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Mahabharat Story: युधिष्ठिर जुए में जीत सकते थे, लेकिन श्री कृष्ण ने ऐसा क्यों नहीं किया?

Mahabharat Story: ये तो हम सभी जानते हैं कि पांडव जुए में अपना सब कुछ हार गए थे। श्री कृष्ण को यदि पहले से पता था तो उन्होंने युधिष्ठिर को जुए में हारने क्यों दिया? अब यहां पर सबसे बड़ा ये प्रश्न उठता है कि आखिर श्री कृष्ण ने युधिष्ठिर को जुआ खेलने ही क्यों दिया?
10:25 PM Oct 06, 2024 IST | Nishit Mishra
mahabharat story  युधिष्ठिर जुए में जीत सकते थे  लेकिन श्री कृष्ण ने ऐसा क्यों नहीं किया

Mahabharat Story: उद्धव गीता में वर्णित कथा के अनुसार एक दिन उद्धव ने श्री कृष्ण से पूछा, हे कृष्ण! आप तो पांडवों के मित्र हैं। आप तो पहले से ही सब कुछ जानते हैं। आपने कुरुक्षेत्र के मैदान में जो मित्र की परिभाषा दी, उसके अनुसार आपने मित्रता धर्म का पालन नहीं किया। यदि आप चाहते तो युधिष्ठिर जुए में जीत सकते थे। आपने ऐसा क्यों नहीं किया?

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श्री कृष्ण के जवाब

श्री कृष्ण मुस्कुराते हुए उद्धव से बोले, हे उद्धव ये सृष्टि का नियम है कि विवेकवान ही कोई भी क्रीड़ा जीतता है। उस समय दुर्योधन के पक्ष में ही विवेक था। उस समय धर्मराज विवेकहीन थे। इसलिए वे जुए में हार गए। दुर्योधन के पास जुआ खेलने के लिए पैसा और धन तो बहुत था लेकिन उसे पासे को चलना नहीं आता था। इसलिए दुर्योधन ने जुआ खेलने के लिए अपने मामा शकुनि से कहा। दुर्योधन के ऐसा करने पर युधिष्ठिर भी मुझे अपनी जगह जुआ खेलने कह सकते थे, लेकिन धर्मराज ने ऐसा नहीं किया। अब तुम ही सोचो अगर उस सभा में शकुनि और मैं जुआ खेल रहा होता तो, कौन जीतता? इस भूल के लिए भी धर्मराज को मैंने क्षमा कर दिया।

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युधिष्ठिर ने उसके बाद एक और गलती की, युधिष्ठिर ने मुझ से विनती की कि मैं तब तक उस सभा में न आऊं जब तक मुझे बुलाया न जाए। वो चाहते थे कि मुझे पता न चले की धर्मराज जुआ खेल रहे हैं। धर्मराज मुझ से छुपकर जुआ खेलना चाहते थे। इस तरह धर्मराज ने मुझे बांध दिया था। फिर भी मैं उस सभा के बाहर उनका इंतजार कर रहा था। धर्मराज की छोड़ो, उस सभा में जाते ही भीम,अर्जुन, नकुल और सहदेव भी मुझे भूल गए। उनलोगों ने भी मुझे याद नहीं किया। चारों भाई सभा में बैठकर अपने भाग्य और दुर्योधन को कोसते रहे।

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इस सवाल का जवाब नहीं मिला

भाइयों की बातों को छोड़ भी तो, द्रौपदी ने भी मुझे उस समय नहीं पुकारा, जब दुःशासन उसे बालों से घसीटते हुए सभा में ले जा रहा था। सभा में जाने के बाद भी द्रौपदी ने मुझे याद नहीं किया। वे सभा में बैठे वीरों से उस अधर्म को रोकने को कह रही थीं। जबकि वे जानती थीं कि सभा में बैठे वीर उसकी मदद नहीं कर सकते, फिर भी द्रौपदी ने ऐसा किया। दुर्योधन के कहने पर पर जब दुःशासन द्रौपदी की साड़ी को खींचने लगा तब जाकर उसने मुझे याद किया। द्रौपदी के याद करते ही मैं वहां पहुंच गया। पहुंचकर अदृश्य रूप से मैंने उसके शील की रक्षा की। अब तुम्हीं बताओ मेरी क्या गलती है?

श्री कृष्ण की बातें सुनकर उद्धव बोला, इसका अर्थ ये हुआ कि आप तभी आओगे जब आपको याद किया जायेगा। क्या संकट में आप स्वयं अपने भक्त की मदद नहीं कर सकते। श्री कृष्ण उद्धव की बातें सुनकर पहले मुस्कुराए, फिर कहा उद्धव! इस सृष्टि में सभी को अपने कर्मों का दंड मिलता है। मैं इसे बदलने वाला कौन होता हूं?

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है

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