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दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान, जहां मिलती हैं पांच नदियां

क्या आप जानते हैं कि दुनिया में ऐसा भी एक स्थान है जहां एक साथ पांच नदियां मिलती हैं? जी हां, आपने बिल्कुल सही सुना! यह जगह बेहद खास है क्योंकि यहां प्रकृति ने एक अद्भुत नजारा बनाया है। आज हम आपको एक ऐसे ही स्थान के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पांच अलग-अलग नदियां एक साथ मिलती हैं। यह जगह न सिर्फ प्राकृतिक रूप से खूबसूरत है, बल्कि धार्मिक दृष्टि से भी काफी महत्वपूर्ण है। आइए जानते हैं इस अनोखे संगम के बारे में...
05:17 PM Oct 01, 2024 IST | Ashutosh Ojha
दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान  जहां मिलती हैं पांच नदियां
river

उत्तर प्रदेश के इटावा जिले में स्थित पंचनदा, दुनिया का इकलौता ऐसा स्थान है जहां पांच नदियों का संगम होता है। चंबल, यमुना, क्वारी, सिंधु और पहुज नदियों का यह संगम एक खास धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है।

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धार्मिक-सांस्कृतिक महत्व

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पंचनदा का महत्व केवल प्राकृतिक ही नहीं बल्कि धार्मिक और सांस्कृतिक रूप से भी है। यहां कार्तिक पूर्णिमा पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान से लाखों श्रद्धालु आते हैं।

Pachnada

महाभारतकालीन इतिहास

पंचनदा का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा हुआ माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास का कुछ समय यहां बिताया था, जिससे इस स्थान का ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व और बढ़ जाता है।

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महाकालेश्वर मंदिर का महत्व
पंचनदा में स्थित महाकालेश्वर मंदिर एक प्राचीन धार्मिक स्थल है, जो लगभग 800 ईसा पूर्व का बताया जाता है। यह मंदिर साधु-संतों के लिए विशेष आस्था का केंद्र है और यहां भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र की प्राप्ति के लिए महेश्वरी की पूजा की थी।

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पर्यटन स्थल के रूप में विकासित हो

स्थानीय लोगों की लंबे समय से यह मांग रही है कि पंचनदा को एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में डेवलप किया जाए। हालांकि, अभी तक इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है।

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प्राकृतिक और भौगोलिक चुनौतियां
पंचनदा की भौगोलिक स्थिति कठिन और चुनौतीपूर्ण है, जिस कारण इसे अन्य तीर्थस्थलों जैसी प्रसिद्धि नहीं मिल पाई है। यहां का बीहड़ क्षेत्र इसे एक दुर्गम तीर्थ स्थल बनाता है।

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बाबा मुकुंदवन की तपस्थली
पंचनदा का एक और प्राचीन स्थल बाबा मुकुंदवन की तपस्थली के रूप में जाना जाता है। कहा जाता है कि संवत 1636 में गोस्वामी तुलसीदास यहां आए थे और बाबा मुकुंदवन ने उन्हें यमुना की तेज धार पर चलकर पानी पिलाया था।

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