एक गलती से टूटी रीढ़ की हड्डी और...जानें धरमबीर सिंह कौन? जिन्होंने पेरिस पैरालंपिक में जीता गोल्ड
Gold Medalist Dharambir Singh Profile: पेरिस पैरालंपिक 2024 में भारतीय एथलीट मेडल पर मेडल जीतकर इतिहास रच रहे हैं। बीती रात एक और एथलीट धरमबीर सिंह ने गोल्ड मेडल जीतकर देश का नाम रोशन किया। धरमबीर ने क्लब थ्रो F51 खेल प्रतियोगिता में 34.92 मीटर दूर थ्रो करके गोल्ड मेडल जीता। भारत के ही प्रणव सूरमा ने 34.59 मीटर दूर थ्रो करके सिल्वर मेडल जीता, लेकिन गोल्ड मेडलिस्ट धरमबीर के लिए पैरांलपिक तक पहुंचने का सफर आसान नहीं रहा। एक हादसे ने उनकी जिंदगी को पूरी तरह बदल दिया और उन्हें ऐसी कगार पर ला दिया के वे सहारे के मोहताज बन गए, लेकिन धरमबीर मजबूरी की जिंदगी नहीं जीना चाहते थे, इसलिए उन्होंने हिम्मत जुटाई और हाड़-तोड़ मेहनत करके खुद को पैरालंपिक तक पहुंचाया। आइए धरमबीर के संघर्ष की कहानी पढ़ते हैं...
इतिहास लीखा जा चुका है !!!!!!!!
Congratulations to every member of India's Paralympics 2024 contingent for this success #DharambirSingh 🥇 #PranavSoorma 🥈 pic.twitter.com/PblwkMOGAH— Suyash Subhash Deshpande (@32_Desh) September 5, 2024
नहर में चट्टान से टकराने से लकवाग्रस्त हुए
धरमबीर सिंह हरियाणा के सोनीपत जिले के निवासी है। वे व्हीलचेयर पर रहते हैं, क्योंकि उनकी कमर से नीचे का हिस्सा काम नहीं करता। एक हादसे ने उन्हें व्हीलचेयर पर पहुंचा दिया। उनकी अपनी एक गलती के कारण वे पैरालाइज्ड हुए और अब जिंदगी में कभी अपने पैरों पर चल नहीं पाएंगे। यह तब की बात है, जब धरमबीर खेलों की दुनिया से दूर थे। उन्होंने नहाने के लिए नहर में गोता लगाया, लेकिन वे तैरते हुए पानी की गहराई का अनुमान नहीं लगा पाए और एक चट्टान से टकरा गए। चट्टान से टक्कर लगने से उनकी रीढ़ की हड्डी में चोट लगी। इस चोट के कारण उनका नीचे का शरीर पैरालाइज हो गया। काफी इलाज कराने के बाद भी वे इस चोट से उबर नहीं पाए। उनके और परिवार के लिए यह घटना किसी सदमे से कम नहीं थी। उनकी हालत देखकर परिवार ने हौंसला बढ़ाया और उन्हें खेलों में करियर बनाने की सलाह दी।
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एथलीट धरमबीर की उपलब्धियां और अवार्ड
धरमबीर बताते हैं कि उन्होंने साल 2014 में पैरा गेम्स में करियर की शुरुआत की। एथलीट अमित कुमार सरोहा ने सहयोग किया और वे उनके आदर्श बने। अमित ने ही उन्हें क्लब थ्रो खेलना सिखाया, क्योंकि इसमें सिर्फ कंधों और बाजुओं का इस्तेमाल होता है और दूर तक थ्रो करना होता है। कड़ी मेहनत करके गेम के गुर सीखकर उन्होंने साल 2016 में रियो पैरालंपिक के लिए क्वालिफाई किया, जहां वे 9वें नंबर पर रहे। टोक्यो पैरालंपिक 2020 में वे 8वें नंबर पर रहे थे। हांगझोऊ एशियाई पैरा गेम्स में उन्होंने सिल्वर मेडल जीता। इंटरनेशनल एथलेटिक्स चैंपियनशिप 2022 में क्लब थ्रो और डिस्कस थ्रो में 2 सिल्वर मेडल जीते। इन उपलब्धियों के लिए उन्हें भीम अवॉर्ड से नवाजा गया।
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