैयार कर सकता था? याद करो तुमने मुझ से पूछा था कि मैं तुम्हारा सारथी क्यों बनना चाहता हूँ? मुझे लगता है अब तुम्हें अपने प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।