हरियाणा विधानसभा चुनाव में गुरुग्राम सीट पर निर्दलीय प्रत्याशी नवीन गोयल ने मुकाबला बनाया रोचक
Haryana Elections 2024 : हरियाणा विधानसभा चुनाव के लिए मतदान 5 अक्टूबर को होगा। चुनाव मैदान में सभी उम्मीदवारों ने अपनी ताकत लगा दी है। गुरुग्राम विधानसभा क्षेत्र से मैदान में निर्दलीय प्रत्याशी नवीन गोयल ने अन्य दलों की नींद उड़ा दी है।
अंतिम चरण के चुनाव प्रचार में गुरुग्राम विधानसभा सीट पर जोरों का मुकाबला देखने को मिल रहा है। यहां मुकाबला त्रिकोणीय होता दिख रहा है। भाजपा के बागी उम्मीदवार नवीन गोयल बीजेपी-कांग्रेस के लिए मुश्किल खड़ी कर सकते हैं। बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरे मुकेश शर्मा तो कांग्रेस ने पंजाबी कार्ड खेलते हुए मोहित ग्रोवर पर दांव लगाया है। अगर णित देखी जाए तो इस सीट पर 13 चुनाव में से 2 बार निर्दलीय ने जीत हासिल की है और शायद इसी के चलते निर्दलीय नवीन गोयल ने पूरी ताकत झोंक रखी है। इस सीट पर उन्होंने कांग्रेस-बीजेपी को बुरी तरह घेर रखा है।
गुरुग्राम में यह चुनाव इस बार जातिगत आधार पर बदलता दिख रहा है। बीजेपी ने ब्राह्मण चेहरे पर तो कांग्रेस ने पंजाबी चेहरे पर दांव लगाकर जातिगत समीकरण का फायदा उठाने की कोशिश की है। वहीं बीजेपी की ओर से टिकट की रेस में चल रहे नवीन गोयल का जब टिकट कट गया तो वह जनता के बीच गए और उनके कहने पर निर्दलीय चुनावी रण में उतर गए।
इस सीट से 2 बार निर्दलीय चुनाव जीतने के साथ ही सरकार का हिस्सा भी बने। 2000 में गोपीचंद गहलोत निर्दलीय चुनाव जीतकर डिप्टी स्पीकर बने तो 2009 में सुखबीर कटारिया निर्दलीय चुनाव जीतने उपरांत हुड्डा सरकार में खेल मंत्री बने। इसी समीकरण को ध्यान में रखते हुए नवीन गोयल अपने कदम मजबूती से आगे बढ़ा रहे हैं। उनके पक्ष में लामबंद हो रहे लोग व नेताओं की ताकत से कांग्रेस-बीजेपी में खलबली मची हुई है।
वैश्य समाज से आने वाले नवीन गोयल बीजेपी के मूल कैडर वोटर्स को अपनी तरफ करने का जतन कर रहे हैं। बात करें 20014, 2019 के चुनाव की तो यहां से क्रमश : बीजेपी के वैश्य प्रत्याशी उमेश अग्रवाल व सुधीर सिंगला विधायक का चुनाव जीते थे। इसी के चलते वैश्य समाज इस बार भी समाज से टिकट देने की मांग कर रहे थे। वहीं ब्राह्मण समाज अपने विधायक के लिए महापंचायत तक कर चुके थे। शायद इसी के चलते बीजेपी ने इस बार मूल कैडर वोट बैंक वैश्य समाज की अनदेखी की।
इसके पीछे पार्टी की यह भी सोच हो सकती है कि मूल कैडर वोट उनको छोड़ नहीं सकता है लेकिन गुरुग्राम की स्थति देखें तो वैश्य समाज नवीन गोयल के साथ खुलकर सामने आने लगा है। साथ ही नवीन गोयल ने पंजाबी नेताओं के माध्यम से पंजाबी वोट बैंक में मजबूत पकड़ बनाई है, तो बीजेपी के दलित नेता सुमेर सिंह तंवर के जरिए दलित वोट तो अनुराधा शर्मा के माध्यम से ब्राह्मण समाज को साध लिया है। नवीन गोयल ने अपनी लोकप्रियता के चलते गुरुग्राम सीट पर वह नंबर वन पर बताए जा रहे हैं।
गुरुग्राम सीट पर सबसे ज्यादा करीब 1 लाख पंजाबी वोटर है, वही साथ में जाट, ब्राह्मण, वैश्य के भी वोटर करीब 40 से 50 हजार के आस पास है। कांग्रेस प्रत्याशी मोहित ग्रोवर ने अपना पूरा पंजाबी वोटर की तरफ लगा रखा है। नवीन वैश्य व कुछ पंजाबी नेताओं के माध्यम से पंजाब वोट अपने पाले में करने में लगे हैं। बीजेपी के मुकेश शर्मा के लिए कई दिग्गज नेताओं ने सभा कर चुके है। बीजेपी को उम्मीद है कि आखिरकार में उसके वोटर्स उसके पाले में आ जाएंगे।
प्रत्याशियों की स्थिति
बीजेपी प्रत्याशी ब्राह्मण समाज के साथ ही पार्टी के वोट बैंक व बड़े चेहरों के दम पर चुनाव जीतने का दावा ठोंक रहे हैं। हालांकि 10 साल के बीजेपी सरकार की एंटी इनकम्बैंसी उनकी राह में रोड़ा बनती नजर आ रही है। कांग्रेस के मोहित ग्रोवर पंजाबी वोट व 2019 के चुनाव में दूसरे नंबर पर रहने के चलते जीत का दंभ भर रहे हैं। हालांकि प्रदेश में कांग्रेस का माहौल पॉजिटिव नजर आ रहा है लेकिन 2019 के चुनाव बाद व लोकसभा चुनाव में निष्क्रिय रहना उनके लिए भारी पड़ सकता है।
निर्दलीय नवीन गोयल 11 साल से बीजेपी से जुड़े हैं और सामाजिक कार्यों के साथ ही लोगों की बुनियादी सुविधाओं की लड़ाई लड़ते आए हैं। उनसे हर वर्ग के साथ ही वैश्य समाज उनके पाले में नजर आ रहा है। इस सीट से दो निर्दलीय चुनाव जीतने के चलते वह भी जीत का नारा बुलंद कर रहे हैं। हालांकि अभी गुरुग्राम की जनता मौन नजर आ रही है, सभी के साथ भीड़ तो दिख रही है लेकिन किसका वोट कहां जाएगा यह तो बाद में ही पता चलेगा। नवीन गोयल को हर वर्ग, समाज का साथ पूरी तरह मिलने से उन्होंने बीजेपी-कांग्रेस की नींद उड़ाकर रख दी है।
यहां से कांग्रेस ने 6 बार जीता गुरुग्राम का रण
1967 से 2019 तक हुए 13 चुनाव में सबसे ज्यादा 6 बार कांग्रेस ने गुरुग्राम से जीत मिली है। वहीं बीजेपी को 3 बार तो निर्दलीय 2 बार, 1-1 बार भारतीय जनसंघ व जनता पार्टी ने जीत का झंडा लहराया है। वही निर्दलीय प्रत्याशी की बात करें तो 2000 के चुनाव में गोपीचंद गहलोत और 2009 में सुखबीर कटारिया निर्दलीय चुनाव में शानदार जीत हासिल कर चुके हैं। वही अब देखना ये है की इस बार जनसमर्थन किसकी तरफ रहता है और या गुरुग्राम कि जनता साल 2000 और फिर 2009 का इतिहास दोहरा सकती है।