मंगल पर मिला रहस्यमयी गड्ढा, अभियानों के दौरान इंसानों का बन सकता है ठिकाना
Mysterious Hole On Mars Surface: मंगल ग्रह पर मिले रहस्यमयी छेद (गड्ढे) इंसानों के लिए हालात अनुकूल बना सकते हैं। जिसके कारण अब वैज्ञानिकों में भी उत्साह दिखने लगा है। ये गड्ढे अभियानों के दौरान इंसानों का ठिकाना बन सकते हैं। वैज्ञानिकों ने पहले मंगल की सतह पर इन गड्ढों के बारे में खुलासा किया था। ये छेद अधिक चौड़े भी नहीं हैं। लेकिन इनके भीतर क्या है, इसको लेकर अधिक जानकारी नहीं मिली है। मंगल की कुछ तस्वीरों को नासा के मंगल टोही यान (एमआरओ) की ओर से भेजा गया है। एमआरओ ने ये तस्वीरें हाई-रेजोल्यूशन इमेजिंग साइंस एक्सपेरिमेंट (हाईराइज) की मदद से ली हैं। किसी गुफा का मुहाना तो नहीं, इसको लेकर भी वैज्ञानिक पड़ताल कर रहे हैं।
👽-A mysterious hole on the surface of Mars, first spotted by NASA’s Reconnaissance Orbiter’s HiRISE in 2011, is once again piquing scientists' interest as they consider its potential to harbor astronauts in the future.#Mars #Holes #Science
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— Diana🌜✨🔭 (@onlybeci) June 7, 2024
थार्सिस उभार इलाके में मिले हैं ऐसे गड्ढे
यह छेद वैज्ञानिकों को थार्सिस उभार इलाके में मिला है, जो हजारों किलोमीटर में फैला है। इस इलाके में अर्सिया मॉन्स ज्वालामुखी सक्रिय है। जो शांत पड़े तीन ज्वालामुखियों का हिस्सा है। थार्सिस में कई ज्वालामुखी अभी भी सक्रिय हैं, जिसके कारण यह मंगल के दूसरे हिस्सों से 10 मीटर ऊंचा उठ चुका है। वैज्ञानिक मान रहे हैं कि यह छेद प्राचीन ज्वालामुखियों के कारण बना है। वैज्ञानिक यह भी मानकर चल रहे हैं कि ऐसे छेद और भी हो सकते हैं। लेकिन अभी नजर न आ रहे हों। कहीं ये गड्ढे भूमिगत लावा ट्यूबों का रास्ता तो नहीं? इसको लेकर भी वैज्ञानिक पड़ताल कर रहे हैं। वहीं, एक गड्ढे की तस्वीर में साइड वॉल दिख रही है। जिसके बाद इसका आकार बेलनाकार माना जा रहा है।
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ऐसे गड्ढे हवाई के ज्वालामुखियों में भी देखे जा सकते हैं। इनको पिट क्रेटर्स भी कहा जाता है। ये किसी गुफा या लावा ट्यूब से जुड़े नहीं होते, बल्कि जमीन धंसने के कारण बनते हैं। ये लगभग 6 से 186 मीटर तक गहरे होते हैं। चौड़ाई 8 से 1140 मीटर तक हो सकती है। अर्सिया मॉन्स की गहराई करीब 178 मीटर है। कई गड्ढों का टेंपरेचर 17 डिग्री सेल्सियस तक है। वैज्ञानिकों या अंतरिक्ष यात्रियों का मानना है कि अभियान के दौरान रेडिएशन, बदलाव या छोटे उल्कापिंडों से बचने के लिए इनमें शरण ली जा सकती है। यानी अभियान के दौरान ये ठिकाना बन सकते हैं।