Swatantrata Diwas: 15 अगस्त से पहले ही आजाद हो गया था भारत का ये गांव, अंग्रेजों को 'कुत्ते' कहकर भगाया था
Swatantrata Diwas 2024: समुद्र से सटा कर्नाटक का उडुपी शहर, जिससे 176 किलोमीटर दूर एक गांव पड़ता है। इस गांव का नाम है इस्सुरु। जो हरा-भरा, शांत और सुंदर है। लेकिन 1942 के अगस्त महीने में यहां खून की नदियां बह रही थीं। जलते घर कुछ और ही कहानी बयां कर रहे थे। 8 अगस्त 1942 को बापू गांधी ने भारत छोड़ो का नारा दिया था। जिसके बाद भारत में इंग्लैंड की हुकूमत के खिलाफ जोश पैदा हो गया। अंग्रेजों के जुल्मों के आगे आम आदमी ने हार नहीं मानी। अंग्रेजों को भारत छोड़ना पड़ा। तब इस्सुरु गांव के लोगों ने भी अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ दी थी। अब ये गांव शिवमोग्गा जिले के शिकारिपुर इलाके में पड़ता है। इस गांव ने खुद को आजाद घोषित कर दिया।
गांव के लोगों ने चुनी अपनी सरकार
जिसके बाद अपनी सरकार चुनी और गांव के नेता साहूकार बसवन्ना को मुखिया चुन लिया। इस बात का पता पूरे देश को लगा और अंग्रेज बौखला गए। युवाओं ने गांधी टोपी पहनकर वीरभद्रेश्वर मंदिर में तिरंगा फहरा दिया। और चेतावनी दी कि अंग्रेज उनके गांव में न आए। गांव के बाहर पोस्टर लगा दिए गए। 16 साल के जयन्ना को तहसीलदार और मल्लप्पा को सब इंस्पेक्टर चुना गया। साहूकार ने यह फैसला इसलिए लिया कि दोनों नाबालिग थे। सरकार उनको जेल में बंद नहीं कर सकती थी। गांव में अपने नियम लागू किए गए।
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इसके बाद अंग्रेज गांव में कर वसूलने के लिए आए तो ग्रामीणों ने उन्हें कुत्ते कहकर भगा दिया। उनको पीटा और कागजात छीन लिए। जिसके बाद अंग्रेजी पुलिस गांव में पहुंची। लोगों को यह बात पता लग गई। वे एकत्र हो गए। भीड़ को देख तत्कालीन अधिकारी केन्चगौड़ा ने फायरिंग हवा में की। लेकिन लोग डरे नहीं और अंग्रेजों पर हमला कर दिया। मौके पर ही दो अंग्रेज अफसरों को मार डाला। चार दिन बाद इंग्लैंड की सेना ने घेरा बनाकर गांव पर हमला किया। पूरा गांव जला दिया। लोग पास के जंगलों में छिप गए।
Issuru's Fight For Freedom: When Issuru Village in Shivamogga, Karnataka Dared to Take on the British
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— ಭಾರತೀಯ ಪ್ರಜೆ (@Bharatiya_Praje) August 12, 2024
5 लोगों को हुई थी फांसी
गुराप्पा, सूर्यनारायणचार, मल्लप्पा, शंकरप्पा और हलाप्पा नामक लोगों को फांसी की सजा सुनाई। इन लोगों ने ही विद्रोह का नेतृत्व किया था। बाद में मैसूर के महाराजा जयचामराज वोडेयार ने अंग्रेजों से बातचीत की। उन्होंने कहा कि वे इस्सुरु को उनको नहीं सौंप सकते। वे 5 लोगों को तो नहीं बचा सके, लेकिन कई ग्रामीणों को बरी करवा दिया। लेकिन महात्मा गांधी का आंदोलन अहिंसा से प्रेरित था। जिसके कारण इस्सुरु की स्वतंत्रता की घोषणा हिंसा के कारण गुमनामी में खो गई।
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