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इस मंदिर से अंबानी परिवार का खास लगाव, यही हुई थी अनंत-राधिका की सगाई

Shrinathji Temple and Ambani Family : ये हम सभी जानते हैं कि अंबानी परिवार आस्था में खूब विश्वास रखता है लेकिन बहुत कम लोगों को पता है कि राजस्थान के मंदिर के प्रति अंबानी परिवार कि गहरी आस्था है। जानिए कहां है ये मंदिर!
06:58 PM Apr 15, 2024 IST | Avinash Tiwari
इस मंदिर से अंबानी परिवार का खास लगाव  यही हुई थी अनंत राधिका की सगाई

Shrinathji Temple and Ambani Family : अंबानी परिवार ना सिर्फ भारत बल्कि दुनिया में प्रसिद्द है। ये तो लगभग सभी जानते हैं कि अंबानी परिवार व्यापार के साथ ही साथ भगवान में भी गहरी आस्था रखता है। अंबानी परिवार को कई मंदिरों में दर्शन करते देखा जा चुका है। हालांकि राजस्थान के मंदिर से भी अंबानी परिवार का खास रिश्ता है।

मुकेश अंबानी, नीता अंबानी और उनके परिवार के लोग को मुंबई के सिद्धि विनायक मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते ही हैं। इसके साथ ही ये द्वारकाधीश मंदिर भी समय समय पर पहुंचता रहता है। हालांकि ये परिवार राजस्थान के एक मंदिर भी जाता है, जिसकी जानकारी बहुत कम लोगों को है।

राजसमंद जिले का श्रीनाथजी मंदिर 

ये मंदिर राजस्थान के राजसमंद जिले के नाथद्वारा शहर में है। इस मंदिर का नाम श्रीनाथजी मंदिर है, जो अंबानी परिवार के जीवन में खास महत्व रखता है। अंबानी अक्सर जन्मदिन, सालगिरह या नई शुरुआत से पहले श्रीनाथजी मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं।

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श्रीनाथजी मंदिर अंबानी परिवार के लिए कितना महत्व रखता है, इसका अंदाजा इस बात से लगाइए कि मुकेश अंबानी और नीता अंबानी के सबसे छोटे बेटे अनंत अंबानी की सगाई इसी मंदिर में हुई थी। अनंत अंबानी की सगाई राधिका मर्चेंट से साल 2022 हुई थी।

साल 2022 में श्रीनाथजी मंदिर का दौरा करने के बाद मुकेश अंबानी ने 5जी सेवाएं शुरू करने का वादा किया था और फिर 5जी की शुरुआत हुई थी। इतना ही नहीं, साल 2015 में जब 4जी की सेवाएं शुरू हुई थीं, तब भी मुकेश अंबानी इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचे थे।

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क्या है इस मंदिर का इतिहास ?

बताया जाता है कि श्रीनाथजी की मूर्ति को 1665 में वृन्दावन के पास गोवर्धन से राजस्थान लाई गई थी। इस मूर्ती को मेवाड़ तक लाने में 32 महीने लग गए थे। इस मंदिर के पीछे दिलचस्प कहानी ये है कि जब भगवान की मूर्ति को ले जाया जा रहा था इस सिहार नाम के स्थान पर रथ का पहिया फंस गया। काफी कोशिश के बाद भी जब नहीं निकला तो इसे दैवीय संकेत मानकर वहीं पर मंदिर बनाने का फैसला लिया गया था।

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