सचिन से ज्यादा टैलेंट, कदम चूमते थे बड़े-बड़े रिकॉर्ड, फिर कैसे तबाह हुआ विनोद कांबली का आसमान छूता करियर
Vinod Kambli Downfall: कहते हैं कि वक्त बड़ा बलवान होता है। सही समय पर अगर सही फैसले ना लिए जाएं, तो जिंदगी और करियर दोनों तबाह हो जाता है। 1990 के दशक में भारतीय क्रिकेट को एक कोहिनूर हाथ लगा था। बाएं हाथ के बल्लेबाज ने चंद पारियों में ही वर्ल्ड क्रिकेट में अपना रौला कायम कर दिया था। हर तरफ इस बल्लेबाज के नाम की चर्चा थी। सात टेस्ट मैचों में दो शतक और दो-दो डबल सेंचुरी। 22 साल की उम्र में भारत का यह क्रिकेटर वर्ल्ड क्रिकेट पर छाने को तैयार था। इस खिलाड़ी को करीब से देखने वालों का यहां तक कहना था कि सचिन तेंदुलकर से ज्यादा टैलेंट इस बल्लेबाज के पास था। नाम था विनोद कांबली।
कांबली का करियर बुलंदियों पर था और उन्हें भारतीय क्रिकेट का अगला सुपरस्टार माना जा रहा था। कांबली को साल 1992-93 के समय में भारत के हाथ लगा नायाब हीरा माना जा रहा था। मगर फिर ऐसा क्या हुआ कि दो से तीन साल में कांबली का टेस्ट करियर खत्म हो गया। साल 2000 में सचिन के बचपन के साथी के इंटरनेशनल क्रिकेट करियर पर ब्रेक लग गया। भविष्य का महान खिलाड़ी बनने की राह पर निकले कांबली कैसे चकाचौंध की दुनिया में खो गए। आइए आपको विस्तार से समझाते और बताते हैं।
घरेलू क्रिकेट में तोड़ा हर बड़ा रिकॉर्ड
इस किस्से का जिक्र ना जाने कितनी बार हो चुका है और हर बार जब स्कूल लेवल पर कोई युवा खिलाड़ी चमकता है, तो विनोद कांबली और सचिन तेंदुलकर का नाम बड़े-बड़े अक्षरों में हाइलाइट किया जाता है। हैरिस शील्ड ट्रॉफी में 15 साल के सचिन और उम्र में 16 साल का आंकड़ा छू रहे कांबली की जोड़ी ने मिलकर रिकॉर्ड बुक को तहस-नहस कर डाला था। सचिन-कांबली ने 664 रनों की नाबाद पार्टनरशिप जमाई थी। कांबली के बल्ले से 349 रन निकले थे, जबकि सचिन ने 326 रन बनाए थे। इस साझेदारी में सचिन से ज्यादा चर्चा कांबली के नाम पर हुई थी। रणजी ट्रॉफी में कांबली ने कदम रखा था, तो छक्के के साथ पारी का आगाज किया।
भारतीय क्रिकेट में आए तो कांबली ने दुनियाभर के गेंदबाजों के मन में खौफ पैदा कर डाला था। टेस्ट में सबसे तेज एक हजार रन पूरा करने का रिकॉर्ड कांबली के नाम दर्ज हो गया। सात टेस्ट मैचों में कांबली ने दो शतक और दो डबल शतक ठोक दिए थे। 7 मैचों में कांबली ने 793 रन जड़ दिए थे और उनका बैटिंग औसत सर डॉन ब्रैडमैन से भी ज्यादा था। शुरुआती सात मैचों में कांबली का बैटिंग औसत 100.4 का था। विश्व क्रिकेट में कांबली के नाम का डंका बज चुका था। मगर वक्त ने ऐसी करवट ली कि कांबली चंद सालों में अर्श से फर्श पर पहुंच गए।
कैसे बर्बाद हुआ करियर?
पहले सात टेस्ट मैचों में कांबली का करियर आसमान छू रहा था। मगर क्रिकेट के सबसे लंबे फॉर्मेट में कांबली इसके बाद महज 10 और टेस्ट मैच ही खेल सके। कहा जाता है कि कांबली ने अपने करियर को अपने हाथों से ही तबाह किया। इंटरनेशनल क्रिकेट में तेजी से आगे बढ़ रहे कांबली अपनी सफलता को खुद ही नहीं पचा सके। करियर के शुरुआती दौर में ही कांबली ने नशे का दामन थाम लिया, जो उनकी बर्बादी का सबसे बड़ा कारण बना। कांबली नशे में धुत रहने लगे और करियर का डाउनफॉल यहीं से शुरू हो गया।
खराब संगत ने भी कांबली को कहीं का नहीं छोड़ा। जिस दौर में कांबली को अपने क्रिकेट को निखारने की जरूरत थी, उस वक्त वह चकाचौंध की दुनिया में खो से गए। थोड़े टाइम में मिली अपार सफलता कांबली के सिर पर चढ़ गई और देखते ही देखते भारतीय क्रिकेट के नायाब हीरे की चमक फीकी पड़ती चली गई। नशे की लत, खराब संगत और बेफिजूल की हरकतों ने कांबली को कहीं का नहीं छोड़ा। इंटरनेशनल क्रिकेट में कांबली ने भारतीय टीम में 9 बार कमबैक किया, लेकिन नशे की आदत और बुरे अनुशासन के चलते वह इंटरनेशनल क्रिकेट की पिच पर अपने पैर नहीं जमा सके।