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शिवपाल यादव को नहीं मिली कमान! अखिलेश ने माता प्रसाद पांडेय पर क्यों लगाया दांव, ये हैं 3 कारण

Mata Prasad Pandey News: माता प्रसाद पांडेय के जरिए अखिलेश यादव पीडीए के समीकरण को और मजबूत करना चाहते हैं। साथ ही पूर्वांचल में ब्राह्मण वोट बैंक को अपने पक्ष कर 2027 में जीत की पटकथा तैयार करना चाहते हैं।
02:08 PM Jul 29, 2024 IST | News24 हिंदी
शिवपाल यादव और अखिलेश यादव के साथ माता प्रसाद पांडेय
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Mata Prasad Pandey News: यूपी विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद पर माता प्रसाद पांडेय की नियुक्ति के बाद यूपी की सियासत गर्म है। हर कोई यह जानना चाहता है कि आखिर पीडीए की राजनीति करने वाले अखिलेश यादव ने एक ब्राह्मण चेहरे पर दांव क्यों लगाया। और सवाल ये भी उठ रहा है कि आखिर शिवपाल यादव को कमान क्यों नहीं मिली, जबकि रेस में राम अचल राजभर और इंद्रजीत सरोज भी थे।

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मुलायम के साथ की राजनीति

माता प्रसाद पांडेय सिद्धार्थनगर जिले की इटवा सीट से विधायक हैं। मुलायम सिंह यादव के सानिध्य में राजनीति करने वाले माता प्रसाद सात बार के विधायक हैं। 2012 में अखिलेश यादव जब मुख्यमंत्री बने थे, उस सरकार में मुलायम सिंह यादव ने माता प्रसाद को विधानसभा अध्यक्ष की कुर्सी सौंपी थी।

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शिवपाल के साथ नजर आते थे माता प्रसाद

माता प्रसाद 2017 में विधानसभा चुनाव हार गए लेकिन 2022 में फिर से सिद्धार्थ नगर की इटवा सीट से जीतकर विधानसभा पहुंचे। माता प्रसाद के 2022 में ही नेता प्रतिपक्ष बनने की चर्चा थी, लेकिन उस वक्त अखिलेश यादव ने स्वयं यह जिम्मेदारी संभाली। विधानसभा में विपक्ष की तरफ से सबसे आगे की कुर्सी माता प्रसाद पांडे को मिली। वे सदन में शिवपाल यादव के साथ बैठे नजर आते थे।

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पार्टी के सीनियर विधायक हैं पांडेय

माता प्रसाद पाण्डेय समाजवादी पार्टी के पुराने नेता माने जाते हैं। शिवपाल यादव को छोड़कर इंद्रजीत सरोज और राम अचल राजभर बसपा से समाजवादी पार्टी में आए थे, जबकि माता प्रसाद पाण्डेय सपा के मूल काडर के नेता हैं। माता प्रसाद पार्टी के सबसे सीनियर विधायक भी हैं। दूसरी ओर अखिलेश यादव, इंद्रजीत सरोज और राम अचल राजभर को संगठन में काम कराना चाहते हैं, जो दूसरी वजह है।

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शिवपाल यादव के साथ बढ़िया तालमेल

माता प्रसाद पांडे का शिवपाल यादव से बढ़िया तालमेल है। इसके अलावा विधानसभा की कार्यवाही का अनुभव भी है। दो बार विधानसभा स्पीकर रह चुके हैं। ऐसे में सदन के भीतर सरकार को घेरने में उनके अनुभव का लाभ समाजवादी पार्टी को मिलेगा।

मायावती के शासन में शिवपाल थे नेता प्रतिपक्ष

हालांकि शिवपाल यादव भी मायावती सरकार के दौरान नेता प्रतिपक्ष रह चुके हैं, लेकिन मौजूदा समय में जो परिस्थिति है, उसमें विधान परिषद में यादव समुदाय के लाल बिहारी यादव नेता प्रतिपक्ष हैं। इसके अलावा लोकसभा और राज्यसभा में पार्टी के नेता यादव जाति के ही हैं। इसी वजह से अखिलेश यादव ने विधानसभा में ब्राह्मण चेहरे को आगे किया है।

ब्राह्मण वोट बैंक पर है नजर

2027 विधानसभा चुनाव को देखते हुए अखिलेश यादव की नजर ब्राह्मण वोट बैंक पर है। माता प्रसाद पांडे पूर्वांचल से आते हैं, जहाँ ब्राह्मण एक निर्णायक वोट बैंक हैं। बस्ती, गोरखपुर, बांसगांव, देवरिया, डुमरियागंज में ब्राह्मण हार जीत में बड़ी भूमिका निभाते हैं।

पूर्वांचल को साधने की कोशिश

2022 के विधानसभा चुनाव में बस्ती और गोरखपुर मंडल की 39 विधानसभा सीटों में से समाजवादी पार्टी को सिर्फ एक सीट पर जीत मिली थी। हालांकि लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी ने बस्ती और संतकबीर नगर में जीत हासिल की है। लोकसभा चुनाव में पीडीए का साथ पाने के बाद अगर समाजवादी पार्टी के साथ ब्राह्मण वोट बैंक जुड़ जाता है तो ये अखिलेश यादव के लिए सोने पर सुहागा होगा।

पीडीए प्लस ब्राह्मण

साफ है कि समाजवादी पार्टी माता प्रसाद पाण्डेय के जरिये ब्राह्मणों को साधना चाहती है। अखिलेश यादव की कोशिश इन इलाकों में ग्रामीणों को पीडीए के साथ जोड़ने की है। यही वजह है कि 81 साल के माता प्रसाद को नेता प्रतिपक्ष की जिम्मेदारी दी गई है।

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