वो शख्स जिसकी गैंग का सफाया कर पूर्वांचल का डॉन बना मुख्तार अंसारी; मौत में बताया जा रहा हाथ
Mukhtar Ansari vs Brijesh Singh : पूर्वांचल के माफिया, बाहुबली और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की गुरुवार रात मौत हो गई। बताया जा रहा है कि बांदा की जेल में बंद मुख्तार अंसारी को दिल का दौरा पड़ा था। हालांकि, अंसारी के परिवार ने दावा किया है कि उन्हें खाने में जहर दिया जा रहा था। खुद मुख्तार अंसारी ने भी जीवित रहते हुए इस बात की आशंका जताई थी। उनका कहना है कि बृजेश सिंह को बचाने के लिए ऐसी कोशिशें की जा रही थीं जो आखिरकार सफल हो गईं। बता दें कि बृजेश सिंह ही वह माफिया है जिसकी गैंग का सफाया कर मुख्तार ने पूर्वांचल में अपना वर्चस्व कायम किया था।
3 सदस्य टीम करेगी मुख्तार अंसारी की मौत की मजिस्ट्रेटी जांच, पोस्टमार्टम की होगी वीडियोग्राफी#MukhtarAnsari #UttarPradesh #BreakingNews pic.twitter.com/ZyZ7aq5Gkd
— News24 (@news24tvchannel) March 29, 2024
बृजेश सिंह और मुख्तार अंसारी एक दूसरे के कट्टर दुश्मन थे। दोनों के बीच हुई गैंगवार में कितने ही लोगों की जान गई। बृजेश सिंह जब पहली बार जेल गया था तब गाजीपुर के एक पुराने हिस्ट्रीशीटर त्रिभुवन सिंह से उसकी दोस्ती हुई। त्रिभुवन साहिब सिंह के गैंग का हिस्सा था, जिसके पिता की जमीनी विवाद में हत्या कर दी गई थी और इसका आरोप मकनू सिंह की गैंग पर लगा था। मुख्तार अंसारी ने इसी गैंग के साथ अपने क्राइम करियर की शुरुआत की थी। त्रिभुवन और बृजेश के गुरु साहिब सिंह की पेशी के दौरान हत्या कर दी गई थी जिसका आरोप मकनू गैंग के साधु सिंह और मुख्तार अंसारी पर लगा।
मुख्तार और बृजेश ऐसे बने गैंगस्टर
इसी के बाद बृजेश सिंह का गैंगस्टर बनने का सफर शुरू हुआ। मकनू सिंह की हत्या हो गई तो गैंग की बागडोर साधु सिंह को मिली और दोनों के बीच गैंगवार का दौर चलता रहा। त्रिभुवन सिंह का भाई राजेंद्र सिंह हेड कॉन्सटेबल था जिनकी हत्या का आरोप साधु और मुख्तार पर लगा था। बृजेश की पकड़ पूर्वांचल में लगातार मजबूत हो रही थी। 1990 में उसने एकदम फिल्मी स्टायल में पुलिस यूनिफॉर्म पहल गाजीपुर के जिला अस्पताल में पहुंचा था जिसके पास में ही कोतवाली थी। यहां उसने न केवल साधु सिंह की हत्या कर दी बल्कि आराम से फरार भी हो गया। साधु सिंह की मौत के बाद गैंग की कमान मुख्तार अंसारी के हाथ में आ गई थी
3 - By the early 1990s, Mukhtar Ansari gained notoriety for alleged criminal activities in Mau, Ghazipur, Varanasi, and Jaunpur. Entering politics in 1995 via the Banaras Hindu University student union, he became an MLA in 1996, challenging Brijesh Singh's dominance. pic.twitter.com/Z7t0lv9e0p
— The Shelby Sena (@Shelbyboyzz) March 29, 2024
अब बृजेश और मुख्तार आमने-सामने थे। कोयला रेलवे ठेके को लेकर दोनों के बीच प्रभुत्व की लड़ाई शुरू हो गई। बताया जाता है कि लोहे के स्क्रैप से शुरुआत करने के बाद बृजेश कोयला, शराब, जमीन और रेत के धंधे तक अपनी पड़ बनाता चला गया। उसने गाजीपुर और बनारस से शुरू हुए अपने अपराध के कारोबार को यूपी के अन्य जिलों के साथ-साथ झारखंड, छत्तीसगढ़ और ओडिशा तक ले जाने का काम किया। साल 1998 में मुख्तार अंसारी राजनीति में एंट्री कर चुका था और मऊ विधानसभा सीट से चुनाव जीतकर विधायक बन गया। हालांकि, इस बीच दोनों के बीच झड़पें चलती रहीं।
बृजेश ने ही कराया उसरी चट्टी कांड
समय के साथ बृजेश ने भी राजनीति में अपनी पकड़ बनाई और उसके सिर पर कुछ बड़े नेताओं का हाथ आ गया। लेकिन मुख्तार अंसारी का दबदबा भी लगातार बढ़ रहा था। साल 2001 में यूपी में सरकार भाजपा की थी लेकिन मुख्तार के इलाके में उसी का हुक्म चलता था। ऐसे में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए बृजेश ने साल 2001 में गाजीपुर के मोहम्मदाबाद में मुख्तार की हत्या करने के लिए उसरी चट्टी कांड को अंजाम दे डाला था। कहा जाता है इसमें बृजेश ने मुख्तार को मारने की फुल प्रूफ प्लानिंग की थी। उसरी चट्टी गाजीपुर में एक जगह है जहां से अंसारी अपने लोगों को साथ जा रहा था।
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इसी दौरान एक ट्रन और एक कार ने मुख्तार को आगे और पीछे से घेरने की कोशिश की। लेकिन मुख्तार अंसारी की किस्मत अच्छी थी कि तभी रेलवे फाटक बंद हो गया और हमला करने वालों की एक गाड़ी पीछे ही रह गई। अब मुख्तार की गाड़ी के आगे एक ट्रक था जिसमें से दो लड़के बंदूक लेकर निकले और गोलियां बरसाने लगे। इसमें मुख्तार अंसारी के कई लोग मारे गए लेकिन वह खुद बच गया। बताते हैं कि इस घटना में बृजेश को भी गोली लगी थी लेकिन वह बच गया था। इसके बाद कई साल तक वह अंडरग्राउंड रहा और इसी तरह बिना किसी के सामने आए अपना काला कारोबार चलाता रहा।
विधायक समेत बचाने वालों की हत्या
साल 2002 के विधानसभा चुनाव में मोहम्मदाबाद विधानसभा से भाजपा के कृष्णानंद राय विधायक बने। 1985 के बाद से यह सीट मुख्तार के बड़े भाई अफजाल अंसारी के पास थी। कहते हैं कि बृजेश, कृष्णानंद राय का करीबी था और अब उसे सीधे तौर पर राजनीतिक मदद मिलने लगी थी। लेकिन 19 नवंबर 2005 को मुख्तार अंसारी ने कृष्णानंद राय समेत छह लोगों की हत्या कर बृजेश के लिए फिर संकट खड़ा कर दिया। इसके बाद से मुख्तार का प्रभाव बढ़ता ही गया। कृष्णानंद राय की हत्या बृजेश के लिए एक मैसेज की तरह थी कि अगर मुख्तार अंसारी के लोगों के सामने वह आया तो जान जानी तय है।
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पुलिस ने बृजेश के सिर पर 5 लाख रुपये का इनाम का ऐलान कर रखा था। साल 2008 में उसे ओडिशा से गिरफ्तार किया गया था। लेकिन माना जाता है कि ऐसा जानबूझकर उसने जानबूझकर किया था और उसकी मदद करने वाला भाजपा का एक बड़ा नेता था। तब तक बृजेश का बड़ा भाई उदयनाथ सिंह उर्फ चुलबुल सिंह भी राजनीति में अपने कदम जमा चुका था और बृजेश भी समझ गया था कि जेल उसके लिए सबसे सेफ जगह है। तब चुलबुल सिंह वाराणसी से एमएलसी था। जेल पहुंचने के बाद बृजेश ने भी राजनीति में जाने की योजना बनाई और 2012 में जेल के अंदर से ही चंदौली की सैयदराजा सीट से चुनाव लड़ा।
UP Police compiles a list of 61 mafias under surveillance as Yogi Govt tightens the noose on criminals.
Mukhtar Ansari, Brijesh Singh, Tribhuvan Singh, Khan Mubarak, Salim, Sohrab, Rustum, Bablu Srivastava, Vlumesh Rai, Kuntu Singh, Subhash Thakur...https://t.co/QmK1c6ISjG
— Selvam 🚩 ( Modi's family மோடியின் குடும்பம் ) (@tisaiyan) April 19, 2023
मुख्तार की मौत में हाथ की आशंका
हालांकि, इस विधानसभा चुनाव में उसे हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन 2016 के चुनाव में उसकी पत्नी बसपा के टिकट पर एमएलसी बनी थी। बाद में बृजेश सिंह को भाजपा का समर्थन मिला और वह खुद भी वाराणसी से निर्दलीय एमएलसी बना था। अब मुख्तार अंसारी की मौत होने के बाद कहा जा रहा है कि यह बृजेश सिंह के इशारों पर हुआ है। मुख्तार के भाई अफजाल और बेटे उमर ने आरोप लगाया है कि जेल में उसे जहर दिया जा रहा था ताकि उसरी चट्टी कांड में मुख्तार अंसारी बृजेश सिंह के खिलाफ गवाही नम दे सके । ऐसा इसलिए क्योंकि उसरी चट्टी कांड में मुख्तार अंसारी ही चश्मदीद गवाह था।