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क्या 17 पिछड़ी जातियों की लामबंदी से फतेह होगा 2027 का सियासी रण?

संजय निषाद ने कहा है कि इस यात्रा की शुरुआत सहारनपुर से की गई है। यात्रा 18 मंडलों से तीन चरणों में गुजरेगी।
09:49 PM Dec 05, 2024 IST | Amit Kasana
क्या 17 पिछड़ी जातियों की लामबंदी से फतेह होगा 2027 का सियासी रण
संजय निषाद

अशोक कुमार तिवारी, लखनऊ

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उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के परिणाम को ज्यादा दिन नहीं हुए हैं। एक तरफ जहां बीजेपी ने बिना किसी सहयोगी दल को एक भी सीट दिए हुए उनके सहयोग से कुल 9 विधानसभा सीटो में 7 सीट पर शानदार जीत दर्ज की है तो वही अब दूसरी तरफ बीजेपी के सहयोगी अखिलेश के पीडीए की काट के लिए ग्राउंड जीरो पर उतर गए है।

इन दिनों बीजेपी के सहयोगी और निषाद पार्टी अध्यक्ष संजय निषाद संवैधानिक अधिकार रथ यात्रा निकाल रहे हैं और जिस भी जनपद से उनकी यात्रा गुजर रही है वहां पिछड़ी शोषित जातियों के उत्थान का मुद्दा उठाया जा रहा है। खास तौर पर उन 17 पिछड़ी जातियों के विकास का मुद्दा जिनके दम पर कभी मुलायम सिंह यादव ने यूपी की सियासत में सत्ता हासिल की थी। अब संजय निषाद भी उन्ही निषाद केवट मल्लाह बिंद कश्यप जैसी जातियों के साथ पिछली सरकारों में भेदभाव का मुद्दा प्रमुखता से उठाया जा रहा है और उन्हे एनडीए के पक्ष में लामबंद करने की कोशिश में जुटे हैं। जिसका सियासी लाभ भी एनडीए को मिल सके और अखिलेश यादव के पीडीए में भी सेंधमारी हो जाए।

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क्या है यात्रा का रूटमैप

संजय निषाद ने कहा है की इस यात्रा की शुरुआत सहारनपुर से की गई है। यात्रा 18 मंडलों से तीन चरणों में गुजरेगी। प्रदेश की ऐसी 200 विधानसभा जहां मछुआ बाहुल्य है जहां करीब 25000 से एक लाख तक इनकी आबादी है। वहां से गुजरेगी और दिल्ली के इंदिरा गांधी स्टेडियम में समाप्त होगी।

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कौन ही है 17 अति पिछड़ी जातियां

दरअसल, जिन 17 अति पिछड़ी जातियों का मुद्दा संजय निषाद उठा रहे हैं उनमें कहार,केवट, कश्यप, बिंद, निषाद, प्रजापति ,भर, राजभर, बाथम, गौर, तूरा, माझी, मल्लाह, कुम्हार, मछुआ, धीमर जैसी जातियां है। साल 2013 में सपा सरकार में यूपी विधानसभा से प्रस्ताव पारित करके इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र को भेजा गया था। 2004 में तत्कालीन सीएम मुलायम सिंह यादव ने भी ऐसा ही प्रस्ताव केंद्र को भेजा था। यही नहीं 2005 में मुलायम सिंह ने इन जातियों को अनुसूचित जाति का लाभ देने का सरकारी आदेश भी जारी किया था।लेकिन बाद में उच्च न्यायालय ने उसे खारिज कर दिया था।

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