पहले पूजा, फिर 56 भोग; दीपावली बाद यहां क्यों खेली जाती गोबर की होली?
Govardhan Puja : देश के कई इलाकों में दीपावली के दूसरे दिन जगह-जगह गोवर्धन पूजा होती है लेकिन मध्य प्रदेश के शाजापुर में गवली समाज द्वारा की जाने वाली गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व है। कहा जाता है कि गवली समाज के लोग पशु पालक होने के साथ-साथ गौमाता में गहरी आस्था रखता है। पडवा के दिन गाय के गोबर से महिलाओं द्वारा गोवर्धन की आकृति बनाई जाती है। इसके बाद 56 भोग लगाकर गोवर्धन की पूजा की जाती है।
पूजा के बाद समाज के छोटे बच्चों को गाय के गोबर से बने गोवर्धन पर लेटाया जाता है ताकि वे वर्ष भर निरोगी रहे। यह परंपरा गवली समाज द्वारा कई पीढ़ियों से निभाई जा रही है। साल 2024 की दीपावली के बाद भी शाजापुर में गवली समाज ने हजारों वर्ष पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति बनाकर खीर-पूरी एवं 56 भोग चढ़ाकर गोवर्धन पूजा की। इसके बाद गोवर्धन में दूध मुंहे बच्चों को लेट कर सुख-समृद्धि की कामना की।
समाज के वरिष्ठ लोग होते हैं शामिल
गोवर्धन पूजा के लिए नई सड़क पर स्थित गवली मोहल्ले में गवली समाज की महिलाओं द्वारा गाय के गोबर से गोवर्धन महाराज की आकृति का निर्माण किया गया था। इस पूजा में समाज के सभी वरिष्ठ लोग सम्मिलित हुए। इस तरह की पूजा की पौराणिक मान्यता भी है।
मान्यताओं के अनुसार, ग्वाल वंश को भगवान इंद्रदेव के प्रकोप से बचने के लिए श्री कृष्ण भगवान ने गोवर्धन को अपनी उंगली से उठाया था। इसके बाद से ही गोवर्धन महाराज की पूजा ग्वाल वंशियों द्वारा की जाती है। ऐसी मान्यता है कि गोवर्धन महाराज की पूजा-अर्चना करने से ग्वाल वंशियों के धन-भंडार भरे रहते हैं और उन पर कोई विपदा नहीं आती है।
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इस परंपरा का निर्माण आज भी गवली समाज समेत तमाम लोगों द्वारा पूरे विधि-विधान और सामान से निभाया जा रहा है। गवली समाज के लोग गोवर्धन पूजा के बाद दूध मुंह बच्चों को गोवर से बनी प्रतिमा पर लेटाकर आशीर्वाद मांगते हैं।