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यूपी चुनाव से पहले मायावती ने बदली स्ट्रेटेजी, BJP-सपा को ऐसे टक्कर देगी BSP

Mayawati Agenda : उत्तर प्रदेश की राजनीति में कभी मायावती का बोलबाला था, लेकिन पिछले कुछ चुनावों से उन्हें बड़ा नुकसान पहुंचा। बीएसपी का मुख्य वोट बैंट दलित भी खिसकने लगा है। ऐसे में मायावती एक बार फिर बहुजन हिताय और बहुजन सुखाए के एजेंडे पर चलेंगी।
07:29 PM Sep 06, 2024 IST | Deepak Pandey
पुराने एजेंडे पर चल रहीं मायावती। (File Photo)
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(अशोक तिवारी, लखनऊ)

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UP Politics : लोकसभा चुनाव 2024 में बसपा सप्रीमो मायावती ने यूपी की सभी 80 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे, लेकिन पार्टी का खाता तक नहीं खुला। खाता तो खुलना दूर की बात थी, बीएसपी के उम्मीदवार किसी भी सीट पर दूसरे नंबर पर भी नजर नहीं आए। ऐसे में मायावती पर सवाल उठने लगे थे। 2027 में यूपी में विधानसभा चुनाव होंगे, इसे लेकर पूर्व मुख्यमंत्री ने अपनी स्ट्रेटेजी बदल दी। वह चुनाव में भाजपा और सपा को टक्कर देने के लिए दलितों को एकजुट कर रही हैं।

लिहाजा, एक बार फिर मायावती अपने पुराने अंदाज में अपने बेस वोट बैंक को सहेजना चाहती हैं। पार्टी के रणनीतिकारों का कहना है कि अब मायावती के एजेंडे पर सिर्फ उनका कोर वोट बैंक है यानी दलित। पहले सर्वजन हिताय और सर्वजन सुखाए की बात करने वाली मायावती अब सिर्फ बहुजन हिताय और बहुजन सुखाए के एजेंडे पर चलती दिख रही हैं।

BSP की आंतरिक बैठक में तय हुए एजेंडे

पार्टी सूत्रों का दावा है कि मायावती ने अपनी आंतरिक बैठक में सलाहकारों से मंथन के बाद तय किया है कि अब दलितों को फिर से बसपा के साथ लाना होगा और उसके लिए अलग-अलग कार्यक्रम भी तय किए गए हैं। पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक, अब देश में कही भी दलित उत्पीड़न की घटना होने पर बसपा नेता या उनका कोई प्रतिनिधिमंडल वहां जाएंगे और हर संभव मदद भी करेंगे। हाल फिलहाल मायावती दलित उत्पीड़न की घटनाओं पर तेजी के साथ प्रतिक्रिया भी दे रही हैं।

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खोया जनाधार हासिल करना चाहती हैं मायावती

रणनीतिकारों का मानना है कि इसके सहारे मायावती खोया जनाधार हासिल करना चाहती हैं और उम्मीद जताई जा रही है कि 2027 विधानसभा चुनाव में इसका फायदा बसपा को मिलेगा। दरअसल, बसपा का मूल राजनीतिक आधार उसका दलित वोट बैंक ही रहा है। जानकर ये भी मानते हैं कि एक जमाने में काशीराम ने दलितों के सहारे ही बसपा को पहचान दी और इन्हीं दलितों को एकजुट करके उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में बसपा ने पूर्ण बहुमत की सरकार भी बनाई थी। यही नहीं सियासी तौर पर खराब परिस्थितियों में भी मायावती 18 प्रतिशत से 20 प्रतिशत वोट बैंक बचाए रखती थीं, लेकिन अब जनाधार खिसक रहा है। इस लोकसभा चुनाव में बसपा को केवल 9.39 फीसदी ही वोट मिला। लिहाजा तय किया गया है कि अब जल्द ही गांव-गांव ये संदेश दिया जाएगा कि बहन जी यानी मायावती को मजबूत करें।

क्या कहते हैं राजनीतिक दल?

मायावती को लेकर बीजेपी के प्रदेश प्रवक्त आनंद दुबे कहते हैं कि एसी कमरों की राजनीति करने वाले लोग बाहर निकले अच्छी बात है, लेकिन आज दलितों और पिछड़ों के लिए असल में काम सिर्फ बीजेपी और उसकी डबल इंजन की सरकार ने किया है। वहीं, सपा के प्रवक्त फखरुल हसन चांद का कहना है कि जब दलितों और पिछड़ों पर अत्याचार हुए तब उसके खिलाफ मायावती ने आवाज क्यों नहीं उठाई? अब समाजवादी पार्टी अपने पीडीए में सबको साथ लेकर चल रही है। सपा दलितों और पिछड़ों की आवाज उठाती रहेगी। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता सचिन रावत ने कहा कि जब दलितों के अधिकार छीने गए और अत्याचार हुए तो मायावती क्यों चुप थीं। मायावती बीजेपी के इशारे पर काम करती हैं।

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