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कहीं दलितों के मसीहा न बन जाएं अखिलेश, क्यों मायावती ने आकाश को दी थी खुली छूट?

Akhilesh Yadav Vs Mayawati : लोकसभा चुनाव 2024 में इस बार बहुजन समाज पार्टी का यूपी में खाता नहीं खुला, जबकि समाजवादी पार्टी की साइकिल खूब दौड़ी। ऐसे में अब सवाल उठता है कि क्या अखिलेश यादव दलितों के मसीहा बनकर सामने आ रहे हैं। इसकी वजह से मायावती ने अपने भतीजे आकाश को खुली छूट दी थी।
08:39 PM Jun 26, 2024 IST | Deepak Pandey
Akhilesh Yadav And Mayawati (File Photo)
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UP Politics : देश में आबादी और सबसे बड़े राजनीतिक क्षेत्र वाले उत्तर प्रदेश ने इस बार के लोकसभा चुनाव में बता दिया है कि यूपी अब सिर्फ बातें नहीं काम मांगता है। ये वही प्रदेश है जहां पीएम मोदी का चुनाव क्षेत्र बनारस है, जहां धर्म की धुरी अयोध्या पर घूमती राजनीति है, जहां कर्म प्रधान विश्व को जोड़ने का संदेश देती मथुरा नगरी है। एक ऐसा प्रदेश जहां सरकार चलाने वाले धुरंधर बुलडोजर बाबा योगी आदित्यनाथ स्वयं मुख्यमंत्री हैं। इतना सब कुछ पॉज़िटिव होने के बावजूद इस बार भाजपा की ऐतिहासिक हार हुई है या यूं कहें कि लोकसभा चुनाव 2024 में पूरी की पूरी नरेंद्र मोदी सरकार भी बैकफुट पर है।

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अखिलेश ने खुद को दलित नेता के रूप में स्थापित किया

2014 से 2024 तक पूरे कार्यकाल में अपने मन की बात सुनाने वाले पीएम मोदी भी सबको बुलाकर इंटरव्यू देने को मजबूर हो गए। पूरे लोकसभा चुनाव के हर चरण में जब जब यूपी में वोटिंग हुई उसने भाजपा की धड़कनें बढ़ाए रखीं। इसका पूरा श्रेय अखिलेश यादव के पीडीए और बसपा से टूटते दलितों के अरमानों को जाता है। जिसमें अखिलेश यादव ने खुद को बतौर मुखर दलित नेता के तौर पर स्थापित कर लिया है या यूं कहें कि अब दलित वोटर उन्हें अपने मसीहा के तौर पर भी देख रहा है। जबकि बसपा सुप्रीमो मायावती को भी यही डर दूसरे चरण के चुनाव से सता रहा था कि कहीं अखिलेश यादव को ही दलित अपना मसीहा न मान लें।

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दलितों ने सपा सुप्रीमो पर जताया भरोसा

हाल में सम्पन्न हुए लोकसभा चुनावों में भाजपा से नाराज सवर्ण और मायावती से नाराज दलितों ने अखिलेश यादव के ऊपर भरोसा दिखाया। इसमें सबसे खास बात है कि चुनाव के दूसरे चरण से ही अखिलेश यादव संविधान बचाओ का नारा देने लगे थे। उसी दौरान राहुल गांधी ने हर एक रैली में कहा कि भाजपा आरक्षण खत्म करना चाहती है, इसीलिए 400 पार का नारा दे रही है।

बसपा को नहीं मिला दलितों का वोट

वहीं, तीसरे और चौथे चरण से ठीक पहले मध्य यूपी के साथ बुंदेलखंड में अखिलेश यादव ने सीधे तौर पर मायावती का नाम लेकर उन्हें भाजपा का प्लान बी बताया। साथ ही कहा कि उन्हें वोट देने का मतलब सीधे भाजपा को फायदा और आरक्षण समाप्त। अब तक बसपा का साथ देने वाले दलित जिसका 19 प्रतिशत वोट फिक्स था जिसके दम पर मायावती अपनी पार्टी का हर एक टिकट करोड़ों रुपये में बेचती थीं वो सरकने लगा।

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मायावती के भतीजे ने भाजपा को बनाया निशाना

चौथे चरण के चुनाव में ही मायावती ने अपने भतीजे आकाश को खुली छूट देकर मैदान में उतार दिया, लेकिन आकाश ने अखिलेश यादव को काउंटर करने के बजाए भाजपा सरकार की तुलना तालिबानी सरकार से कर दी और योगी आदित्यनाथ को टेररिस्ट सरकार का मुख्यमंत्री बताना शुरू किया। इससे मायावती की नाराजगी के साथ ही हिन्दुत्व विचारों वाले दलित भी बसपा से दूर हो गए। जबकि मुस्लिम सीटों पर काउंटर के लिए उतारे गए बसपा प्रत्याशियों को उनकी मुस्लिम बिरादरी ने भी इसी वजह से वोट नहीं दिया, क्योंकि मायावती भाजपा के बजाए सपा और कांग्रेस से मुस्लिम वोटरों को दूर रखने पर जोर दे रही थीं।

आकाश की हरकत से नाराज है दलित

आकाश की इस बचकानी हरकत से जहां हिंदुवादी दलित नाराज होकर बसपा से कटने लगा तो वहीं आरक्षण को लेकर कट्टर दलित वर्ग पूरी तरह से समाजवादी पार्टी की ओर एक तरफा चला गया। यूं कहें कि जो दलित वोट मायावती की पार्टी बसपा को एक मुश्त मिलते थे अब वो वोट सीधे समाजवादी पार्टी को मिलने लगे। उसी दौरान मायावती ने नाराज होकर भतीजे आकाश को उत्तराधिकारी पद से मुक्त करते हुए चुनाव में भाग न लेने का फरमान जारी कर दिया, इससे कुछ प्रतिशत दलित जो आकाश को सीधे अपना नेता मानने लगे थे वो भी बसपा से कट गए।

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सपा को 37 सीटों पर मिली जीत 

एक ओर जहां 2019 के लोकसभा में सपा और बसपा के साथ मिलकर लड़ने पर मायावती की सीटें बढ़ गईं तो वहीं सपा के वोट प्रतिशत में कमी देखी गई थी। जबकि इस बार सपा ने कांग्रेस के साथ मिलकर चुनाव लड़ा तो बसपा शून्य पर आउट हो गई जबकि सपा को ऐतिहासिक 37 सीटें मिलीं। वहीं, शून्य चल रही कांग्रेस को भी 6 सीटें मिलीं।

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