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बांग्लादेश में तख्तापलट के पीछे किसका हाथ, आग में किसने डाला घी?

Bharat Ek Soch: बांग्लादेश में भड़की हिंसा ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। आखिर बांग्लादेश में इतने बड़े पैमाने पर जो हिंसा हुई, उसमें किसका हाथ रहा, तख्तापलट की साजिश किस तरह रची गई। आइए इन तमाम सवालों का जवाब जानने की कोशिश करें।
11:12 PM Aug 10, 2024 IST | Pushpendra Sharma
बांग्लादेश में तख्तापलट के पीछे किसका हाथ  आग में किसने डाला घी
भारत एक सोच।

Bharat Ek Soch: भारत के पूर्वी हिस्से यानी सरहद पार अशांति का माहौल है। लोगों के घर जलाए जा रहे हैं। कल तक जो लोग आलीशान घरों में रहते थे, कड़ी सिक्योरिटी के बीच बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमा करते थे, आज वो अपने प्राण बचाने के लिए इधर-उधर छिप रहे हैं। उनके मोबाइल फोन स्विच ऑफ हैं। हम बात बांग्लादेश की कर रहे हैं। जिसे दुनिया के नक्शे पर एक मुल्क के तौर पर खड़ा करने में भारत का बड़ा योगदान था। शायद ही किसी ने सोचा होगा कि कि बांग्लादेश में कभी बंगबंधु की प्रतिमा बुलडोजर से गिराई जाएगी। जिस शेख हसीना को कुछ महीने पहले तक बांग्लादेश को आर्थिक तरक्की के एक्सप्रेस वे पर ले जाने का क्रेडिट दिया जाता था। जिनकी नेतृत्व शैली की प्रशंसा होती थी। वहीं, शेख हसीना अचानक मुल्क में सबसे बड़ी खलनायक बन गईं। हालात इतने बिगड़ गए कि शेख हसीना को प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा देकर भागना पड़ा। अभी वो भारत में हैं। अगर बांग्लादेश के आर्मी चीफ उनके रिश्तेदार न होते– तो शायद उनके लिए मुल्क से निकलना मुश्किल हो जाता या तख्तापलट की स्क्रिप्ट तैयार करने वाले किरदारों में से एक वो भी रहे। अब बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बन चुकी है, जिसका मुखिया मोहम्मद यूनुस को बनाया गया है। आज हम आपको बताएंगे कि क्या मोहम्मद यूनुस की अगुवाई में बांग्लादेश में शांति का दौर वापस लौटेगा? क्या वहां हिंदुओं पर हमले रुकेंगे। आखिर वहां शेख हसीना के खिलाफ आंदोलन इतना तेज कैसे हुआ? बांग्लादेश की आग में परदे के पीछे से कौन-कौन डाल रहा था घी? क्या AP यानी अमेरिका और पाकिस्तान शेख हसीना सरकार से खफा थे? बांग्लादेश के नए सियासी समीकरणों में अमेरिका और पाकिस्तान को कहां-कहां फायदा दिख रहा है? शेख हसीना सरकार से चाइना खुश था या खफा? बांग्लादेश में हुए बदलावों का भारत पर कितना असर पड़ेगा। पूरब जैसे हालात भारत के पश्चिम में सरहद पार हो सकते हैं क्या? ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे- अपने खास कार्यक्रम बांग्लादेश के कितने ‘खलनायक’ में।

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क्या पहले से तैयार थी स्क्रिप्ट

बांग्लादेश का जन्म भी आंदोलन, आक्रोश और उथल-पुथल की गर्भ से हुआ। पाकिस्तान ने जब उर्दू को राजभाषा घोषित किया तो बांग्ला भाषी पूर्वी पाकिस्तान के लोग खफा हो गए। भाषाई आंदोलन तेज होता गया। शेख मुजीब-उर-रहमान ने अवामी लीग नाम से पार्टी बनाई। 1970 के चुनाव में अवामी लीग को भारी जीत मिली, लेकिन पाकिस्तानी Power Elite ने शेख मुजीब-उर-रहमान को प्रधानमंत्री बनाने की जगह जेल में डाल दिया। उसके बाद पूर्वी पाकिस्तान में मार-काट,अत्याचार और आंदोलन की ऐसी आंधी चली जिसमें करीब पांच लाख लोग मारे गए और नए मुल्क के रूप में बांग्लादेश का जन्म हुआ। आपको जानकर हैरानी होगी कि वहां का राष्ट्रीय फल कटहल है और राष्ट्रगान आमार सोनार बांग्ला है- जिसे रबिंद्रनाथ टैगोर ने लिखा है। साल 1971 में बांग्लादेश अलग मुल्क बना तो इसमें भारतीय सेना के शूरवीरों का लहू बहा था। लेकिन, पांच साल बाद ही वहां सेना ने तख्तापलट कर दिया और बंगबंधु शेख-मुजीब-उर-रहमान की हत्या कर दी गई। अगर बांग्लादेश के इतिहास को पलटे तो वहां अब तक 29 सैन्य तख्तापलट हो चुके हैं। जिसमें कुछ Military coup कामयाब तो कुछ नाकामयाब रहे। 15 साल से अधिक समय तक बांग्लादेश की हुकूमत संभालने वाली शेख हसीना के साथ किसने दगा किया? क्या 5 अगस्त, 2024 को ढाका में जो कुछ हुआ...उसकी स्क्रिप्ट पहले से तैयार थी?

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कयासों का दौर जारी

बांग्लादेश में अंतरिम सरकार बन चुकी है। एक नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश की कमान संभाल रहे हैं। मुल्क के गरीब-गुरबा के बीच उनकी छवि अच्छी है। मोहम्मद यूनुस लगातार कह रहे हैं कि अंतरिम सरकार मुल्क के लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगी। लेकिन, उनका झुकाव किधर रहेगा? इसे लेकर तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। बांग्लादेश के आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमान वैसे तो शेख हसीना के रिश्तेदार हैं। अब सवाल ये भी उठ रहा है कि क्या आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमान ने रिश्तेदार होने का फर्ज निभाते हुए शेख हसीना को मुल्क से सुरक्षित बाहर निकलने में मदद की या फिर ऐसे हालात पैदा कर दिए कि उन्हें इस्तीफा देकर मुल्क छोड़ना पड़ा? बांग्लादेश की पूर्व पीएम शेख हसीना के बेटे साजीब वाजेद ने एक इंटरव्यू में कहा कि अमेरिका बांग्लादेश में एक मजबूत नहीं बल्कि कमजोर सरकार चाहता है। जिसे वो कंट्रोल कर सके। लेकिन, तमाम कोशिशों के बाद भी अमेरिका शेख हसीना सरकार को नियंत्रित नहीं कर पाया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर अमेरिका बांग्लादेश से क्या चाहता था ? कहीं, अमेरिका की नाराजगी की वजह सेंट मार्टिन आइलैंड पर शेख हसीना सरकार की ना तो नहीं रही।

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इस तरह पस्त हुए विरोधियों के हौसले

पिछले साल जून में शेख हसीना ने कहा था कि अगर BNP यानी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी सत्ता में आई तो सेंट मार्टिन आइलैंड को पट्टे पर देगी या फिर बेच देगी, लेकिन वो अपने मुल्क की धरती किसी विदेशी के हवाले नहीं कर सकती हैं। कूटनीति के चश्मे से देखा जाए तो ढाका में वॉशिंगटन डीसी की दिलचस्पी की दो वजह नजर आती है। पहली, बांग्लादेश चीन के करीब न जाए और दूसरी, सामरिक रूप से अहम सेंट मार्टिन आइलैंड से चीन और भारत पर नजर रखी जाए। लेकिन, शेख हसीना सरकार अमेरिका के तमाम ऑफर के बाद भी सेंट मार्टिन आइलैंड पर अपने रुख से टस से मस नहीं हुईं। भीतरखाने खबरें ऐसी भी रहीं कि जनवरी में बांग्लादेश में हुए चुनावों में शेख हसीना की पार्टी के ही कुछ नेताओं को अमेरिका की ओर से हवा-पानी दी गई। मकसद था- सीटें कम आईं तो प्रधानमंत्री की कुर्सी पर शेख हसीना की जगह दूसरे चेहरे को बैठाना। लेकिन, अवामी लीग प्रचंड बहुमत से सत्ता में आई। ऐसे में शेख हसीना के विरोधियों की हौसले पस्त हो गए। उनकी राह में कीट-कांटे बिछाने का काम जारी रहा। जिस मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया है- उन्हें शेख हसीना विदेश एजेंट कहा करती थीं। ऐसे में बांग्लादेश के नए सियासी समीकरणों में शायद अमेरिका को अपनी राह आसान दिख रही होगी। माना जा रहा है कि शेख हसीना को उखाड़ फेंकने में पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने बड़ी भूमिका निभाई। बांग्लादेश में हुए बवाल के पीछे कट्टरपंथी जमात-ए-इस्लामी का हाथ बताया जा रहा है..जिसका रिमोट कंट्रोल आईएसआई के हाथों में है।

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ढाका लौट आईं शेख हसीना

बांग्लादेश की तरह ही पाकिस्तान में भी तख्तापलट का इतिहास पुराना है। पाकिस्तान के कई शहरों में जमात-ए-इस्लामी महंगाई और बेरोजगारी के मुद्दे पर सड़कों पर प्रदर्शन कर चुकी है। प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ को चुनौती दे चुके हैं। बलूचिस्तान और पीओके में भी बहुत बुरे हालात हैं। ऐसे में अलग कट्टरपंथी शहबाज शरीफ का तख्तापलट दें तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी? शेख हसीना ने अपने शासनकाल में भारत और चीन दोनों को साधने की कोशिश की। दिल्ली के साथ फ्री ट्रेड के रास्ते आगे बढ़ी तो बीजिंग के साथ बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव से जुड़ी रहीं। बदले में चाइना ने भी बांग्लादेश में अच्छा खासा निवेश किया। हाल में ढाका ने बीजिंग से 5 बिलियन डॉलर का सॉफ्ट लोन मांगा था। पिछले महीने शेख हसीना बीजिंग की यात्रा पर गईं...लेकिन, जब चाइना ने सिर्फ 100 मिलियन डॉलर देने का ऐलान किया तो ये बाद बतौर प्रधानमंत्री शेख हसीना को ठीक नहीं लगीं और वो तय दौरे के बीच से ही ढाका लौट आईं। माना जा रहा है कि तीस्ता प्रोजेक्ट पर शेख हसीना के स्टैंड से राष्ट्रपति शी जिनपिंग बहुत नाराज थे। चाइना और पाकिस्तान की आंखों में भारत के साथ बांग्लादेश का दोस्ताना भी खटक रहा था। शेख हसीना के तख्तापलट की जो भी वजह रही हो...खलनायक की भूमिका में जो भी हो। लेकिन, बिना शेख हसीना वाले बांग्लादेश में भारत के सामने कई चुनौतियां हैं। जिनसे बहुत सावधानी और संजीदगी के साथ निपटना होगा।

भारत में हो सकती है घुसपैठ

भारत और बांग्लादेश के बीच चार हजार किलोमीटर से अधिक लंबी सरहद लगती है। अगर भारतीय सरहद के उस पार यानी बांग्लादेश में अशांति बनी रहती है, कट्टरपंथियों का आतंक जारी रहता है, अल्पसंख्यकों पर हमले जारी रहते हैं। ऐसी स्थिति में सरहद पार से लोग जान बचाने के लिए घुसपैठ कर सकते हैं। ठीक उसी तरह जैसा 1971 में हुआ था। ऐसे में भारत पर अवैध शरणार्थियों का बोझ बढ़ सकता है। दूसरा, सरहद पार अलगाववादियों के कैंप दोबारा लग सकते हैं। अलगाववादियों को चीन और पाकिस्तान जैसे मुल्कों से मदद मिल सकती है। बांग्लादेश की सीमा में अलगाववादियों की ऐसी किसी भी नापाक कोशिश को शेख हसीना के दौर में कुचलने की कोशिश हुई। तीसरा, बांग्लादेश में हर आठवां शख्स हिंदू हैं। हिंदुओं के खिलाफ हिंसा और मार-काट की घटनाएं बढ़ सकती हैं। चौथा, बांग्लादेश में भारत के कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं और दोनों मुल्कों के बीच पिछले कुछ वर्षों में कारोबार बहुत बढ़ा है..जिसके पटरी से उतरने के चांस हैं। बांग्लादेश में तख्तापलट के बाद शेख हसीना का विमान दिल्ली के पास हिंडन एयरबेस पर उतरा। अभी भी शेख हसीना भारत में ही हैं। ऐसे में शेख हसीना को लेकर दिल्ली डिप्लोमेसी किस रास्ते आगे बढ़ेगी। इसपर भी बहुत कुछ निर्भर करेगा। भारत में शेख हसीना के रहते ढाका में बैठे हुक्मरानों से डील करना बहुत आसान नहीं होगा? ऐसे में आने वाले दिन दिल्ली डिप्लोमेसी के लिए चुनौतीपूर्ण रहने के आसार हैं। एक-एक कदम बहुत सावधानी से बढ़ाना होगा।

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