कैसे शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन में बदल गया छात्रों का प्रदर्शन? बांग्लादेश में बगावत की पूरी Timeline
बांग्लादेश इस समय राजनीतिक संकट का सामना कर रहा है। शेख हसीना प्रधानमंत्री पद के साथ देश भी छोड़ चुकी हैं। सोमवार को प्रदर्शनकारी राजधानी ढाका में उनके आधिकारिक आवास में घुस आए और उन्होंने जमकर तोड़फोड़ की। इसके बाद शेख हसीना अपनी बहन के साथ सेना के हेलीकॉप्टर से वहां से निकल गईं। अटकलों के बीच वह भारत पहुंच गई हैं। उधर, बांग्लादेशी सेना के प्रमुख वाकर-उज-जमान ने ऐलान कर दिया है कि देश में जल्द ही अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा।
कई लोग बांग्लादेश में बने ऐसे हालातों के पीछे विदेशी ताकतों का हाथ बता रहे हैं तो कई इसे सेना की साजिश भी कह रहा है। लेकिन, बड़ा सवाल यह है कि सरकारी नौकरियों में आरक्षण को लेकर शुरू हुआ छात्रों का यह आंदोलन आखिर शेख हसीना के खिलाफ मुहिम में कैसे बदल गया? क्यों शेख हसीना को प्रधानमंत्री का पद और देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा? वो क्या कारण रहे जिनके चलते बांग्लादेश इस संकट में फंस गया? इस रिपोर्ट में जानिए बांग्लादेश में ऐसी स्थिति बनने की पूरी टाइमलाइन।
क्यों शुरू हुए विरोध प्रदर्शन
साल 1971 में बांग्लादेश की आजादी के बाद से ही सिविल सर्विस और सरकारी नौकरियों में उन लोगों के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण की व्यवस्था शुरू हो गई थी जो आजादी की लड़ाई में शामिल रहे लोगों के वंशज हैं। यह व्यवस्था साल 1972 में शेख हसीना के पिता और बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान ने पेश की थी। हालांकि, अक्टूबर 2018 में शेख हसीना इसके खिलाफ छात्रों के प्रदर्शन को देखते हुए सभी आरक्षण खत्म करने पर सहमत हो गई थीं।
लेकिन, जून 2024 में हाईकोर्ट ने आरक्षण व्यवस्था खत्म करने के इस फैसले को रद्द कर दिया। हाईकोर्ट ने यह कदम स्वतंत्रता सेनानियों के रिश्तेदारों की ओर से दाखिल की गई याचिकाओं को देखते हुए उठाया था और कोटा फिर से बहाल कर दिया था। नए फैसले के तहत 56 प्रतिशत सरकारी नौकरियों को कुछ तय वर्गों के लिए रिजर्व कर दिया गया। आरक्षण के लिए इन वर्गों में फ्रीडम फाइटर्स के संबंधियों के साथ महिलाओं और पिछड़े जिलों के लोगों को भी रखा गया था।
हाईकोर्ट के इस फैसले के बाद प्रदर्शनों की शुरुआत फिर हुई। छात्रों ने सवाल उठाए कि आजादी की लड़ाई में शामिल हुए लोगों की तीसरी पीढ़ी को फायदे क्यों दिए जा रहे हैं। छात्र सरकारी नौकरियों में पूरी तरह मेरिट पर आधारित भर्ती की व्यवस्था की मांग कर रहे थे। इसे लेकर विरोध-प्रदर्शन धीरे-धीरे तेज होता गया। इस दौरान पुलिस से टकराव के बीच हिंसा की घटनाएं भी हुईं जिनमें कई लोगों की जान भी चली गई। इससे छात्रों का प्रदर्शन और भी ज्यादा बढ़ गया।
प्रदर्शन की पूरी टाइमलाइन
1 जुलाई : छात्रों ने कोटा सिस्टम में सुधारों की मांग करते हुए 1 जुलाई 2024 को सड़कों और रेलवे लाइन को बाधित कर दिया। छात्रों के अनुसार आरक्षण की इस व्यवस्था का इस्तेमाल शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग के नेता अपने निजी फायदों के लिए करते थे। उधर, शेख हसीना ने छात्रों के इस प्रदर्शन को लेकर कहा था कि वह अपना समय बर्बाद कर रहे हैं।
16 जुलाई : विरोध प्रदर्शन के बीच हिंसा 16 जुलाई को बढ़ी जब पुलिस और प्रदर्शनकारी छात्रों के बीच टकराव हुआ। इस दौरान 3 छात्रों समेत 6 लोगों की मौत हुई थी। राजधानी ढाका में छात्रों और सरकार समर्थकों के बीच भीषण टकराव हुआ था। दोनों गुटों के बीच जमकर लाठी-डंडे चले थे और ईंट पत्थर भी बरसाए गए थे। इस दौरान कई लोग घायल भी हुए थे।
जब हिंसा के मामले बढ़ने लगे तो शेख हसीना की सरकार ने पूरे देश में कॉलेज और विश्वविद्यालयों को बंद करने का आदेश जारी कर दिया। उन्होंने कहा कि जिन लोगों की जान गई है उनके परिवार वालों को न्याय मिलेगा। हालांकि, आरक्षण व्यवस्था को खत्म करने पर उन्होंने कुछ नहीं कहा। उन्होंने न्यायिक जांच शुरू करने का आदेश भी जारी कर दिया।
18 जुलाई : छात्रों ने हसीना की शांति की पेशकश खारिज कर दी। विरोध और बढ़ा। 18 जुलाई को प्रदर्शनकारियों ने नारेबाजी करते हुए सरकारी ब्रॉडकास्टर बांग्लादेश टेलीविजन के मुख्यालय में आग लगा दी। इस दौरान उन्होंने एक पुलिस चौकी के साथ कुछ और सरकारी इमारतों में भी तोड़फोड़ की। हालात कंट्रोल करने के लिए इंटरनेट बंद कर दिया गया।
इस दौरान पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच टकराव की एक सीरीज शुरू हो गई। अलग-अलग घटनाओं में कम से कम 32 लोगों की मौत हो गई और सैकड़ों घायल हो गए। सरकार ने कई जगहों पर कर्फ्यू लागू कर दिया और पुलिस के साथ-साथ सड़कों पर सेना को भी उतार दिया। लेकिन, इससे छात्रों का गुस्सा कम होने के बजाय और बढ़ गया।
21 जुलाई : बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने 21 जुलाई को हाईकोर्ट के फैसले में संशोधन किया। अदालत ने निर्देश दिया कि 93 प्रतिशत सरकारी नौकरियां मेरिट के आधार पर दी जाएं। सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी नौकरियों में आरक्षित भर्तियों की संख्या 7 प्रतिशत करने का फैसला सुनाया था। इनमें से 5 प्रतिशत आजादी की लड़ाई में शामिल लोगों के परिजनों के लिए थीं।
ये भी पढ़ें: फिनलैंड, त्रिपुरा या फिर दिल्ली! आखिर कहां हैं शेख हसीना?
ये भी पढ़ें: शेख हसीना को सेना ने दिया था इतने मिनट का अल्टीमेटम!
ये भी पढ़ें: शेख हसीना के बांग्लादेश छोड़ने के बाद बेकाबू हो गए हालत
लेकिन, प्रदर्शनकारी इस फैसले से संतुष्ट नहीं हुए। वह फ्रीडम फाइटर्स के बच्चों के लिए नौकरियों में आरक्षण को पूरी तरह से खत्म करने की मांग कर रहे थे। फिर प्रदर्शनकारियों ने सरकार के सामने अपनी नई मांगें रखीं। इनमें शेख हसीना से सार्वजनिक रूप से माफी, इंटरनेट रिस्टोर करने और कॉलेज-यूनिवर्सिटी को फिर से खोलने की मांग की गई थी।
22 जुलाई : सुप्रीम फैसले के 1 दिन बाद शएख हसीना ने देश में हो रही हिंसा के लिए विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि जब आगजनी का आतंक शुरू हुआ तो छात्रों ने कहा कि वह इसमें नहीं थे। कर्फ्यू लगाना पड़ा ताकि लोगों की जानें और उनकी संपत्तियां बचाई जा सकें। 23 जुलाई को सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का आदेश स्वीकार कर लिया।
23 जुलाई : सरकार ने 23 जुलाई को कर्फ्यू को ढीला किया। फैक्टरियां, ऑफिस और बैंक फिर से खुल गए। अधिकतर जगहों पर इंटरनेट सेवा फिर से चालू कर दी गई। हालांकि, सोशल मीडिया पर बैन लगा रहा। 2 दिन तक बंद रहने के बाद स्टॉक एक्सचेंज भी चालू हुआ। धीरे-धीरे हालात सामान्य होते दिखाने लगे। लेकिन, ये तूफान से पहले की शांति थी।
31 जुलाई : सरकार की ओर से प्रदर्शनकारियों के खिलाफ अत्यधिक बल प्रयोग का मुद्दा उठाते हुए फिर प्रदर्शन शुरू हो गया। प्रदर्शनकारियों ने दावा किया कि पुलिस और सेना की कार्रवाई के चलते जुलाई में कम से कम 150 लोगों की मौत हो हुई। पुलिस ने आंसू गैस और स्टन ग्रेनेड चलाए। प्रदर्शनकारियों ने अपने प्रदर्शन को मार्च फॉर जस्टिस नाम दिया।
2 अगस्त : पुलिस प्रदर्शनकारियों के खिलाफ रबर बुलेट्स, आंसू गैस का जमकर इस्तेमाल कर रही थी। प्रदर्शनों के दौरान करीब 10 हजार लोगों को गिरफ्तार भी किया गया था। ये सब देखते हुए 2 अगस्त को प्रदर्शनकारियों ने हसीना के इस्तीफे की मांग उठा दी। लोगों ने ढाका की सड़कों पर मार्च किया और सरकार विरोधी बैनर लहराते हुए खूब नारेबाजी की।
4 अगस्त : हजारों प्रदर्शनकारियों और सरकार समर्थकों के बीच 4 अगस्त को फिर टकराव हुआ। प्रदर्शनकारियों ने प्रमुख हाईवे ब्लॉक कर गिए और छात्रों ने असहयोग आंदोलन शुरू कर दिया। इस दौरान 91 की जान गई जिनमें 14 अधिकारी शामिल थे। लेकिन, यहीं शेख हसीना को झटका लगा जब पूर्व सेना प्रमुख ने सरकार के खिलाफ आवाज उठा दी।
5 अगस्त : वर्तमान सेना प्रमुख नवाकर-उज-जमान भी लोगों के समर्थन में आ गए और उन्होंने कहा कि देश के सशस्त्र बल हमेशा जनता के साथ खड़े हैं। रिपोर्ट्स के अनुसार सेना ने ही शेख हसीना पर प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देने का दबाव बनाया। इसके बाद जमान ने जनता को संबोधित किया और कहा कि जल्द नई अंतरिम सरकार का गठन किया जाएगा।