जंगल की आग से बिगड़ता है नाइट्रोजन का संतुलन, पड़ता है पेड़-पौधों पर बुरा असर
Science News: वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किए गए शोध में बड़ा खुलासा हुआ है। रिसर्च के नतीजों के अनुसार दुनिया भर के जंगलों में आग लगने से हिमालय और तिब्बती पठार के क्षेत्रों में नाइट्रोजन का असंतुलन पैदा हो रहा है। इसका कारण प्राथमिक प्रदूषकों (कणों के साथ-साथ गैसों) के जटिल मिश्रण का उत्सर्जन है, जिससे निचले क्षेत्रों की वायु गुणवत्ता में गिरावट आती है। इससे मानव स्वास्थ्य, पारिस्थितिकी तंत्र और क्षेत्रीय जलवायु पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
नाइट्रोजन का कम होना पेड़-पौधों पर डालता है बुरा असर
शोध में शामिल वैज्ञानिकों ने कहा कि इस तरह की आग में नाइट्रोजन ऑक्साइड के रूप में उत्सर्जित होता है और विशेष चिंता का विषय है क्योंकि नाइट्रोजन पौधों के उत्पादन और विकास के लिए एक महत्वपूर्ण सीमित तत्व है। नाइट्रोजन एरोसोल पृथ्वी के प्रत्येक क्षेत्र में प्रकृति में सर्वव्यापी हैं और इस प्रकार, पोषक तत्व संतुलन के साथ-साथ पृथ्वी की जलवायु प्रणाली में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ऐसे में यदि नाइट्रोजन का लेवल पर्यावरण में एक निश्चित सीमा से कम है तो वह पेड़-पौधों और जंगलों के लिए घातक हैं। इससे उनकी पैदावार कम भी हो सकती है।
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इस संदर्भ में वैज्ञानिकों की एक अंतरराष्ट्रीय टीम ने अपने अध्ययन में निष्कर्ष निकाला है कि नाइट्रोजन एरोसोल हिमालय और तिब्बती पठार में नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को खतरे में डाल रहे हैं। काशी हिंदू विश्वविद्यालय के पर्यावरण एवं धारणीय विकास संस्थान के डॉ. कृपा राम भी इस वैश्विक शोध टीम का हिस्सा थे। टीम पहली बार इस क्षेत्र में नाइट्रोजन एरोसोल के स्रोत की पहचान करने में सक्षम हुई है जो अब तक अज्ञात थे।
अध्ययन से संकेत मिलता है कि जंगल की आग के कारण मार्च और अप्रैल के महीनों के दौरान नाइट्रोजन की सांद्रता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जाती है। अध्ययन के निष्कर्ष विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। इसमें न केवल प्रकाश संश्लेषण के लिए आवश्यक सबसे महत्वपूर्ण वर्णक और क्लोरोफिल होता है, बल्कि यह अमीनो एसिड के संश्लेषण के लिए भी महत्वपूर्ण है जो प्रोटीन के निर्माण खंड हैं।
नाइट्रोजन की अधिकता भी ठीक नहीं
अब तक प्राप्त जानकारी के अनुसार नाइट्रोजन की अधिकता भी पृथ्वी के लिए घातक हो सकती है। हालांकि इस बारे में अभी पूरी तरह जानकारी प्राप्त नहीं की जा सकी है। फिर भी माना जाता है कि नाइट्रोजन की अधिकता जंगलों और पौधों की बढ़त पर नेगेटिव असर डाल सकती है। इसके अलावा, नाइट्रोजन कई सेलुलर घटकों का गठन करता है और स्थलीय और जलीय प्रणालियों में कई जैविक प्रक्रियाओं में आवश्यक है।
अध्ययन से संकेत मिलता है कि जंगल की आग के कारण मार्च और अप्रैल के महीनों के दौरान नाइट्रोजन की सांद्रता में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जाती है। रिसर्च के नतीजे विश्व स्तर पर प्रतिष्ठित वैज्ञानिक पत्रिका एनवायर्नमेंटल साइंस एंड टेक्नोलॉजी में प्रकाशित हुए हैं। शोध में हिमालय और तिब्बती पठार क्षेत्र पर भी काफी जानकारी जुटाई गई है।