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विलुप्त हुए जानवरों की आवाज सुन रहे हैं वैज्ञानिक, जानें इसके पीछे क्या है मकसद?

UK Scientists New Study Report: यूके के साइंटिस्टों ने ऑस्ट्रेलिया की यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के साथ मिलकर खास स्टडी पर काम शुरू किया है। दोनों विश्वविद्यालयों के वैज्ञानिक विलुप्त हुए जानवरों की आवाजें सुन रहे हैं। आखिर इसके पीछे क्या मकसद है? आइए विस्तार से खबर में जानते हैं।
08:03 PM Aug 03, 2024 IST | Parmod chaudhary
विलुप्त हुए जानवरों की आवाज सुन रहे हैं वैज्ञानिक  जानें इसके पीछे क्या है मकसद

UK Scientists New Report: वैज्ञानिकों ने लुप्तप्राय हो चुके जानवरों की मदद के लिए खास स्टडी पर काम शुरू किया है। इसके लिए वैज्ञानिक विलुप्त हुए जानवरों की आवाजें सुन रहे हैं। ताकि लुप्तप्राय हो चुके जानवरों और पक्षियों को बचाया जा सके। यूके की वारविक यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रेलिया की न्यू साउथ वेल्स यूनिवर्सिटी के साथ मिलकर काम शुरू किया है। जिसके बाद वैज्ञानिक हाथियों और पक्षियों की कई प्रजातियों पर स्टडी कर रहे हैं। जो विलुप्त हो चुकी हैं। वारविक यूनिवर्सिटी के विशेषज्ञों के अनुसार जानवर विलुप्त होने से पहले संकेत देते हैं। वे एक खास तरह की आवाज निकालते हैं। तंत्रिका विज्ञान (Neuroscience) में मस्तिष्क तरंगों (brain waves) का विश्लेषण करने के लिए एक तकनीक अपनाई जाती है।

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वैज्ञानिक उसी तर्ज पर अब जानवरों की आवाज का विश्लेषण करेंगे। जिसके बाद वैज्ञानिकों को जानवरों की आबादी, रहने की जगह और उनके प्रवास के ढंग का सही अंदाजा लग जाएगा। वैज्ञानिक यह भी पता लगाएंगे कि मानव गतिविधियों के कारण बढ़ते शोर से कोई नकारात्मक प्रभाव तो जानवरों पर नहीं पड़ रहा? प्रमुख शोधकर्ता बेन जानकोविच के अनुसार यह स्टडी सुपरलेट ट्रांसफॉर्म (SLT) नामक विधि से की जाएगी। जो संकेतों को तस्वीर में बदल देती है। हाथियों, पक्षियों और व्हेल की लुप्तप्राय प्रजातियों का संरक्षण करने के लिए यह स्टडी की जा रही है।

नई टेक्नीक में कई बातों का लगेगा पता

नई टेक्नीक से जानवरों के चिंघाड़ने (तेज बोलने) आदि को लेकर विस्तृत अध्ययन किया जाएगा। इस विधि के जरिए कम जानकार व्यक्ति भी अधिक जानकारी इकट्ठा कर सकता है। जानवरों की आवाजों से काफी महत्वपूर्ण तथ्यों का पता लग सकता है। शोध के अनुसार एशियाई हाथी, अमेरिकी मगरमच्छ और दक्षिणी कैसोवरी (एक अमेरिकी पक्षी) की आवाजें स्पंदित (कंपन) होती हैं। लेकिन इन खोजों की पुष्टि नहीं की जा सकती है। क्योंकि ऐसे निष्कर्ष सिर्फ व्यक्ति विशेष ने निकाले थे। जिनको निर्णायक नहीं कहा जा सकता।

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