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जिंदा लोगों के सिर को कुल्हाड़ी से काट दिमाग निकाला, बच्चों को प्लेग से संक्रमित बिस्कुट खिलाए

Evil Experiments Part 3 : इंसानों पर हैवानियत भरे प्रयोग के लिए जापान भी जर्मन की हिटलर की नाजी सेना की तरह बदनाम रहा है। जापान की एक यूनिट में कैदियों को इसलिए शामिल किया जाता था ताकि उन पर प्रयोग किए जा सकें। इन प्रयोग में इंसानों के साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया जाता था।
10:33 AM Jul 09, 2024 IST | Rajesh Bharti
जिंदा लोगों के सिर को कुल्हाड़ी से काट दिमाग निकाला  बच्चों को प्लेग से संक्रमित बिस्कुट खिलाए
जापान में भी इंसानों के साथ प्रयोग के नाम पर क्रूरता होती थी।

Evil Experiments Part 3 : तरह-तरह के प्रयोग के लिए इंसान के साथ क्रूरता भरे बर्ताव के लिए जापान भी कम चर्चाओं में नहीं रहा है। हिटलर की नाजी सेना की तरह जापानी सेना ने भी कई क्रूर प्रयोग किए। ये प्रयोग ऐसे थे जिनके बारे में जानकर आप भी सिहर उठेंगे। जापानी सैनिक प्रयोग के नाम पर जिंदा कैदियों के शरीर को चीर डालते थे। इससे कैदियों को असहनीय दर्द होता था। वे दर्द से तब तक चिल्लाते थे, जब तक मर नहीं जाते थे। कई खतरनाक बैक्टीरिया को लेकर भी इंसानों पर प्रयोग किए।

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यूनिट 731 दिया था नाम

दूसरे विश्व युद्ध के दौरान जापान की आर्मी यूनिट 731 में काफी कैदियों को शामिल किया गया था। इसका कोड नाम क्वांटुंग सेना का महामारी निवारण और जल शोधन विभाग था। इस यूनिट की कमांड शिरो इशी नाम के एक सर्जन डॉक्टर के हाथों में थी। इसे डॉक्टर डेथ भी बोला जाता है। इन्हें जापान के इस डेथ कैंप का वास्तुकार माना जाता है।

इन यूनिट में शामिल ये कैदियों के साथ प्रयोग के नाम पर काफी क्रूर बर्ताव किया गया। इसमें पुरुषों, महिलाओं और बच्चों तक को शामिल किया गया था। प्रयोग के नाम पर इन्हें कई तरह के खतरनाक वायरस से संक्रमित किया गया, महिलाओं का रेप किया गया, फ्लेमेथ्रोवर (ऐसा उपकरण जिससे आग निकलती है) को लेकर प्रयोग किए गए। यहां तक की इन्हें प्लेग बम की तरह भी इस्तेमाल किया गया। इस यूनिट में शामिल कैदियों को प्रयोग के नाम पर मार डाला गया।

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Evil Experiments

शिरो इशी और यूनिट 731 का कैंप जहां प्रयोग के लिए कैदियों को रखा जाता था।

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हर लिमिट को किया क्रॉस

इशी ने 1936 में एक बायलॉजिकल वेलफेयर रिसर्च यूनिट की स्थापना की थी। इसमें युद्ध में इस्तेमाल होने वाले जर्म्स, हथियारों की क्षमता और मानव शरीर की लिमिट पर प्रयोग किए जाते थे। लेकिन हकीकत में यहां यह हर लिमिट को क्रॉस किया जाता था।

इशी जापान के सम्राट हिरोहितो के लिए काम करता था और इसे हिरोहितो की ओर से इसके लिए फंड मिलता था। जिन कैंपों में इंसान पर ये प्रयोग किए जाते थे वहां किसी भी बाहरी शख्स को आने की अनुमति नहीं थी। अगर कोई हवाई जहाज इस एरिया के आसपास भी आता था, तो उसे जापान एयर फोर्स द्वारा मार गिराया जाता था। जिन कैदियों पर प्रयोग किए जाते थे, उन्हें हेल्दी चीजें खिलाई जाती थीं ताकि प्रयोग के लिए इनका शरीर हेल्दी रहे। इन्हें डाइट में चावल, मीट, फिश और कई बार शराब भी दी जाती थी।

इंसानों पर जानवरों जैसे प्रयोग

  • इंसान के दिमाग पर प्रयोग के लिए जिंदा कैदी के सिर को कुल्हाड़ी की मदद से काटकर खोला जाता था। इसके बाद दिमाग निकालकर तुरंत ही लैब पहुंचाया जाता था। बाद में उस शख्स के शरीर का अंतिम संस्कार कर दिया जाता था।
  • जब भी इन कैदियों के शरीर को काटा जाता था तो उन्हें कसकर बांध दिया जाता था ताकि वे छुटने के लिए संघर्ष न कर सकें। कैदी बस चिल्लाते रहते थे और फिर दम तोड़ देते थे।
  • यही नहीं, जिंदा लोगों के शरीर के अंग निकालने के लिए उन्हें सीने से पेट तक काटा जाता था। 1995 में न्यूयॉर्क टाइम्स को एक शख्स ने नाम न छापने की शर्त पर बताया था कि वह उस जापानी यूनिट में मेडिकल असिस्टेंट था। जैसे ही उसने एक शख्स को शरीर चीरने के लिए चाकू उठाया, वह चिल्लाने लगा था।
  • कई कैदियों के अंगों को काटकर दूसरी जगह जोड़ा जाता था, यह देखने के लिए कि इससे क्या असर पड़ेगा।
  • चीनी सेना को खत्म करने के लिए इस यूनिट में खतरनाक वायरस को लेकर भी इंसानों पर प्रयोग किए गए थे। यहां बहुत सारे प्लेग बैक्टीरिया पैदा किए गए, एंथ्रेक्स, पेचिश और हैजा जैसी बीमारी के लिए भी बैक्टीरिया पैदा किए गए।
  • बच्चों को एंथ्रेक्स से लिपटी चॉकलेट और प्लेग से संक्रमित बिस्कुट खिलाए गए। वहीं बड़े कैदियों को टायफाइड से संक्रमित पकौड़ियां और पेय पदार्थ दिए गए। यह भी बैक्टीरिया के प्रयोग का हिस्सा था। इससे काफी बच्चों और लोगों की मौत हुई।

रेप करके किए प्रयोग

बीमारी का असर देखने के लिए महिलाओं के साथ कैदियों द्वारा जबरदस्ती रेप करवाया गया। दरअसल, पुरुषों को सिफिलिस से संक्रमित किया गया। सिफिलिस बैक्टीरियल सेक्शुअल ट्रांसमिटिड इंफेक्शन (SIT) है। इसके बाद उन्हें महिला कैदियों के साथ रेप करने को मजबूर किया गया। इसका उद्देश्य यह देखना था कि यह रोग कैसे फैलता है। इससे महिलाओं को जबरदस्ती प्रेग्नेंट किया गया। यहां यह देखना था कि पैदा होने वाले बच्चों में यह रोग कैसे फैलता है। हालांकि जो भी बच्चा पैदा हुआ, वह जीवित नहीं बचा।

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